ए के भट्टाचार्य
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब 2021-22 का बजट पेश कर रही थीं, तब उन्होंने कहा कि सरकार का इरादा राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम में संशोधन करने का है। एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने संशोधित कानून द्वारा राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए अपनाई जाने वाली राह के बारे में भी संकेत दिया। उन्होंने कहा कि संशोधन कुछ इस प्रकार किया जाना है ताकि केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे को उस व्यापक राह के साथ सुसंगत बनाया जाए जिसके बारे में वह पहले ही संकेत कर चुकी है।
इस व्यापक राह की प्रकृति क्या थी? वित्त मंत्री के मुताबिक केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे में चरणबद्ध तरीके से कमी आनी चाहिए और इसे 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 9.5 फीसदी से घटकर 2021-22 तक 6.8 फीसदी और 2025-26 तक 4.5 फीसदी हो जाना चाहिए।
राजकोषीय सुदृढ़ीकरण में महत्त्वपूर्ण सुधार का अनुमान कर राजस्व में बेहतरी पर आधारित है। यह सुधार बेहतर अनुपालन और सरकारी उपक्रमों तथा भूमि के मुद्रीकरण से हासिल होने वाली उच्च प्राप्तियों से आना है। परंतु बजट भाषण अथवा बजट दस्तावेजों से यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार ने वर्ष 2025-26 में राजस्व घाटे के लिए जीडीपी के 4.5 फीसदी का लक्ष्य क्यों तय किया। मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति और राजकोषीय नीति संबंधी नीतिगत दस्तावेज जिसे बजट दस्तावेजों के साथ जारी किया गया, में कहा गया है, 'सरकार एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन करेगी। इसलिए वक्तव्य के साथ वर्ष 2022-23 और 2023-24 के लिए कोई राजकोषीय पूर्वानुमान पेश नहीं किया गया है।' बीते वर्षों में इस वक्तव्य में कम से कम दो वर्ष के लिए घाटे का पूर्वानुमान रहता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं है क्योंकि एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव है।
सवाल यह है कि वित्त मंत्रालय को वर्ष 2025-26 के लिए 4.5 फीसदी का लक्ष्य तय करने का विचार कैसे आया? पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट इसका आंशिक उत्तर देती है। रिपोर्ट के अनुसार सन 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5 फीसदी तक करने का लक्ष्य तभी हासिल हो सकता है जब आर्थिक सुधार की गति आयोग के आकलन से धीमी हो। ऐसे परिदृश्य में जहां आयोग का वृहद आर्थिक आकलन कारगर होता है वहां 4.5 फीसदी का राजकोषीय घाटा लक्ष्य 2024-25 में ही हासिल हो जाएगा। एक अलग परिदृश्य में यह और जल्दी हासिल हो सकता है।
देखने में ऐसा प्रतीत होगा कि वित्त मंत्रालय ने सन 2025-26 तक 4.5 फीसदी घाटे का लक्ष्य अर्थव्यवस्था की सबसे बुरी स्थितियों को ध्यान में रखकर किया है। अब इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि वित्त मंत्रालय का घाटे का अनुमान भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसे की कमी से उपजा है। उसे अर्थव्यवस्था के संभावित वृद्धि दर हासिल करने की क्षमता पर पूरा यकीन नहीं। यकीनन कई स्वतंत्र विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था जहां 2021-22 में दो अंकों की वृद्धि हासिल करेगी वहीं 2022-23 और उससे आगे सतत बेहतर वृद्धि दर हासिल करना एक बड़ी चुनौती होगी।
रिपोर्ट में पंद्रहवें वित्त आयोग ने आर्थिक परिदृश्य और केंद्र सरकार के 2021-22 के बाद के राजकोषीय पथ की अनिश्चितता को भी रेखांकित किया है। आयोग का कहना है, 'घाटे का दायरा...अर्थव्यवस्था पर महामारी के असर की अनिश्चितता को परिलक्षित करता है, केंद्र सरकार के राजस्व और महामारी से निपटने और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए संसाधनों की जरूरत पर भी इसका असर होगा।' इस परिदृश्य में देखें तो वित्त मंत्रालय का 2025-26 तक घाटे के लिए 4.5 फीसदी का लक्ष्य स्वीकार करने का निर्णय शायद वित्त मंत्रालय के उस नजरिये से सहमति के कारण ही उपजा है जिसके अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामारी का असर जारी रहेगा और उसकी वृद्धि संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने जिस प्रकार अपने वित्त के आकलन और राज्यों के वित्त के आकलन में जिस प्रकार अंतर किया है वह भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उसने केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे को 2025-26 तक जीडीपी के 4.5 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य तय किया है, वहीं राज्यों के घाटे के लिए 3 फीसदी का कहीं अधिक मुश्किल लक्ष्य तय किया गया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में कहा कि राज्यों से आशा है कि वे इस लक्ष्य को दो वर्ष पहले यानी 2023-24 तक हासिल कर लेंगे।
ध्यान रहे कि राज्यों के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करने के लिए यह स्पष्टीकरण दिया गया है कि वित्त आयोग ने ऐसी अनुशंसा की है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, 'वर्ष 2020-21 में आई गिरावट का प्रभाव राज्यों की ऋण लेने की सीमा को वर्ष 2023-24 और 2024-25 में भी प्रभावित करता रहेगा। बहरहाल वर्ष 2021-22 में तेजी से सुधार होने के कारण इस असर को काफी हद तक कम किया जा सकेगा। ऐसे में हम यह अनुशंसा करते हैं कि सन 2023-24 और 2025-26 में राज्य सरकारों की शुद्ध उधारी सीमा को राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 3 फीसदी तक सीमित किया जाए।'
इससे यह भी पता चलता है कि वित्त मंत्रालय काफी हद तक वित्त आयोग की अनुशंसाओं से प्रभावित रहा है। खासतौर पर राज्यों के लिए राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को लेकर। केंद्र के लिए एक अलग रुख अपनाया गया है जहां वित्त मंत्रालय ने राजकोषीय घाटे को कम करने के प्रति रूढि़वादी रुख को प्राथमिकता दी है।
एक बार जब संशोधित एफआरबीएम अधिनियम के तहत क्रियान्वयन का नया खाका तैयार होगा, तब यह देखना दिलचस्प होगा कि उक्त रूढि़वादी रुख कानून के तहत तय होने वाले नए लक्ष्यों को किस हद तक प्रभावित करता है। आशा की जानी चाहिए कि इस बात को लेकर भी चीजें अधिक स्पष्ट होंगी कि वित्त मंत्रालय ने राजकोषीय समावेशन के लिए ऐसी राह क्यों चुनी। परंतु राज्यों के वित्तीय सुदृढ़ीकरण के साथ अलग व्यवहार के परिणाम गंभीर हो सकते हैं। इसका निराकरण करना जरूरी है। राज्यों के राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए अधिक समतावाले ढांचे की मांग की लंबे समय तक अनदेखी नहीं की जा सकती। चाहे जो भी हो, एफआरबीएम अधिनियम में संशोधन करने वाले विधेयक पर नजर रखनी होगी जो 8 अप्रैल को बजट सत्र के समापन के पहले संसद में पेश हो जाना चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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