वीरेंदर कपूर
भारतीयों ने समझा कि घातक कोरोना वायरस खत्म हो गया है और फरवरी, 2021 आते-आते हम खुशहाली की अवस्था में थे। लॉकडाउन की भावना से बाहर निकलकर अर्थव्यवस्था के कायाकल्प पर ध्यान केंद्रित किया जाने लगा। एक तरह से दुश्मन को पराजित कर विजयी होने का भाव था। एक और खुशी की बात थी कि दुनिया के टीकाकरण के लिए कई वैक्सीन सामने आ गई थीं। वैक्सीन निर्माण का प्रमुख केंद्र होने के नाते भारत निश्चित रूप से शीर्ष पर था और हमारे पास दो टीके थे- कोविशील्ड और कोवाक्सिन। इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में फैली 1.3 अरब से अधिक की आबादी का टीकाकरण कैसे किया जाए। जाहिर है, हमारे पास इसकी योजना थी और युद्ध स्तर पर राष्ट्र के लिए एक नियंत्रित एवं विभिन्न स्तरों पर वर्गीकृत टीकाकरण अभियान शुरू करने का निर्णय लिया गया।
टीकाकरण का मुख्य विचार पहले उन लोगों को प्रतिरक्षित करना था, जो सबसे कमजोर थे। इसमें स्वास्थ्यकर्मी, डॉक्टर और सुरक्षा बल जैसे अग्रिम मोर्चे के लोग शामिल थे। इसके अलावा, 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों और 45 साल से अधिक उम्र के सह-रुग्णता वाले लोगों को रखा गया था। इस अभियान की शुरुआत एक मार्च, 2021 से की गई और इन समूहों के लोगों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त एवं निजी अस्पतालों में 250 रुपये की मामूली लागत पर वैक्सीन उपलब्ध थी। शुरू में लोगों में वैक्सीन को लेकर एक झिझक थी, क्योंकि इसका विकास और परीक्षण दोहरी तेजी के साथ किया गया था। विपक्षी राजनेताओं और सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों द्वारा संदेह फैलाया गया, जिसके चलते शुरू में यह अभियान अवरुद्ध हुआ।
सत्ता पक्ष के अधिकांश राजनेता वैक्सीन की सुरक्षा एवं प्रभावशीलता के बारे में आश्वस्त करने लोगों के पास पहुंचे और उन्हें स्वेच्छा से टीकाकरण के लिए राजी किया। टीकाकरण में भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया और एक महीने के भीतर 13 करोड़ लोगों ने टीके की पहली खुराक ली। 130 करोड़ लोगों का टीकाकरण एक बड़ी चुनौती है और हमने औसतन प्रतिदिन पांच लाख लोगों का टीकाकरण किया। भारत की सराहना की जानी चाहिए, क्योंकि श्रीलंका की आबादी 2.2 करोड़ है, इस्राइल की आबादी 90 लाख है और अकेले उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ से ज्यादा है। भारत की इन देशों से तुलना करना जामुन की तुलना तरबूज से करने जैसा है! अब तक सब कुछ अच्छा चल रहा था।
इसी बीच, नए म्यूटेंट के साथ कोरोना की दूसरी लहर आ गई, जिसने समस्या बढ़ा दी और सुनामी की तरह राष्ट्र को हिला दिया। इस बार संक्रमण बहुत तेजी से फैला और भारत में प्रतिदिन तीन लाख से ज्यादा संक्रमण के नए मामले आने लगे और हजारों लोगों की मौत होने लगी। हमारी जन स्वास्थ्य प्रणाली इस उछाल के लिए तैयार नहीं थी। अस्पतालों में बिस्तरों का अभाव, आईसीयू, ऑक्सीजन एवं दवाओं आपूर्ति की कमी। डॉक्टर, अस्पताल के कर्मचारी और परीक्षण प्रयोगशालाएं इस प्रलय के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए चौबीसों घंटे काम कर रहे हैं।
