महेश व्यास
भारत ने फरवरी 2021 में 6.9 फीसदी की बेरोजगारी दर दर्ज की है। हालांकि यह आंकड़ा जनवरी 2021 में दर्ज 6.5 फीसदी की बेरोजगारी दर से अधिक है लेकिन दिसंबर 2021 में रिकॉर्ड की गई 9.1 फीसदी की दर से बहुत कम है। लॉकडाउन हटाए जाने के बाद जुलाई 2020 से ही बेरोजगारी दर 6.5 फीसदी से लेकर 9.0 फीसदी के दायरे में घूमती रही है। इस अवधि की औसत बेरोजगारी दर 7.3 फीसदी रही है और इस तरह फरवरी का आंकड़ा इस औसत से थोड़ा कम ही है। यह फरवरी 2020 की 7.8 फीसदी बेरोजगारी दर से भी कम ही है।
लॉकडाउन की बंदिशें हटाए जाने के बाद जुलाई 2020 से औसत बेरोजगारी दर 7.3 फीसदी रही है जो कि एक साल पहले की समान अवधि में 7.6 फीसदी की औसत बेरोजगारी दर से थोड़ा कम है।
इस तरह बेरोजगारी दर एक बार फिर से लॉकडाउन से पहले के स्तर तक जा पहुंची है। हालांकि श्रम बाजार के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण मानकों की हालत बिगड़ी है। श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलपीआर) और रोजगार दर (ईआर) श्रम बाजार के कुछ अहम अनुपातों में गिने जाते हैं। दोनों ही आंकड़े लॉकडाउन से पहले के अपने स्तर से काफी नीचे बने हुए हैं। ऐसी स्थिति में यही लगता है कि इन दोनों अनुपातों के लॉकडाउन-पूर्व स्तर पर पहुंच पाना अभी दूर की कौड़ी है। अधिक यथार्थपरक अंदाज में कहें तो लॉकडाउन लगने के पहले भी श्रम बाजार संकेतकों में देखी जा रही दीर्घकालिक गिरावट के मद्देनजर एलपीआर एवं ईआर का लॉकडाउन-पूर्व स्तर पर पहुंच पाना न केवल दूर की कौड़ी है बल्कि यह एक दिवा-स्वप्न भी हो सकता है।
फरवरी 2021 में श्रम भागीदारी दर 40.5 फीसदी रिकॉर्ड की गई है। यह जनवरी 2021 के 40.6 फीसदी से थोड़ा कम और फरवरी 2020 के 42.6 फीसदी की तुलना में काफी कम है। इसका मतलब है कि कामकाजी उम्र वाली आबादी में वैसे लोगों का अनुपात घटा है जो रोजगार में हैं या फिर बेरोजगार होते हुए भी शिद्दत से रोजगार की तलाश में लगे हुए हैं।
बेरोजगारी दर के फिर से लॉकडाउन से पहले के स्तर पर पहुंचने का जश्न नहीं मनाया जाना चाहिए क्योंकि यह बेरोजगारों की गिनती में आई कमी से कहीं अधिक श्रमबल में आई सिकुडऩ को दर्शाता है। पिछले वित्त वर्ष में जुलाई-फरवरी के दौरान 7.6 फीसदी रही बेरोजगारी दर 43.85 करोड़ कामगारों में 3.32 करोड़ बेरोजगारों के अनुपात को दर्शा रहा था। लेकिन चालू वित्त वर्ष में जुलाई-फरवरी के दौरान 7.3 फीसदी की बेरोजगारी दर 42.63 करोड़ श्रमशक्ति में से 3.12 करोड़ बेरोजगारों के अनुपात को ही दर्शाता है। बेरोजगारी में दर्ज की गई हल्की गिरावट असल में यह नहीं दर्शाती है कि अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसका सिर्फ यही मतलब है कि बेरोजगारों ने काम की तलाश ही बंद कर दी है। यह परिदृश्य कामकाजी उम्र के लोगों को रोजगार न मिलने से श्रम बाजार से अलगाव को बयां करता है।
