नियामकीय जाल में न उलझ जाए किस्सागोई से जुड़ी रचनात्मकता (बिजनेस स्टैंडर्ड)

वनिता कोहली-खांडेकर  

बाल्तासार कोरमाकर की टेलीविजन सीरीज ट्रैप्ड की शुरुआत पूर्वी आइसलैंड के एक छोटे से कस्बे में एक धड़ के मिलने से होती है। इसके बाद ऐसे धड़ मिलने का सिलसिला शुरू होता है और बर्फीला तूफान कस्बे को देश के शेष हिस्सों से काट देता है। अब यह जवाबदेही विनम्र पुलिस प्रमुख आंद्री ओलाफसन और उनके सहयोगियों पर आती है कि वे चीजों का पता लगाएं। रक्त जमा देने वाली ठंडी हवाएं, बर्फबारी, यात्रियों के साथ फंसा हुआ एक पोत, बिजली गुल होना, सबकुछ फंसे होने के अहसास को मजबूत करता है। यह टेलीविजन धारावाहिक आपको अपने साथ बांध लेता है। दस वर्ष पहले इस बात की क्या संभावना थी कि आप आइसलैंड में बने धारावाहिक का लुत्फ ले पाते और आगे ऐसे अन्य धारावाहिक देख सकते? स्ट्रीमिंग वीडियो या ओटीटी हमें दुनिया भर के जो धारावाहिक देखने का अवसर देते हैं वह अभूतपूर्व है।


जिस तरह हम लोग कोलंबिया, स्पेन, जर्मनी, तुर्की और कोरिया से जुड़े शो और फिल्में देख रहे हैं उसी तरह दुनिया भर के लोग भारतीय धारावाहिकों और सीरीज का आनंद ले रहे हैं। पाताल लोक, मिर्जापुर, स्कैम 1992 आदि धारावाहिकों की जड़ें भारत में उतनी ही गहरी हैं जितनी कि हिंटरलैंड की वेल्स में या द मोटिव की स्पेन में। ये स्थानीय कहानियां हैं जिन्हें भारतीय किस्सागो भारतीय भाषाओं में कह रहे हैं। इन कहानियों की स्ट्रीमिंग इन्हें वैश्विक बना रही है। वह भी एक ऐसे अंदाज में जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। नेटफ्लिक्स या एमेजॉन प्राइम वीडियो पर जारी हर भारतीय शो दुनिया के 200 देशों में उपलब्ध है। इनमें से कई की समीक्षा दुनिया के शीर्ष अखबारों में प्रकाशित हो रही है। विदेशों में रिलीज हुईं बड़ी भारतीय फिल्मों मसलन फॉक्स स्टूडियो की माई नेम इज खान (2010) या डिज्नी की दंगल (2016) को भी ऐसी कवरेज नहीं मिली।


बीते दो वर्षों में रीमिक्स, सैक्रेड गेम्स, लस्ट स्टोरीज आदि को अंतरराष्ट्रीय ऐमी अवाड्र्स के लिए नामांकित किया गया था। गत वर्ष दिल्ली क्राइम को एक पुरस्कार मिला भी था।


ये तमाम बातें गत 25 फरवरी को भारत सरकार द्वारा अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिए दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 को चिंता का कारण बनाती हैं। इन नियमों में ओटीटी दिशानिर्देश की बात करें तो वे लगभग वैसे ही हैं जैसे कि इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सरकार को सुझाए थे। इनमें उम्र और विषयवस्तु को लेकर रेटिंग देने तथा पहुंच नियंत्रण के दिशानिर्देश हैं।