एक बार जब युद्ध जैसा संकट पैदा होता है, तो अराजकता एवं आक्रोश शीर्ष पर होता है। लोग, खासकर मरीजों के रिश्तेदार और मित्र नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं और अक्सर अस्पताल कर्मियों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं, जो वास्तव में असहाय होते हैं। चूंकि वे दिखाई देते हैं और मौके पर मौजूद होते हैं, इसलिए वे खामियाजा भुगतते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे ज्यादा दिखने वाले और 1.3 अरब लोगों के भरोसेमंद नेता हैं। एक आम आदमी को उम्मीद है कि वह हर चीज का तुरंत हल ढूंढ लेंगे। इसलिए वह सबकी आलोचना का शिकार होते हैं।
जब आप कहते हैं कि सरकार सो रही थी, तो इसका क्या मतलब है? भारत जैसे विशाल देश पर शासन करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित भूमिकाओं के साथ एक उचित संघीय ढांचा है। देश में 29 राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेश हैं और सभी राज्यों के अपने-अपने मुख्यमंत्री हैं। उनके पास पर्याप्त कर्मचारियों के साथ एक पूर्ण सचिवालय है। स्वास्थ्य राज्य का विषय है और अस्पतालों के लिए लाइसेंस, क्षमता बढ़ाना, उपकरण, स्टाफ, बजट सहित स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हर चीज राज्यों द्वारा अलग-अलग की जाती है। अस्पतालों की निगरानी भी राज्यों द्वारा होती है और हर राज्य में एक स्वास्थ्य मंत्री होता है, जिनके अधीन तीन से चार वरिष्ठ नौकरशाह होते हैं। उनमें से कई भारतीय प्रशासनिक सेवा से आते हैं।
गणना करें, तो पाएंगे कि कुल 36 संस्थानों (राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों) में 36 मंत्री होते हैं और प्रति मंत्री औसतन चार नौकरशाह का हिसाब लगाएं, तो 144 नौकरशाह होते हैं। यानी कुल 180 लोग 1.3 अरब भारतीयों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की देखभाल करते हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होते हैं। उनके अधीन भी एक राज्यमंत्री होता है। सचिवालय में स्वास्थ्य सचिव, कम से कम तीन अतिरिक्त सचिव, एक दर्जन से अधिक सचिव और कई उप सचिव/ निदेशक होते हैं। यह कुल मिलाकर लगभग 30 बुद्धिजीवियों का एक अच्छा समूह है, जिनमें से कई आभिजात्य आईएएस कैडर के हैं। वरिष्ठ राजनेताओं और नौकरशाहों के राज्य ढांचे के साथ इस समूह को जोड़ दें, तो कुल 210 लोग मात्र जन स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जिम्मेदार हैं।
जन स्वास्थ्य के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार इनमें से कोई भी व्यक्ति कोरोना की दूसरी लहर की गति का अनुमान नहीं लगा सका? जबकि उनके सामने पश्चिमी देशों के पिछले उदाहरण थे, जिन्होंने कोरोना की दूसरी लहर का सामना किया और परेशानी भुगती। नतीजतन लगभग हर चीज की कमी पड़ गई-बिस्तर, दवा और ऑक्सीजन। आप इसके लिए डॉक्टरों या नर्सिंग स्टाफ को दोष नहीं दे सकते। राजनीतिक नेतृत्व को हमेशा संबंधित कर्मचारियों, सेना या अन्य द्वारा जानकारी दी जाती है। सूचनाओं का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता है, न कि हर मामले में ऊपर से नीचे की ओर। नौकरशाही इसमें विफल रही और बड़े पैमाने पर चूक गई। दुर्भाग्य से वे अब मीडिया का सामना करने के बजाय छिप रहे हैं, जो दिखने वाले आइकन को निशाना बना रहा है। निष्पक्ष होकर कहें, तो यह उचित नहीं है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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