सद्गुरु जग्गी वासुदेव, ईशा फाउंडेशन के संस्थापक
भारतीय परम्परा में, साल में 365 त्योहार होते हैं। आज, आर्थिक कारणों से और हमने अपने कामकाज को ऐसे व्यवस्थित किया है कि उनमें से कई सारे त्योहार खत्म हो गए हैं। अब भी लगभग 50 से 60 त्योहार अलग-अलग लोगों द्वारा मनाए जाते हैं, लेकिन ये संख्या भी घट रही है। पांच-छह त्योहार ही बड़े पैमाने पर मनाए जा रहे हैं। लगभग हर भारतीय त्योहार चन्द्र-सूर्य कैलेंडर से जुड़ा है। हम देखते हैं कि सौरमंडल में उस दिन क्या हो रहा है, और हम कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो उसके अनुकूल हो।
शरीर को बनाने के लिए, सौरमंडल एक कुम्हार के चाक की तरह काम कर रहा है। सौरमंडल में होने वाली हर चीज किसी न किसी तरह से आपके साथ भी होती है। इस संस्कृति में, किसी दिन सौरमंडल में क्या हो रहा है, उसे बहुत ध्यान से देखा गया है, और उसी के अनुसार, हमने एक खास तरह का उत्सव बनाया जिसमें हम कुछ खास चीजें करते हैं। महाशिवरात्रि पर, पृथ्वी एक तरह की बारीकी के साथ घूम रही है। यह सिर्फ अपनी धुरी पर ही नहीं घूम रही - यह हमेशा थोड़ी डगमगाती भी है। यह डगमगाना धरती पर एक विशेष तरह की स्थिति बनाता है। तो महाशिवरात्रि की रात, उत्तरी गोलार्ध में ऊर्जा कुदरती तौर पर ऊपर की ओर बढ़ती है। जब ऊर्जाएं ऊपर की ओर बढऩे की कोशिश कर रही हैं, अगर आप लेट जाते हैं, तो आप उनकी गति में रुकावट डाल रहे हैं।
आप न केवल फायदे को खो देंगे, बल्कि खुद को एक बहुत ही संवेदनशील तरीके से नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। ये सारी चीजें आपके लिए सिर्फ तभी मायने रखती हैं, जब आप एक संपूर्ण इंसान बनना चाहते हों। सम्पूर्ण इंसान होने का मतलब है कि वे सारी क्षमताएं जो आपके अंदर उजागर हो सकती हैं, आप चाहते हैं कि वे उजागर हो जाएं। इसीलिए हमने जागरण की परम्परा बनाई - इसका अर्थ है सतर्क रहना और रीढ़ को खड़ी स्थिति में रखना।
सौजन्य - पत्रिका।
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