कोविड-19 संक्रमण के मामले एक बार फिर तेजी से बढ़ रहे हैं और अगर युद्ध स्तर पर समुचित कदम नहीं उठाए गए तो देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर आ सकती है। बुधवार को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से सही कहा कि वे वायरस का संक्रमण रोकने के लिए जल्द और निर्णायक कदम उठाएं। संक्रमण के नए मामले पिछले कुछ सप्ताह में तीन गुना हो चुके हैं। गुरुवार को भारत में 36,000 नए मामले सामने आए। देश भर में संक्रमण का खतरा बढ़ा है और बड़ी तादाद में संक्रमण चंद राज्यों में सीमित है। इन राज्यों पर ज्यादा ध्यान देना जरूरी है। गुरुवार को सामने आए नए मामलों में से 85 प्रतिशत छह राज्यों में पाए गए जिनमें महाराष्ट्र और केरल शामिल हैं। महाराष्ट्र में हालात चिंताजनक हैं जहां रोज सामने आने वाले नए मामले सितंबर के उच्चतम स्तर के करीब पहुंच गए हैं।
ऐसे में सरकार को एक बार फिर संक्रमण से बचाव के लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए और जांच भी बढ़ा देनी चाहिए। सरकारों और आम जनता दोनों को मालूम है कि वायरस के संक्रमण की रोकथाम कैसे करनी है, इसके बावजूद अगर दूसरी लहर आती है तो यह दुखद होगा। अभी कुछ सप्ताह पहले तक संक्रमण के मामलों में कमी आने और टीकों को मंजूरी मिलने के बाद लोग कुछ ज्यादा लापरवाह हो गए थे। विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार कर रहे कई राजनेता भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार कर रहे हैं और बिना मास्क के नजर आ रहे हैं। जिन राज्यों में वायरस का संक्रमण ज्यादा है, वहां इसे रोकने के लिए केंद्र को तालमेल करना चाहिए। इसके अलावा संक्रमण में इजाफा टीकाकरण की गति तेज करने की जरूरत को भी रेखांकित करता है। कुछ राज्यों का सुझाव है कि टीकाकरण सभी के लिए शुरू कर दिया जाए। केंद्र सरकार को इस विकल्प पर विचार करना चाहिए क्योंकि अब तक महज दो फीसदी भारतीयों को ही टीका लगा है और अभी इस दिशा में लंबा सफर तय करना है। हर चीज को केंद्रीकृत करने के बजाय राज्यों को यह अनुमति होनी चाहिए कि वे टीकाकरण को किस प्रकार आगे ले जाना चाहते हैं।
बीते एक वर्ष में कोविड से निपटने का अनुभव बताता है कि भारत जैसे देश में हर जगह और हर किसी पर एक नीति लागू करने से काम नहीं चलेगा। कुछ राज्य बहुत अधिक टीके बरबाद कर रहे हैं। इससे बचा जाना चाहिए। टीकाकरण की दर बढ़ाना जरूरी है। इसके लिए नीतिगत हस्तक्षेप करने होंगे। मसलन, सरकार को निजी अस्पतालों में टीके की कीमत और सेवा शुल्क तय करने पर दोबारा विचार करना चाहिए क्योंकि बड़ी तादाद में नागरिक और कंपनियां कीमत चुकाने को तैयार हैं। सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क टीकाकरण जारी रह सकता है। इतना ही नहीं सरकार को दुनिया के अन्य हिस्सों में लग रहे टीकों को भी मंजूरी देनी चाहिए। उन टीकों का भारत में उत्पादन किया जा सकता है। सरकार को टीकों की आपूर्ति और मांग से जुड़ी बाधाएं समाप्त करनी चाहिए।
इस बीच राज्यों को भी ज्यादा संक्रमण वाले शहरों में कफ्र्यू और लॉकडाउन लगाने जैसे मनमाने कदमों से बचना चाहिए। ऐसे कदम भ्रम फैलाते हैं और आपूर्ति शृंखला को बाधित कर आर्थिक समस्या पैदा करते हैं। उदाहरण के लिए मुंबई में स्थानीय प्रशासन रात का कफ्र्यू लगाने पर विचार कर रहा है जो समझ से परे है। याद रहे भारत यह दिखा चुका है कि संक्रमण और गतिशीलता के बीच का संबंध तोड़ा जा सकता है। आपूर्ति शृंखला और अन्य गतिविधियों के बाधित होने से आर्थिक सुधार पर असर पड़ेगा। ऐसे में कोरोना की बड़ी लहर से बचने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समझदारी से कदम उठाने होंगे। भारत को दुनिया भर में घट रही घटनाओं से सबक लेना चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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