टी. एन. नाइनन
भारत में निर्माण की बयार चल रही है: राजमार्ग, एक्सप्रेसवे, उच्च गति वाले फ्रेट कॉरिडोर, समुद्र पर पुल, तटीय इलाकों में फ्रीवे, हर बड़े शहर में मेट्रो लाइन, बुलेट ट्रेन, नए कल्पनाशील रेलवे स्टेशनों से दो शहरों के बीच 'सेमी हाईस्पीड' सफर, गहरे समुद्र में नए बंदरगाह, हवाई अड्डे आदि..यह एक लंबी और प्रभावशाली सूची है। यदि चीजें योजना के मुताबिक चलतीं तो आजादी की 75वीं वर्षगांठ के आसपास भारत की तस्वीर बदल चुकी होती। अब इसमें कुछ अधिक वक्त लगेगा।
मुंबई को नवी मुंबई से जोडऩे वाला ट्रांस हार्बर लिंक तीन गलत शुरुआतों के बाद आखिरकार अब बन रहा है। चिनाब नदी पर दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल लगभग पूरा होने वाला है। हिमालय के दर्रों के नीचे हर मौसम में चालू रहने वाली सुरंगें बनाई गई हैं। ब्रह्मपुत्र नदी पर पुल बनाया गया है। नए फ्रेट कॉरिडोरों में 1.5 किलोमीटर लंबी उच्च गति वाली ट्रेनों को दो मंजिला कंटेनरों के साथ परखा गया है। इनकी गति को कुछ सामान्य एक्सप्रेस ट्रेनों से भी अधिक रखा गया है। धोलेरा जैसे नई शैली के शहरी केंद्रों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए जो मुंबई-दिल्ली औद्योगिक कॉरिडोर के निकट आकार ले रहे हैं। गुजरात की गिफ्ट सिटी में कंपनियों की बढ़ती तादाद बता रही है कि एक असंभव प्रतीत होने वाला विचार फलीभूत हो रहा है।
बैंक खातों के बाद, घरेलू गैस, शौचालय और स्वास्थ्य बीमा के बाद नल के पानी और बिजली तक का बंदोबस्त हुआ है। कोयला आधारित ऊर्जा से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव हो रहा है। राजस्थान के मरुस्थल में बहुत बड़ा इलाका सौर पैनलों से आच्छादित है। इलेक्ट्रिक वाहनों का सिलसिला चल निकला है। कहा जा सकता है कि एक नया भारत आकार ले रहा है। भले ही कुछ लोग निराश होंगे कि किसानों की आय दोगुनी नहीं हुई या जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान इतना नहीं बढ़ा कि लाखों लोगों को रोजगार मिल सके लेकिन कुछ तो ऐसा है जिसका जश्न मनाया जाए। इस बीच सन 2030 या उससे आगे के लिए नई परियोजनाओं को लेकर कहीं अधिक महत्त्वाकांक्षी घोषणाओं का सिलसिला जारी है। इसके लिए इतने अधिक निवेश की आवश्यकता होगी जो किसी की भी सांस थाम ले। अब बुलेट ट्रेन को केवल मुंबई-अहमदाबाद मार्ग के बजाय सात मार्गों पर चलाने की योजना है। 18,000 किमी से अधिक लंबाई वाले मार्गों पर आठ लेन या उससे अधिक लेन वाले सिग्नल रहित एक्सप्रेसवे यात्रा का समय कम करेंगे और चार लेन वाले राजमार्ग अधिकांश जिला मुख्यालयों को जोड़ेंगे। इसके अलावा हर दिशा में तेज इंटरसिटी ट्रेन चलाई जाएंगी। इस योजना के लिए 2 लाख करोड़ रुपये, उसके लिए 20 लाख करोड़ रुपये, तीसरी योजना के लिए 50 लाख करोड़ रुपये और चौथी के लिए 70 लाख करोड़ रुपये। आखिर 200 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था लाख करोड़ में ही बात करती है। आप कह सकते हैं कि इस सबकी शुरुआत वाजपेयी सरकार की स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग परियोजना से हुई और बाद में मनमोहन सिंह सरकार ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दिया, फ्रेट कॉरिडोर का खाका खींचा और पहली बुलेट ट्रेन सेवा का विचार सामने रखा। परंतु यह मोदी सरकार ही है जिसने बुनियादी निवेश और लोककल्याण के ताकतवर गठजोड़ को महत्त्वाकांक्षा के मौजूदा स्तर तक पहुंचाया।
इसके बावजूद कदम-कदम पर एक जाना-पहचाना भारत उभरता है। केंद्र-राज्य के झगड़े, पर्यावरण की चिंताएं, भूमि अधिग्रहण की समस्या और पुरानी परियोजनाओं में देरी अधिकांश परियोजनाओं को प्रभावित कर रहे हैं। अकेले मुंबई में इसमें नया हवाई अड्डा और मुख्य उत्तर-दक्षिण मेट्रो लाइन तथा तटवर्ती मार्ग, अहमदाबाद से आने वाली बुलेट टे्रन का स्टेशन और ट्रांस-हार्बर लिंक बनने हैं। हर ग्राम पंचायत को ब्रॉडबैंड लिंक से जोडऩे की दिशा में अभी आधी दूरी तय की जा सकी है।
नौसेना के लिए पोत निर्माण की तरह लगभग हर बड़ी परियोजना के विचार से पूरा होने तक 10 के बजाय 20 वर्ष की समयावधि सामान्य मानी जा रही है। अफसरशाही को लेकर प्रधानमंत्री की हताशा को इससे भी समझा जा सकता है। विभिन्न मंत्रियों की अधिकारियों पर नाराजगी की भी यही वजह है। परंतु अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा भी समस्या पैदा कर सकती है। मिसाल के तौर पर स्वच्छ ऊर्जा के मामले में हम लक्ष्य से पीछे रह सकते हैं।
आखिरी सवाल यह कि पैसा कहां है? अर्थव्यवस्था की स्थिति कमजोर है और सरकार के पास राजस्व और निजी क्षेत्र के पास अधिशेष की कमी है। विशेष उद्देश्य वाली कंपनियां बनाई गईं लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कर्ज में डूबा है और अनगिनत परियोजनाएं अधूरी हैं। रेलवे नुकसान में है और राजकोषीय घाटा बॉन्ड बाजार को प्रभावित कर रहा है। परिसंपत्तियों की बिक्री नया सूत्र है लेकिन देखना होगा कि यह कितना हकीकत में बदलता है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment