ए के भट्टाचार्य
पिछले दो वर्षों में केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए बजट में दो बुनियादी समस्याएं नजर आई हैं। पहली, बजट ने राजकोषीय घाटे के संदर्भ में सरकार की वास्तविक स्थिति को छिपाने की कोशिश की है। दूसरी, बजट ने सरकार की राजस्व प्राप्तियों के बारे में वास्तविकता से दूर लगने वाले पूर्वानुमान पेश किए हैं। इन दोनों समस्याओं ने सम्मिलित रूप से बजट में पेश आंकड़ों की शुचिता को चोट पहुंचाई है जिससे सजग एवं जिम्मेदार बजट-निर्माण से संबंधित सिद्धांतों का उपहास बना है।
ये समस्याएं हाल की उपज नहीं हैं लेकिन वर्ष 2018-19 और 2019-20 में ये अधिक गंभीर जरूर हुई हैं। इस पर नजर डालें कि बजट की राजकोषीय सशक्तीकरण उपलब्धियों को पिछले कुछ वर्षों में किस तरह गलत ढंग से पेश किया गया है। यहां पर दोषी वह प्रवृत्ति है जो गैर-बजट उधारियों का तरीका अपनाना पसंद करती है क्योंकि वह प्रमुख राजकोषीय घाटा आंकड़ों में नहीं झलकता है। इस तरह बजट से इतर उधारियों के आंकड़े (2016-17 के बाद से उपलब्ध) बताते हैं कि केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा पिछले कुछ वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधे फीसदी से भी अधिक संकुचित हुआ है।
वर्ष 2016-17 और 2017-18 में हर साल बजट से इतर की उधारियां जीडीपी की 0.51 फीसदी थीं। वर्ष 2018-19 में यह उधारी बढ़कर जीडीपी का 0.89 फीसदी हो गई लेकिन फिर इसमें गिरावट आने लगी। वर्ष 2019-20 में बजट से इतर उधारी जीडीपी का 0.72 फीसदी रही जबकि 2020-21 में इसके 0.64 फीसदी रहने का अनुमान है। नए वित्त वर्ष में इसके जीडीपी का 0.13 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। इस तरह की बजट से इतर उधारियों के जरिये राजकोषीय घाटे का असली आकार छिपाने की समस्या को अतीत में भी चिह्नित किया जा चुका है। असल में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकार के प्रमुख राजकोषीय घाटा आंकड़े एवं वास्तविक स्थिति के बीच के फासले को दूर करने में प्रशंसनीय प्रयास किए हैं। उनके कार्यकाल में पेश किए गए तीनों बजट में इस आंकड़े में गिरावट देखने को मिली है और इस मोर्चे पर अधिक पारदर्शिता नजर आई है।
हालिया समय में बजट से जुड़ी दूसरी समस्या के बारे में बहुत कम चर्चा ही हुई है। इस समस्या के दो स्तर हैं। पहले स्तर पर, बजट में राजस्व प्राप्तियों के बारे में किए पूर्वानुमान एवं वास्तविक प्राप्तियों के बीच का फासला लगातार बढ़ता गया है। दूसरे स्तर पर, संशोधित राजस्व अनुमानों एवं वास्तविक प्राप्तियों का फासला भी बढ़ता गया है। इस तरह, केंद्र के शुद्ध कर संग्रह के वास्तविक आंकड़े 2011-12 से लगातार चार वर्षों तक बजट अनुमानों से 4-8 फीसदी तक कम रहे थे। इन चार में से तीन वर्षों में बजट संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के समय पेश किए गए थे जबकि 2014-15 का बजट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के समय पेश किया गया था। वर्ष 2015-16 से 2017-18 तक कर राजस्व का यह फासला नदारद रहा लेकिन 2018-19 एवं 2019-20 में फिर से नमूदार हो गया। इन दो वर्षों में तो राजस्व प्राप्तियां अनुमान से काफी कम रहीं। वर्ष 2018-19 में 11 फीसदी और 2019-20 में 18 फीसदी का फासला रहा। यह बड़ी फिसलन थी और वित्त मंत्रालय में बैठकर ऐसे अनुमान जताने वालों के लिए बुरी खबर थी।
अधिक गंभीर फिसलन बीते दो वर्षों में सरकार के शुद्ध कर राजस्व संग्रह के संशोधित अनुमानों एवं वास्तविक प्राप्तियों के बीच बढ़ते फासले के संदर्भ में थी। वर्ष 2018-19 में शुद्ध कर राजस्व प्राप्ति 13.17 लाख करोड़ रुपये की थी जो संशोधित अनुमान में जताए गए आंकड़े से करीब 11 फीसदी कम था। वर्ष 2019-20 में भी यह समस्या बदस्तूर कायम रही। शुद्ध कर संग्रह का संशोधित अनुमान 15 लाख करोड़ रुपये था लेकिन वास्तविक प्राप्ति 10 फीसदी कम 13.57 लाख करोड़ रुपये रही।
