- गुलाब कोठारी
विष्णु क्षीर सागर में लेटे हैं। ब्रह्मा उनकी नाभि में रहते हैं। नाभि ही केन्द्र-हृदय-ऋक् कहलाती है। हमारे भी चारों ओर जो आकाश है, वह भी जल समुद्र है। हम भी उसकी गोद में हैं-ब्रह्मा हैं। इस जल का अधिष्ठाता विष्णु प्राण ही है। प्रलयकाल में जब सूर्य नहीं रहता, विष्णु रहता है। सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्मा-विष्णु (अग्नि-सोम) से उत्पन्न होती है। जिस प्रकार यह सोम सूर्याग्नि को प्रज्वलित रखता है, ठीक वैसे ही हमारे शरीर पर भी आहुत होता रहता है।
सृष्टि में अग्नि ही सोम तथा सोम ही अग्नि बनता है। अत: ब्रह्मा-विष्णु-इन्द्र तीनों मूल में अग्नि प्राण हैं। ये ही सृष्टि का हृदय बनते हैं। सूक्ष्म शरीर-अक्षर प्राण-के केन्द्र होता है। हम प्राणियों का हृदय भी ये तीनों प्राण ही हैं। ये ही तीनों शरीरों-कारण-सूक्ष्म-स्थूल-को जोड़े रहते हैं। इन्हीं तीनों प्राणों की गति-आगति का स्पन्दन (प्रवाह) ही हमारी प्रतिष्ठा है। प्राणों का आना ही हमारा श्वास-प्रश्वास है। इनकी ध्वनि ही हमारी धड़कन है। हृदय स्थूल अवयव नहीं है। प्राणिक केन्द्र है जहां मन पैदा होता है।
सोम रूप विष्णु तीनों रूपों में कार्य करता है। घन-तरल-विरल। प्रत्येक पदार्थ की ये तीन अवस्थाएं होती हैं। सोम क्रमश: आप: (जल), वायु, सोम रूप है। सम्पूर्ण आकाश जल का, प्रकाश का आश्रय है, वायु का भी आश्रय है। वायु ही आप: को सूर्य से हटाकर बादल रूप में वर्षा का निमित्त बना देता है। वर्षा ही सूक्ष्म सृष्टि का, जीव की पृथ्वी पर यात्रा का, पार्थिवयज्ञ का कारण है। विष्णु उत्पन्न भी करता है, पोषण भी करता है। सृष्टि जल के बिना नहीं होती।
सोम ही वायु द्वारा सूर्य के हृदयस्थ ब्रह्म का भी पोषण करता है। सभी तैंतीस देवताओं (प्राणों) का उत्पत्ति स्थल सूर्य ही है। पृथ्वी का निर्माण भी जल से ही होता है। हमारे शरीर (पृथ्वी) का निर्माण भी जल से होता है। अत: सम्पूर्ण विश्व, सातों लोक एक-दूसरे से जल से जुड़े हुए हैं।
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