दोस्ती तक नहीं पहुंचेगी सैन्य वापसी (हिन्दुस्तान)

जयदेव रानाडे, प्रेसिडेंट, सेंटर फॉर चाइना एनालिसिस ऐंड स्ट्रैटजी 


भारत और चीन के विदेश मंत्रियों और सीमा पर सैन्य कमांडरों के बीच हाल ही में बनी सहमति के बावजूद दोनों देशों का आपसी रिश्ता नाजुक बना हुआ है। माना यही जा रहा है कि देपसांग मैदान, डेमचोक, गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स पर वार्ता आसान नहीं होगी, और इसी से पता चल सकेगा कि चीन सीमा पर तनाव कम करने और शांति बहाल करने के लिए गंभीर है अथवा नहीं। लद्दाख के पैंगोंग त्सो के उत्तरी और दक्षिणी तटों से 10 फरवरी से सैनिकों को वापस बुलाने पर बनी सहमति असल में चीनी फौज को उन जगहों से पीछे हटाने का पहला अल्पकालिक कदम है, जहां अप्रैल, 2020 से वह कब्जा जमाए बैठी थी। इसके अलावा, आपसी विश्वास की कमी और द्विपक्षीय वार्ता पर संदेह के बादल हालात को जटिल बना रहे हैं। दरअसल, मई 2020 के बाद से चीन ने लद्दाख से शुरुआत करते हुए 4,057 किलोमीटर लंबी पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जो सैन्य दबाव बनाया, उसके गहरे सामरिक निहितार्थ हैं। बीजिंग सैन्य, नागरिक और कूटनीतिक माध्यमों का एक साथ इस्तेमाल करता रहा है। महत्वपूर्ण यह भी है कि दोनों देशों और लोगों के बीच तथाकथित ऐतिहासिक और पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंध होने के मिथक को भी चीन ने स्पष्ट तौर पर बेपरदा किया है, और यह साफ कर दिया है कि बीजिंग कभी भी भारत के हितों या अच्छे संबंधों के प्रति संवेदनशील नहीं है। इसलिए भारत को इसी संदर्भ में द्विपक्षीय रिश्तों की पड़ताल करनी चाहिए।

ऊंचाई वाले लद्दाख क्षेत्र में नौ महीने से गतिरोध अब भी बना हुआ है, क्योंकि दोनों देश पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आमने-सामने हैं। एक रिपोर्ट ने यह बताया है कि मई महीने के बाद से चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) तिब्बत-भूटान सीमा पर तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में द्रोवा गांव के ठीक सामने एक सैन्य ठिकाना बना रही है। सिक्किम में नाथू ला के सामने यादोंग में उसने एक हवाई अड्डा भी बनाया है। ये ऐसे निर्माण-कार्य हैं, जो तिब्बत-भूटान सीमा पर तनाव बढ़ा सकते हैं। इसी तरह, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का दुष्प्रचार और जन सुरक्षा टीमों का दौरा भी महत्वपूर्ण है, जिन्होंने ग्रामीणों को चीन की सीमाओं के बारे में जानकारी देने के लिए पैंगोंग, शिक्वान्हे, डोमचोक तक यात्रा की और ‘पैंगोंग को अंतरराष्ट्रीय झील’ बनाने की बात कही। इस दरम्यान चीन ने एक वीडियो सम्मेलन भी आयोजित किया, जिसमें नेपाल के नेतृत्व ने ‘एक चीन की नीति’ के लिए काठमांडू की प्रतिबद्धता को दोहराया। नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत के साथ इसी नाजुक समय पर विवादास्पद मुद्दे भी उठाए। चीन के विदेश मंत्री वांग यी अचानक अगस्त में तिब्बत गए। उन्होंने ल्हासा में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के नेताओं से मुलाकात की और पैंगोंग त्सो व चुशूल में सीमावर्ती क्षेत्रों की भी यात्रा की। भारत के बिजली ग्रिड पर एक संदिग्ध साइबर हमला भी हुआ, और सितंबर में वांग यी की भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की मुलाकात के बाद, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के प्रभाव वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स के मुख्य संपादक हू शीजीन ने एक संपादकीय लिखा, जिसमें युद्ध के लिए चीन को तैयार रहने के लिए कहा गया। भारत के खिलाफ बीजिंग की सैन्य कार्रवाई अप्रत्याशित नहीं थी। इसके संकेत 2016 में पीएलए के पश्चिमी थियेटर कमांड की स्थापना के साथ ही मिल गए थे, जो चीन द्वारा नव-निर्मित पांच सैन्य थियेटर कमांड में सबसे बड़ा है। इसका उद्देश्य क्षेत्र में चीन की ताकत को सुनिश्चित करना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) की सुरक्षा करना है। वर्ष 2015 में सीपीईसी की घोषणा के तुरंत बाद, चीन के नेताओं ने भारत से आने वाले मेहमानों, यहां तक कि उच्चस्तरीय दौरे में भी, यह कहना शुरू कर दिया था कि ‘पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करें, तनाव कम करें, कश्मीर मसले का हल निकालें और तब चीन के साथ संबंध सुधारने की तरफ बढ़ें’।  वर्ष 2017 में डोका ला में तनातनी के बाद पीएलए की थल और वायु सेना द्वारा ऊंचाई वाले तिब्बती पठार में प्रशिक्षण-कार्यक्रम आगे बढ़ाए गए। चीनी सैन्य मीडिया में इनके बारे में बताया गया कि ये भारत के खिलाफ तैयारी का हिस्सा हैं।