सबसे परेशान करने वाली है समस्या निवारण प्रणाली। इसमें नियामकों को भारी छूट दी गई है। इसमें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अंतर विभागीय समिति शामिल है। इससे एक रचनात्मक उद्योग को कितना नुकसान पहुंच सकता है टेलीविजन में देखा जा सकता है। एक दशक से अधिक वक्त से भारतीय टेलीविजन को शुल्क मुक्ति की नियामकीय उलझन में डाल दिया। इससे प्रयोग की गुंजाइश सीमित हो गई और विज्ञापनों पर निर्भर और मौद्रिक दृष्टिकोण से अत्यंत कमजोर विषयवस्तु वाले कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई। चूंकि स्ट्रीमिंग वीडियो में ऐसी कोई बाधा नहीं है इसलिए यहां किस्सागोई करने वालों को रचनात्मक स्वतंत्रता मिली। इससे इन्हें दर्शकों का प्यार मिला और वे चल निकले।


समस्या निवारण व्यवस्था के खिलाफ दो तगड़ी दलील हैं। पहली है निजी बनाम सार्वजनिक दर्शकों की। इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म पर भुगतान करके देखने और बिना भुगतान देखने की दो व्यवस्थाएं हैं। इनमें नेटफ्लिक्स और हॉटस्टार पहले तथा मैक्स प्लेयर और यूट्यूब दूसरी श्रेणी में आते हैं। जिस सामग्री के लिए आप भुगतान करते हैं वह सार्वजनिक प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में उल्लिखित अभिव्यक्ति की आजादी का अपवाद लागू नहीं होता। एक अधिवक्ता के मुताबिक इसे देखते हुए आप निजी, व्यक्तिगत अधिकार का इस्तेमाल करते हैं। परंतु शुल्क मुक्त विषयवस्तु के साथ हालात बदल जाते हैं क्योंकि वह सार्वजनिक प्रदर्शन की वस्तु है। इस मामले में अपवाद का नियम लागू होता है।


दूसरा है कारोबार। कॉमस्कोर के मुताबिक करीब 40 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जो फिलहाल उपलब्ध 60 ब्रांड में से किसी न किसी पर वीडियो देखते हैं। करीब 8,000 करोड़ रुपये का ओटीटी उद्योग दर्शकों और राजस्व दोनों मामलों में दो अंकों में बढ़ रहा है। मीडिया पार्टनर्स एशिया का अनुमान है कि ओटीटी कार्यक्रमों में निवेश 2017 के 1,690 करोड़ रुपये से दोगुना से अधिक बढ़कर 2019 में 4,320 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा था। सन 2020 के आंकड़े अभी नहीं आए हैं, हालांकि इसके 5,250 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है।


हर बड़ा वैश्विक ओटीटी मंच कहानियों पर दो अरब डॉलर से 15 अरब डॉलर की राशि खर्च कर रहा है और भारत को इसमें बड़ा हिस्सा हासिल हो रहा है। इन कार्यक्रमों के दर्शक केवल भारत में ही नहीं बल्कि बाहर भी हैं। उदाहरण के लिए सन 2016 में भारत में आने के बाद से दुनिया के सबसे बड़े सबस्क्रिप्शन आधारित ओटीटी नेटफ्लिक्स ने भारत में 60 से अधिक कार्यक्रम बनाने की घोषणा की है। भारत कार्यक्रमों की दृष्टि से उसके सबसे बड़े बाजारों में से एक है।


तांडव, द सुटेबल बॉॅय तथा अन्य कार्यक्रमों को लेकर हुए विवाद के बाद संपूर्ण रचनात्मक क्षेत्र में चिंता का माहौल है। कई लेखक स्वीकार करते हैं कि वे खुद ही अपनी विषयवस्तु को लेकर सावधानी बरत रहे हैं या फिर उनसे कहा जा रहा है कि वे अपनी कल्पनाशीलता पर लगाम लगाएं। यदि भारतीय किस्सागो अपनी कहानियां नहीं कह पाएंगे तो यह उद्योग भी टेलीविजन की राह पर निकल जाएगा। उस स्थिति में हमारा आकर्षण और पूंजी आदि उन देशों में चले जाएंगे जहां कहानियां कहने की आजादी है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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