दमन की सत्ता (जनसत्ता)

पड़ोसी देश म्यांमा में जिस तरह के हालात बन गए हैं, वे देश को और ज्यादा गर्त में धकेलने वाले हैं। सैन्य तख्तापलट के खिलाफ पिछले दो महीने से चल रहा देशव्यापी प्रदर्शन बता रहा है कि म्यांमा की जनता अब किसी भी सूरत में सैन्य शासन को स्वीकार नहीं करने वाली।

सेना ने लोकतंत्र समर्थकों के खिलाफ जिस तरह का दमनचक्र चलाया हुआ है, वह म्यांमा के 1988 के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की याद दिला रहा है, जब सेना ने हजारों प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार दिया था। आज फिर वही इतिहास दोहराया जा रहा है। गुजरे शनिवार को सेना ने सौ से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गोलियों से भून डाला। इतना ही नहीं, इन लोगों के अंतिम संस्कार में पहुंचे लोगों पर भी सेना ने गोलियां बरसाईं, जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए और घायल हुए। म्यांमा की सैन्य सत्ता इस वक्त पूरी दुनिया की अपील को नजरअंदाज करती हुई क्रूरता की सारी हदें पार कर रही है और नागरिकों के आंदोलन को पूरी ताकत से कुचलने में लगी है।

म्यांमा में सत्ता की क्रूरता के खिलाफ लोगों का जज्बा देखने लायक है। जैसे-जैसे सैन्य सरकार का दमनचक्र तेज हो रहा है, प्रदर्शनकारियों के हौसले उतने ही बुलंद होते जा रहे हैं। इनमें बच्चे, बूढ़ों से लेकर हर उम्र को लोग हैं, सरकारी कर्मचारी तक शामिल हैं। जाहिर है लोगों में अब सैन्य शासन के दमन को लेकर कहीं कोई भय नहीं रह गया है। वे मरने से नहीं डर रहे, इसीलिए दिनोंदिन उनकी आवाज बुलंद और संघर्ष मजबूत होता जा रहा है। देश के नौजवानों ने आंदोलन को जिस मुकाम पर पहुंचा दिया है, उसका संदेश देश की सैन्य सत्ता के लिए साफ है कि नागरिक किसी भी कीमत पर लोकतंत्र की वापसी चाहते हैं।


इस वक्त हालात चिंताजनक इसलिए भी हैं कि सैन्य सरकार देश में उन जातीय समूहों के खात्मे में लगी है जिन्हें वहां का नागरिक नहीं माना जाता। म्यांमा के इस संकट का नतीजा यह हुआ है कि बड़ी संख्या में लोग बांग्लादेश, भारत, थाइलैंड जैसे देशों में पनाह लेने के पलायन कर रहे हैं। सैन्य सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी आंदोलन को गोलियों की ताकत से दबाया जा सकता है। सच्चाई तो यह है कि ऐसा दमन ज्यादा समय तक नहीं चलता।


म्यांमा की सैन्य सरकार के लिए लोकतंत्र, मानवाधिकार, सहमति, विकास, स्वतंत्रता जैसे शब्द बेमानी हैं। इस मुल्क के सैन्य तानाशाह जिस तरह से देश को हांक रहे हैं, वह उनकी आदिम मनोवृत्ति का ही परिचायक है। हालांकि दुनिया में तमाम ऐसे मुल्क हैं जहां आज भी किसी न किसी रूप में तानाशाही सत्ताएं मौजूद हैं। इन देशों का हाल भी किसी से छिपा नहीं है। दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक राष्ट्रों ने म्यांमा के सैन्य शासकों पर लोकतंत्र बहाली के लिए दबाव तो बनाया है, लेकिन म्यांमा किसी की परवाह नहीं कर रहा।

अपनी आजादी के बाद से इस देश में लंबे समय तक सत्ता सेना के हाथ में रही है और इसका नतीजा यह हुआ है कि प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण यह देश आज बेहद गरीब और पिछड़ा हुआ है। दुनिया के तमाम देशों का इतिहास बताता है कि जब विद्यार्थी और नागरिक सत्ता के खिलाफ उठ खड़े हुए तो बड़ी से बड़ी ताकतवर सत्ताओं की चूलें हिल गर्इं। म्यांमा की सैन्य सत्ता भी इस हकीकत से अनजान नहीं है कि कैसे लोकतंत्र समर्थकों ने वर्षों के आंदोलन के बाद चुनाव में सैन्य सत्ता को खारिज कर दिया था।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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