श्रम शक्ति के बड़े घटक यानी रोजगार-प्राप्त लोगों की गिनती बड़ी तेजी से गिरी है। एक बार फिर हम सख्त बंदिशों वाले दौर के बाद के आठ महीनों यानी जुलाई 2020-फरवरी 2021 की तुलना पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि से करें तो उस दौरान औसतन 40.53 करोड़ लोग रोजगार में लगे थे जबकि इस साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 39.52 करोड़ लोगों का ही है। इससे पता चलता है कि साल भर पहले की तुलना में इस साल रोजगार-प्राप्त लोगों की संख्या में 1 करोड़ से भी अधिक गिरावट आई है।
ऐसी स्थिति में लॉकडाउन-पश्चात की अवधि में रोजगार दर में 2.5 फीसदी की गिरावट आई है और बेरोजगारों की गिनती 6.2 फीसदी घटी है। इसका मतलब है कि श्रम शक्ति में 2.8 फीसदी का संकुचन आया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के गहरे-अंधेरे कुएं से बाहर निकल पाने में सफल रही है। आधिकारिक आंकड़े तीसरी तिमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना 0.4 फीसदी की छोटी पर सकारात्मक वृद्धि दर्शाते हैं। लेकिन रोजगार की स्थिति में उसी तरह रिकवरी नहीं हुई है। इसमें 2.8 फीसदी की गिरावट रही है। भारत कई दशकों से इस समस्या का सामना कर रहा है कि उसकी वास्तविक जीडीपी के अनुपात में रोजगार नहीं पैदा हो पा रहे हैं। जिस तरह जीडीपी बड़ी तेजी से वृद्धि की राह पर लौट आई है, कुछ उसी तरह रोजगार वृद्धि को सकारात्मक दशा में लाने के लिए कहीं अधिक तीव्र जीडीपी वृद्धि या अधिक श्रम-बाहुल्य जीडीपी वृद्धि की जरूरत होगी। ऐसा न होने पर रोजगार में गिरावट का दौर जारी रहेगा। भारत में कुल रोजगार वर्ष 2016-17 के 41.3 करोड़ से घटकर 2019-20 में 40.9 करोड़ पर आ गया था। वह भी तब जब अर्थव्यवस्था सालाना करीब छह फीसदी की दर से बढ़ रही थी।
रोजगार दर को स्थिर बनाए रखने के लिए जरूरी है कि रोजगार कम-से-कम एक रफ्तार से बढ़ता रहे। रोजगार दर का आशय रोजगार में लगी कामकाजी उम्र वाली आबादी के अनुपात से है। लिहाजा हम यह कह रहे हैं कि रोजगार कम-से-कम उस दर से बढ़े कि कामकाजी उम्र वाली आबादी में वृद्धि के अनुपात को कायम रखा जा सके। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि हालात मौजूदा समय से कहीं अधिक खराब नहीं होंगे।
भारत की रोजगार दर अनवरत गिरती चली आ रही है। वर्ष 2016-17 में 42.7 फीसदी रही रोजगार दर अगले तीन वर्षों में क्रमश: 41.6 फीसदी, 40.1 फीसदी और 39.4 फीसदी दर्ज की गई। फरवरी 2021 में यह और भी अधिक गिरावट के साथ 37.7 फीसदी पर आ गई। रोजगार दर में फिसलन जारी है। भले ही रोजगार दर 2020-21 की तीव्र ढलान से सुधरी है लेकिन अब भी यह एक स्थिर गिरावट की स्थिति तक ही पहुंच पाई है। स्थिति सुधरने के बाद भी रोजगार दर लॉकडाउन-पूर्व स्तर पर न जाकर एक सुस्त एवं स्थिर गिरावट तक ही पहुंच पाई है।
(लेखक सीएमआईई प्रा. लि. के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टेंडर्ड।
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