साफ है, आने वाले दिन अनिश्चित और तनावपूर्ण हो सकते हैं। यहां चाइनीज इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशन्स (सीआईसीआईआर) में दक्षिण एशिया मामलों के विभाग के निदेशक हू शीशेंग के दावे खासतौर से प्रासंगिक हो जाते हैं। यह संस्था चीन की मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी का थिंक टैंक है, जो पोलित ब्यूरो को रिपोर्ट करती रहती है। हू शीशेंग ने दावा किया है कि भारत और चीन अपनी आजादी की शुरुआत और क्षेत्रीय पदानुक्रम बनाने के बाद से ही हितों के टकराव, यहां तक कि सैन्य संघर्ष में मुब्तिला रहने को अभिशप्त हैं। इसी तरह, उन्होंने यह भी महसूस किया कि सीमा विवाद से अधिक जटिल मसले प्रभुत्व स्थापित करने और इस क्षेत्र में श्रेष्ठता हासिल करने की होड़ हैं।

17 दिसंबर को ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित हू शिशेंग का एक लेख तो और भी हैरान करने वाला है। उन्होंने भारत पर चीन के प्रति नकारात्मक और रुकावटी रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, चीन के उदय को रोकने के लिए भारत बहुपक्षीय तंत्र की आड़ में बीजिंग के खिलाफ अवरोध पैदा कर रहा है और ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका के संगठन ‘ब्रिक्स’ व ‘शंघाई सहयोग संगठन’ को महत्वहीन बनाने की कोशिशों में जुटा है। उनका मानना है कि भविष्य में भारत और चीन के बीच खाई बढ़ती जाएगी, क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों में आपसी मतभेद बढ़ेंगे और चीन-भारत सहयोग के लिए अनुकूल माहौल फीका पड़ता जाएगा। ध्यान रहे, दोनों लेखों को प्रकाशित करने से पहले चीन में निश्चित तौर पर उच्च-स्तर पर अनुमति ली गई होगी। बेशक अभी कुछ समय के लिए सैन्य तनाव कम किए जा सकते हैं, पर कदम पीछे हटाने को लेकर चीन में आलोचना हुई है। चीन नई दिल्ली की सरकार को घेरने के लिए और भारत के उभार को कमतर साबित करने के लिए एक अन्य सैन्य दांव खेल सकता है। लिहाजा, पहली बार वार्ता में लेफ्टिनेंट-जनरल और राजनयिक को शामिल करने वाले भारत को यह सुनिश्चित करना  चाहिए कि उसके क्षेत्रीय और संप्रभु हितों से कतई समझौता नहीं किया जाएगा। भारत-चीन संबंध अब ज्यादा दिनों तक पहले जैसे नहीं रहेंगे और भारत को अपनी अर्थव्यवस्था व विकास के महत्वपूर्ण क्षेत्रों से चीन को बाहर करना ही होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

सौजन्य - हिन्दुस्तान।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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