अवधेश कुमार
इस महाआपदा के दौर में दो घटनाओं और उनसे जुड़ी कुछ तस्वीरों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। भारत का तो विशेषकर। इसमें पहली घटना थी, इस्राइल में मास्क की अनिवार्यता को खत्म करना। इस्राइल की एक 35 वर्षीय महिला ने अपना मास्क हटाते हुए जिस तरह का वीडियो पोस्ट किया, उसका संदेश यही था कि देखो हमने कोरोना पर विजय पा ली है। कुछ दूसरी तस्वीरें अलग-अलग रूपों में ब्रिटेन से आईं। लंबे समय बाद 12 अप्रैल को पूर्व घोषणा के अनुसार जिम, पब, सैलून आदि खोले जा चुके हैं। कोरोना आपदा से जुड़ी पाबंदियां काफी कम होने के बाद वहां के लोग जिस तरह पब, रेस्तरां, सांस्कृतिक केंद्र, थिएटर आदि में एकत्रित होते दिख रहे हैं, उनका संदेश भी यही है। हालांकि ब्रिटेन ने अभी कोरोना से पूरी तरह मुक्त होने की घोषणा नहीं की है, पर सरकार और स्वास्थ्य विभाग की ओर से देश भर में संदेश चला गया है। इस्राइल दुनिया का पहला देश बना है, जिसने स्वयं को कोरोना मुक्त घोषित किया है। विश्व के ज्यादातर देश ऐसी घोषणा करने का साहस नहीं कर पा रहे।
निस्संदेह, ये दृश्य हम भारतीयों को ललचाने वाले हैं। हमारे मन में भी प्रश्न उठ रहा है कि कब हम इस्राइल या ब्रिटेन के लोगों की तरह फिर से खुलकर जीवन जी सकेंगे? यहीं पर इस्राइल के चरित्र को समझना जरूरी हो जाता है। रेगिस्तान के बीच बसाए गए इस छोटे से देश ने अपने परिश्रम, अनुशासन, समर्पण और दृढ़ संकल्प के साथ न सिर्फ अपनी धरती को हरियाली से लहलहाया, बल्कि अनेक मामलों में विश्व के विकसित देशों के समानांतर स्वयं को खड़ा किया। कोरोना में भी पूरे देश ने ऐसा ही अनुशासन दिखाया। एक बार मास्क लगाने की घोषणा हो गई, तो फिर किसी ने उस पर प्रश्न नहीं उठाया। लोगों ने सामाजिक दूरी का पूरी तरह पालन किया। इसके लिए वहां की पुलिस, सेना या सरकार की अन्य एजेंसियों को हमारे देश की तरह कसरत नहीं करनी पड़ी। क्योंकि सबका अंतर्भाव यही था कि एक देश के रूप में हमें कोरोना पर विजय पाना है।
इसी तरह उसने टीकाकरण अभियान चलाया। आज वहां 16 से 80 वर्ष तक के 81 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण हो चुका है। ब्रिटेन ने भी कोरोना आपदा का कम संघात नहीं झेला है। वहां के राजपरिवार के सदस्य, प्रधानमंत्री सहित कई मंत्री, संसद सदस्य, उच्च अधिकारी कोरोना संक्रमित हुए, उनमें से कई की जानें भी गईं। लंबे समय तक देश में कोहराम मचा रहा। ब्रिटेन भी ऐतिहासिक रूप से एक अनुशासित देश रहा है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में उसके राष्ट्रीय अनुशासन में कमी आई है। ब्रिटेन तीन बार में 175 दिनों का सख्त लॉकडाउन लागू करने वाला देश है।
इतनी बड़ी अवधि का लॉकडाउन झेलना कितना कठिन होगा, यह हम भारतीयों से बेहतर कौन जान सकता है! ध्यान रखिए, कोरोना वायरस के जिस घातक वेरिएंट की बात भारत में हो रही है, उसका उद्भव ब्रिटेन से ही पता चला था। ब्रिटेन ने उस वेरिएंट पर लगभग काबू पा लिया है। अगर ब्रिटेन ऐसा कर सकता है, तो हम क्यों नहीं? अगर इस्राइल कोरोना मुक्त हो सकता है, तो भारत क्यों नहीं? इन प्रश्नों का उत्तर हमें तलाशना होगा। निस्संदेह, इस्राइल और ब्रिटेन भारत की तुलना में अत्यंत कम आबादी वाले देश हैं। इस्राइल की कुल जनसंख्या 93 लाख के आसपास होगी। इसी तरह ब्रिटेन की आबादी सात करोड़ से नीचे है।
वास्तव में हम उस तरह का राष्ट्रीय संकल्प और उसके प्रति दृढ़ अनुशासन नहीं अपना पाते, क्योंकि उस तरह का भाव हमारे यहां स्वाभाविक रूप से विद्यमान नहीं है। निस्संदेह, केंद्र एवं राज्य सरकारों के कोरोना प्रबंधन में भारी कमियां दिखती रही हैं। सरकार को हम दोष दे सकते हैं, लेकिन क्या समाज के अंग के रूप में हम सबने कोरोना पर सजगता संकल्प और अनुशासन दिखाया है, जैसा इस्राइल और ब्रिटेन और कुछ दूसरे देशों में देखा गया? यकीन मानिए, हम भी इन देशों की श्रेणी में शीघ्र खड़े हो सकते हैं, यदि केंद्रीय सत्ता से लेकर राज्य सरकारें, स्थानीय शासन, धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक-व्यापारिक समूह और शैक्षणिक संस्थानों सहित एक-एक भारतीय कोरोना पर विजय के राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप खुद को समर्पित कर दे।
सौजन्य - अमर उजाला।
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