यह दलील देना मुमकिन है कि बजट अनुमानों की तुलना में वास्तविक संग्रह में थोड़ी-बहुत कमी होना स्वीकार्य होना चाहिए। आखिर बजट अनुमान सिर्फ आने वाले वर्षों में बने रहने वाले हालात पर आधारित पूर्वानुमान होते हैं। लेकिन शुद्ध कर संग्रह के संशोधित अनुमानों एवं वास्तविक प्राप्तियों के बीच बड़ा फर्क होने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। संशोधित अनुमान वित्त वर्ष खत्म होने में दो महीना बाकी रहते समय पेश किए जाते हैं। अगर वास्तविक आंकड़े संशोधित अनुमानों से 10-11 फीसदी कम रहते हैं तो फिर वित्त मंत्रालय में काम करने वाली बजट टीम के तौर-तरीके में कुछ गंभीर खामी है।
पिछले दो वर्षों की घटनाओं के संदर्भ में कर राजस्व संग्रह अनुमानों से जुड़े हालिया घटनाक्रम उत्साहजनक हैं। निश्चित रूप से बजट में पेश राजस्व अनुमान पूरी तरह गलत हो गए जिसके लिए कोरोना संकट एवं लॉकडाउन भी जिम्मेदार रहा। बजट में जब 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान जताए गए तो यह एकदम स्पष्ट हो गया। लेकिन अब बड़ी राहत है कि इन संशोधित अनुमानों की हालत पिछले दो वर्षों की तरह नहीं होगी।
वर्ष 2020-21 के लिए शुद्ध कर संग्रह का संशोधित अनुमान 13.44 लाख करोड़ रुपये रखा गया है जो 2019-20 के 13.57 लाख करोड़ रुपये से करीब एक फीसदी कम है। लेकिन सरकार के अस्थायी वास्तविक आंकड़े बताते हैं कि चालू वित्त वर्ष के पहले 10 महीनों में शुद्ध कर राजस्व संग्रह 11 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो 2019-20 की समान अवधि में इक_ा 9.98 करोड़ रुपये राजस्व से करीब 10 फीसदी अधिक है। इस साल के बाकी दो महीनों में 2.24 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आना तुलनात्मक रूप से आसान होगा। ध्यान रहे कि 2019-20 के अंतिम दो महीनों में शुद्ध कर संग्रह करीब 3.6 लाख करोड़ रुपये का था।
ऐसे में पूरी संभावना है कि 2020-21 में शुद्ध कर संग्रह की वास्तविक प्राप्ति बजट में पेश संशोधित अनुमानों से कहीं अधिक होगी। इस तरह वर्ष 2020-21 के पिछले दो वर्षों से जारी रुझान से अलग जाने के आसार हैं। प्रत्यक्ष कर संग्रह के बारे में आए नए आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं। 15 मार्च तक के आंकड़े बताते हैं कि पूरे वित्त वर्ष के संशोधित अनुमान को पहले ही हासिल किया जा चुका है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत संग्रह भी अच्छी दर से बढ़ रहा है और संशोधित अनुमानों से कहीं भी कम नहीं होगा।
कोविड-19 संकट के दौर में शुद्ध कर संग्रह संबंधी संशोधित अनुमानों का सटीक रहना अपने-आप में उपलब्धि है। राजस्व आंकड़ों को कम करके दिखाने से अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का असर संभालने में सरकार को अतिरिक्त लाभ भी मिलता है। लेकिन वित्त मंत्रालय में सक्रिय नई टीम के दिए व्यापक संदेश को बमुश्किल नजरअंदाज किया जा सकता है। राजस्व आंकड़ों का अनुमान सही होना इस समय वित्त मंत्रालय में तैनात वरिष्ठ अधिकारियों की टीम में एक परिपक्वता और उद्देश्यपूर्ण सोच को दर्शाता है।
वित्त मंत्री जिस तरह बजट में पेश आंकड़ों और इसके नीतिगत निर्माण से निपट रही हैं, वह भी कम अहम नहीं है। राजकोषीय घाटे के असली आकार का स्पष्ट उद्गार इस कायांतरण का केवल एक पहलू है। दूसरा बदलाव यह है कि वित्त मंत्री को बजट में पेश नीतिगत कदमों पर प्रधानमंत्री का पूर्ण समर्थन मिला है।
जब निर्मला सीतारमण ने अपनी नई निजीकरण नीति घोषित की तो इस पर गहरे संदेह थे कि इस कदम को भारतीय जनता पार्टी का पूरा राजनीतिक समर्थन है भी या नहीं। लेकिन जब निजीकरण पर उनके साहसिक कदमों का प्रधानमंत्री ने संसद के पटल पर खुलकर समर्थन किया तो ये सारे संदेह दूर हो गए। इस बदलाव ने भी बजट को नया तेवर और मजबूती दी है कि अर्थव्यवस्था कोविड महामारी की चुनौतियों से निपट सके।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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