अजय शुक्ला
रक्षा मंत्रालय थलसेना, नौसेना और वायुसेना के पुनर्गठन से संबंधित व्यापक प्रभाव वाले बदलाव का आकलन कर रहा है। इसमें 17 एकल कमानों का कम तादाद वाली संयुक्त सेना कमान में विलय करना शामिल है। ऐसे में तीनों सेनाओं की युद्ध क्षमता में तालमेल बढ़ेगा जो जंग के मैदान में असरदार होगा।
इस जरूरी पुनर्गठन की योजना बनाने, निगरानी करने और अमल के लिए सरकार ने 1 जनवरी, 2020 को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) पद का गठन किया था और तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत को पहला सीडीएस बनाया था। अहम सवाल यह है कि जंग के समय ऐसे कमांडर किसे रिपोर्ट करेंगे? क्या सीडीएस उनके बॉस होंगे जो सीधे ऑपरेशन पर नियंत्रण करेंगे? या फिर वे रक्षा परिषद को रिपोर्ट करेंगे जिसकी अध्यक्षता रक्षा मंत्री करते हैं। सरकार की इच्छा सीडीएस को इकलौता कमांडर बनाने की है। माना जा रहा है कि पूर्वी लद्दाख की तरह भविष्य की लड़ाइयां स्थानीय और क्षेत्र केंद्रित होंगी। ऐसे में उपकरणों को जरूरत के मुताबिक एक से दूसरी जगह स्थानांतरित करना होगा। ऐसे में रक्षा परिषद की लंबी प्रक्रिया से गुजरना सही नहीं होगा और सीडीएस को ऑपरेशन का नियंत्रण देना बेहतर विकल्प होगा। एकीकृत रक्षा स्टाफ को उसका सचिवालय बनाया जा सकता है।
इस बदलाव के लिए सेना सैन्य संचालन महानिदेशालय (डीजीएमओ) के साथ नौसेना और वायुसेना के समकक्षों की अनुमति लेनी होगी। इसके लिए तीनों सेनाओं का एक ऑपरेशन कक्ष बनाना होगा जहां तीनों सेनाएं एक तीन सितारा जनरल के अधीन काम करेंगी। तीनों सेनाओं के प्रमुखों का काम अपनी-अपनी सेना में भर्ती, प्रशिक्षण और उन्हें सक्षम बनाने तक सीमित रह जाएगा। तीनों सेनाओं की शक्तियों में कमी आएगी और सीडीएस की शक्ति बढ़ेगी। दो एकीकृत कमान की रूपरेखा दिख रही है। पहली है राष्ट्रीय हवाई रक्षा कमान जिसका नेतृत्व वायु सेना के पास होगा। दूसरी जिसे जल्द मंजूरी मिलेगी वह है मैरीटाइम थिएटर कमांड (एमटीसी)। इसका नेतृत्व एक एडमिरल के पास होगा। वायु सेना का कहना है कि वह पहले ही देश के हवाई क्षेत्र की रक्षा के लिए जवाबदेह है जबकि नौसेना के अधिकारी यह सोच रहे हैं कि प्रस्तावित एमटीसी में पूर्वी और पश्चिमी दो कमान कैसे शामिल हों। दोनों समुद्री क्षेत्र करीब हैं और इसकी जरूरत नहीं।
एमटीसी की परिकल्पना नौसेना के लिए व्यापक भूमिका में की गई है। नौसेना का तमाम बल और बुनियादी ढांचा, अंडमान और निकोबार कमान की तीनों सेनाओं के अधीन आने वाली सुविधाएं इसमें निहित होंगी। सुलुर एयर फोर्स बेस पर तेजस के दो बेड़े, जामनगर में जगुआर बेड़ा और तंजावुर में सुखोई-30 बेड़ा तथा पोर्ट ब्लेयर स्थित 108 इन्फैंट्री ब्रिगेड सभी एमटीसी के अधीन होंगे। नौसेना तिरुवनंतपुरम स्थित 91 इन्फैंट्री ब्रिगेड भी चाहती है लेकिन सेना इसका विरोध कर रही है। सैन्य प्रतिष्ठानों और प्रशिक्षण विद्यालयों के साथ नौसेना का विस्तार होगा और वह 3 लाख क्षमता वाली मजबूत एकीकृत थिएटर कमान में बदल जाएगी। इसके बावजूद एडमिरल रैंक के अधिकारियों के मन में