यदा यदाहि... (पत्रिका)

- गुलाब कोठारी

समय आ गया है भीतर के कृष्ण को जगाने का। हर व्यक्ति के भीतर बैठा है:-

'ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।' (गीता 18/61)
उसने मानव जाति को आश्वासन भी दिया है:-
'परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥' (गीता 4/8)

आज केवल भारत में ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में मानव जीवन चरमरा उठा है। त्राहि-त्राहि मच रही है। भविष्य के संकेत सुख का आश्वासन भी नहीं दे रहे। कोरोना का असुर किसी भी दूसरी महामारी से बड़ा होता जा रहा है। पहले अपना परिचय दे गया था। हमने हल्के में लिया और मान बैठे कि भगा दिया साऽऽऽले को। निकल पड़े सड़कों पर, बेधड़क होकर-मानो 'हम चौड़े, सड़कें छोटी।'

अहंकार की सीमा नहीं होती। यही बुद्धिजीवियों की पहचान होती है। हरिद्वार में महाकुंभ की घोषणा कर दी। दक्षिण-पूर्व के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव घोषित कर दिए। हर तरफ मानो संक्रमितों की बाढ़ आ गई। स्थान कम पड़ गए; डॉक्टर, अस्पताल और ऑक्सीजन कम पड़ गए। केवल वैक्सीन के भरोसे इतना बड़ा झंझावत कैसे नियंत्रण में आएगा? श्मशानों की स्थिति दिनों-दिन वीभत्स होती जा रही है। न प्रशासन ने कुंभ रोका, न ही मुख्य चुनाव आयुक्त ने चुनावों को। सबको अपनी-अपनी मूंछ का सवाल बड़ा लग रहा है। मरे कोई, इनकी बला से।

ऐसा नहीं है कि प्राकृतिक आपदा पहले कभी न आई हो। अकाल तो राजस्थान की मुख्य पहचान रहा है। बाढ़ देश के कई प्रदेशों (असम-बिहार जैसे) में हर साल ताण्डव करती आई है। भूकम्प के झटके भी धरती को हिलाते रहे हैं। फिर भी आज के कोरोना का वातावरण भिन्न है। मानो इंसान का इंसान से मिलना अपराध हो गया। बिना चुनाव लड़े हर व्यक्ति अपने बाड़े में बन्द रहने को मजबूर हो रहा है। एक-एक करके शहरों में लॉकडाउन या कफ्र्यू लगने शुरू हो गए। उद्योग फिर से बन्द हो रहे हैं, पलायन का ज्वार चढऩे लगा है। स्कूलें बंद, बच्चे टीवी पर। कार्यालयों पर इस बार बड़ी और लम्बी अवधि की गाज गिरने वाली है। कोरोना की दूसरी लहर, पहली लहर से अधिक प्राणलेवा साबित हो रही है। असर भी लम्बे काल तक दिखाई पड़ रहा है। शास्त्रों में सुनते आए हैं कि कलियुग के बाद प्रलय आती है। यदि हम नहीं जागे और सरकारों के भरोसे बैठै रहे, तो आ भी सकती है।

कभी नहीं! हर्गिज नहीं आने देंगे। इस बार विश्व को दिखा देंगे कि आज भी भारत विश्व गुरु है-कल भी रहेगा। हमें 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का नारा दोहरा देना है। यह आपातकाल भयंकर है तो हम भी कम नहीं हैं। हर व्यक्ति, हर समाज को इस युद्ध में अपनी पहचान मिटाकर माटी का कर्ज चुकाने के लिए कूद पडऩा है। 'सामूहिक सेवा, घर-घर सेवा', 'नर सेवा ही नारायण सेवा', 'परहित सरिस धर्म नहीं भाई...।' ऐसे कई उद्घोष याद हैं हमको। कोरोना के दो मुख्य निर्देश हैं-मास्क लगाओ, दूरी बनाकर रखो। जिस प्रकार हवा में रोग फैल रहा है, दूरियां भी कितनी कारगर होंगी? सरकारें तो इससे ज्यादा कारगर नहीं होने वाली। इनको तो जीत के जुलूस निकालने दें। हमें तो अपनी रक्षा स्वयं करनी है। अपने बूते पर। 'पत्रिका' के भरोसे। चौबीस घंटे, चौबीस कैरेट के विश्वास के साथ। कई तरह की बाधाएं आने वाली हैं। सरकारें अपना काम करें। हमें तो कोरोना से जंग की कमान अपने हाथ में ले लेनी है। पलायन करने वालों के साथ पिछली बार क्या हुआ था, याद होगा।

हर व्यक्ति कोरोना-कर्मवीर बन जाए। जरूरी सामग्री और जरूरी सूचना पहुंचने में रुकावट न आए। अपने-अपने मोहल्ले के प्रत्येक घर में तन-मन-धन से मदद पहुंचानी है। जरा चूके, तो घर वाले भी शत्रु साबित हो सकते हैं। कोरोना की लड़ाई भी आजादी की लड़ाई से कम नहीं, जहां हर व्यक्ति अपने घर में कैद है।

आज देश में 2-2 लाख लोग प्रतिदिन संक्रमित हो रहे हैं। संक्रमितों की मौत का आंकड़ा भी चिंता पैदा कर रहा है। पिछले चौबीस घंटों में ही 1341 जनों की मौत हो गईं। कहीं ऑक्सीजन की कमी की शिकायतें आ रहीं हैं तो कहीं वैक्सीन की। महाराष्ट्र में तो जैसे सरकारी इंतजामों की परीक्षा हो रही है। कल तक चौबीस घंटे में वहां नए संक्रमित 64 हजार के करीब थे। प्रदेशों में भी संक्रमण और मौतों के रोज नए कीर्तिमान बनते दिख रहे हैं। राजस्थान में तो एक्टिव केस 50 हजार के पार हो चुके हैं। इधर केन्द्र सरकार का दावा है कि12 करोड़ पात्र लोगों को टीका लग चुका है। लेकिन टीके की यह रफ्तार क्या संक्रमण की शृंखला को जल्दी ही तोड़ पाएगी? चुनाव परिणामों के बाद यह आंकड़ा कहां पहुंचेगा, कहा नहीं जा सकता। दो दिन पहले के ही आंकड़े बता रहे हैं कि एक पखवाड़े में ही चुनाव वाले राज्य, पश्चिम बंगाल में 420 फीसदी, असम में 532 फीसदी, तमिलनाडु में 159 फीसदी, केरल में 103 फीसदी व पुड्डुचेरी में कोरोना संक्रमण के165 फीसदी केस बढ़ गए। इन राज्यों में मौतों में भी औसतन 45 फीसदी का इजाफा हुआ।

सत्ता के मतवाले आज भी लाखों लोगों की जानें चुनाव में झौंककर सत्ता के गीत गा रहे हैं। कोई कानून उनको रोकने में सक्षम दिखाई नहीं देता। जैसे अपराधियों को चुनाव लडऩे से रोकने वाला कोई नहीं है। लोगों को कोरोना से बचाने की तस्वीर भी देश के सामने स्पष्ट है। हमको ही अपने जीवन को बचाने के लिए मिल-जुलकर संघर्ष करना पड़ेगा। कहते हैं कि-आप मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता। गड़ जाओ जमीन में-बांट दो छाया और फल समाज को-पेड़ बनकर। विश्व में यह चमत्कार केवल भारत में ही देखा जाता है। कर दिखाओ, इस बार भी। पत्रिका साथ-साथ है, गांव-गांव है।

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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