भारत के प्रति पाकिस्तान के रुख में अचानक आए बदलाव से स्वाभाविक ही कई लोगों को हैरानी हुई है। कुछ दिनों पहले ही उसने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम को लेकर सहमति जताई थी और अब उसने निजी कंपनियों के भारत से चीनी, कपास और सूत आयात करने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा है कि जिस तरह यूरोपीय देश शरीफ पड़ोसी की तरह रहते हैं, उसी तरह हमें भी रहने की जरूरत है।
भारतीय उपमहाद्वीप में गरीबी से निपटने के लिए जरूरी है कि दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्तों में सुधार आए। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद तीन सौ सत्तर समाप्त होने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्तों में खासी कड़वाहट आ गई थी, जिसके चलते पाकिस्तान ने भारत से अपने कारोबारी रिश्ते खत्म कर लिए थे। अब इस दिशा में उसने रास्ते खोल दिए हैं, तो दोनों देशों के बीच रिश्तों में आई कड़वाहट दूर करने की पहल की उम्मीद जगी है। उधर पाकिस्तानी सेना ने भी कहा है कि दोनों देशों के बीच अमन बहाली के प्रयास होने चाहिए। इससे जाहिर होता है कि जरूर भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने को लेकर पाकिस्तानी हुक्मरान और सेना के आला अफसरों के बीच कोई रणनीतिक बातचीत हुई है।
यों भारत हमेशा से पाकिस्तान के साथ दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाता रहा है, मगर पाकिस्तान ने उसे कभी गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिनों पहले भारतीय प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान दिवस के मौके पर चिट्ठी लिख कर वहां के प्रधानमंत्री को मुबारकबाद दी थी। इमरान खान ने उसे सकारात्मक रूप में लेते हुए उसका जवाब भेजा है और उसके साथ ही व्यापार के कुछ मामलों में लगे प्रतिबंध हटा दिए हैं। पाकिस्तान इन दिनों भयावह महंगाई और गरीबी से जूझ रहा है।
इसके चलते वहां की सरकार पर चौतरफा दबाव भी बन रहे हैं। ऐसे में उसका भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते खत्म करके रखना किसी भी रूप में लाभकारी साबित नहीं हो सकता। चीनी, कपास, सूत जैसी अनेक चीजें दूसरे मुल्कों की अपेक्षा भारत से मंगाना पाकिस्तान को सस्ता पड़ता है। इसलिए भी इन प्रतिबंधों को हटा कर उसने अपनी बेहतरी की दिशा में एक अच्छा कदम उठाया है। फिर यह भी कि बहुत समय तक भारत के साथ तनातनी का वातावरण बना कर वह अपनी तरक्की के रास्ते में रोड़ा ही अटकाए रख सकता है। बेशक उसे चीन कुछ मदद करने को तैयार दिख रहा हो, पर पाकिस्तान भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि वह उसका स्थायी दोस्त कभी नहीं हो सकता। इसलिए भारत के साथ ही रिश्ते बेहतर करना उसके लिए टिकाऊ विकास की सूरत दे सकता है।
फिलहाल के सूरतेहाल से तो यही लग रहा है कि पाकिस्तानी हुक्मरान और सेना के आला अफसरों के बीच तालमेल बेहतर हो गया है। अब अड़चन वहां के कट्टरपंथी संगठन हैं, जो सरकार पर खासा दबाव बनाए रखते हैं। उन्हें समझाना और नरमी का रुख अपनाने पर रजामंद करना पाकिस्तानी हुक्मरान के लिए जरूरी होगा। वहां की कट्टरपंथी ताकतें न सिर्फ पाकिस्तानी अवाम को भारत के खिलाफ बरगलाती रहती हैं, बल्कि आतंकवाद को भी खत्म नहीं होने देतीं।
भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों की नजर पाकिस्तान की तरफ लगी रहती है कि वह आतंकवाद को खत्म करने के लिए क्या कदम उठाता है। अगर पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों को पनाह देने और भारत के खिलाफ उनके इस्तेमाल पर रोक लगाने में कामयाब हो जाता है तो न सिर्फ दोनों देशों के रिश्ते काफी मजबूत हो सकेंगे, बल्कि पाकिस्तान खुद तरक्की के रास्ते पर तेजी से बढ़ना शुरू कर देगा।
सौजन्य - जनसत्ता।
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