आशंकाएं हैं। सरकार का इरादा छह-सात एकीकृत कमान तैयार करने का है जिन्हेंक्रियाशील या भौगोलिक आधार पर तैयार किया जाएगा। पहली श्रेणी में सामरिक बल कमान आएगी, राष्ट्रीय हवाई रक्षा कमान आएगी जो हवाई सीमा की रक्षा करती है और एक विशेष बल कमान जो कमांडो यूनिट और गोपनीय ऑपरेशन पर नजर रखेगी। भौगोलिक श्रेणी में एमटीसी आएगी जिसका मुख्यालय कर्नाटक के कारवार में होगा, पश्चिमी थिएटर कमान (डब्ल्यूटीसी) गुजरात से सियाचिन तक भारत-पाकिस्तान सीमा की निगरानी करेगी और उत्तरी थिएटर कमान (एनटीसी) भी काराकोरम दर्रे से लद्दाख और अरुणाचल में किबिथु तक भारत-चीन सीमा पर नजर रखेगी।
एमटीसी का नेतृत्व नौसेना और एनटीसी का सेना के पास होने के बाद डब्ल्यूटीसी वायु सेना के पास रहेगी। पाकिस्तान सीमा की रक्षा चार सैन्य कमान दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम और उत्तरी कमान करती हैं। पश्चिमी एयर कमान और दक्षिण एयर कमान के रूप में दो हवाई कमान भी इस पर केंद्रित हैं। डब्ल्यूटीसी की स्थापना में तीन सैन्य कमान को भी शामिल करना होगा।
ऐसे में लद्दाख जैसे क्षेत्रों में विरासत की समस्या भी सामने आएगी जहां सेना की 14 कोर की दो डिवीजन में से एक पाकिस्तान तो दूसरी चीन से मुखातिब है। शीर्ष प्रबंधन ढांचा बनने के बाद ऐसी दिक्कतों से निपटा जा सकता है। इसे हल करने के लिए करगिल में पाकिस्तान के समक्ष मौजूद डिवीजन को श्रीनगर की 15 कोर के हवाले किया जा सकता है जबकि 14 कोर का दायरा दक्षिण में बढ़ाकर हिमाचल, उत्तराखंड और तिब्बत की सीमा को इसमें शामिल किया जा सकता है। नवगठित एनटीसी को सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को लेकर चिंतित न होना होगा क्योंकि सेना की तीन कोर वहां सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी। सीडीएस का गठन सही कदम है। जिन विषयों पर वर्षों से बात नहीं हुई थी अब वे चर्चा में हैं। मसलन रक्षा मंत्री के साथ सैन्य संवाद का ढांचा क्या होगा? इस ढांचे में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कहां फिट होते हैं? क्या उनकी भूमिका संवैधानिक होगी या वह प्रधानमंत्री के सलाहकार रहेंगे?
इस बौद्धिक मंथन से इतर जनरलों के बीच दो और विचार चल रहे हैं। पहला विचार इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स का निर्माण और उसमें नियुक्तियों के इर्दगिर्द है। इसका लक्ष्य है जंगी मैदान में बदलते हालात के मुताबिक सैनिकों को तेजी से एकत्रित या अलग करना। रावत ने इसे स्थायी संगठनात्मक बदलाव में तब्दील करना चाहा जिसके तहत मेजर जनरल रैंक पर और अधिक नियुक्तियों की बात शामिल है। इसीलिए मंत्रालय ने इसका विरोध किया। दूसरे बदलाव को गत वर्ष चीन की हरकत के बाद गति मिली और वह है सेना के रुख को पारंपरिक पाकिस्तान केंद्रित से चीन के खिलाफ व्यापक तैनाती में बदलना। सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे के नेतृत्व में यह शुरू हो चुका है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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