आर सुकुमार, एडिटर इन चीफ, हिन्दुस्तान टाइम्स
भारत में कोरोना वायरस महामारी से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा दो लाख से पार चला गया है। चूंकि यहां सामान्य तौर पर होने वाली मौतों की नियमित जानकारी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है, इसके लिए लंबी समयावधि की आवश्यकता होती है, ताकि देखा जा सके कि साल में कितनी मौतें सामान्य रूप से होती हैं। ऐसे में, कोरोना से होने वाली मौतों को सटीक ढंग से सामान्य मौतों से अलग कर पाना मुश्किल है।
इसका अकेला तरीका यह है कि कुछ अन्य मानकों का सहारा लिया जाए। जैसे फिलहाल चर्चा में बने हुए कुछ मॉडल मौतों की संख्या कम दर्ज कराए जाने को एक हकीकत मानकर चल रहे हैं। इस लिहाज से दो मान्यताओं के आधार पर तय करना अच्छा रहेगा। एक यह कि कोविड-19 में संक्रमण से होने वाली मौतों की दर, यानी संक्रमित हुए लोगों में मरने वालों का अनुपात, और दूसरा है, दर्ज हुए मामलों के साथ न दर्ज कराए गए या पकड़ में ही न आए संक्रमण के मामलों का अनुपात। इनमें दूसरे वाला अनुपात 10, 15 या 20, 25 का भी हो सकता है। और पहला अनुपात वायरल संक्रमणों के बारे में हमारी सामान्य जानकारी के अनुसार, 0.1 प्रतिशत (हाथ रोककर) हो सकता है। यह मैं पाठकों पर छोड़ता हूं कि वे इस गणित को कैसे समझते हैं, क्योंकि यह एक काल्पनिक कसरत है। हालांकि, यह हिन्दुस्तान टाइम्स और अन्य मीडिया समूहों की जमीनी रिपोर्टिंग से भी जाहिर है कि हर राज्य में आधिकारिक रूप से दर्ज की गई मौतों (जो राज्यों के स्वास्थ्य विभागों से मिली जानकारियों के आधार पर हिन्दुस्तान टाइम्स के डैशबोर्ड पर नजर आती हैं) और हर रोज कोविड-19 संक्रमितों के दाह-संस्कार और दफनाने के रूप में जाहिर होने वाली मृत्यु संख्या में भारी अंतर है। संक्रमण अध्ययन के ज्यादातर मॉडल्स का मानना है कि मई के तीसरे हफ्ते तक नए मामलों का बढ़ना रुक जाएगा, लेकिन अभी से इस पर कुछ कहना मुश्किल है। ज्यादातर राज्यों में पॉजिटिविटी रेट (जांच के दौरान पाए गए संक्रमितों का प्रतिशत) उस स्तर पर है, जहां से इसका तेजी से कम होना असंभव प्रतीत होता है (या फिर अगर ऐसा हुआ, तो इससे आंकड़ों की हेराफेरी या कमी का संदेह ही मजबूत होगा), और कुछ राज्यों (मुख्य रूप से महाराष्ट्र) में तो भारत में कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान भी पॉजिटिविटी रेट का ग्राफ तुलनात्मक रूप से बहुत ऊंचा था। इन कुछ जमीनी उदाहरणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि देश में कुछ सकारात्मक अनुमानों के बावजूद आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण के मामलों और उससे होने वाली मौतों का बढ़ना जारी रह सकता है।
आम बातचीत से पता चलता है कि ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की कमी के कारण भी कुछ मौतें हुई हैं, और ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि देश के कई हिस्सों में अधिक संख्या में संक्रमण के मामले सामने आने से हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत भार पड़ गया है। इसका यह भी मतलब है कि एक बार अगर कोविड रोगियों की सेवा में जुटे अस्पतालों में चिकित्सकीय ऑक्सीजन की आपूर्ति और वितरण सुचारु हो जाए (जिसके प्रयास शुरू हो गए हैं और सप्ताह के अंत तक इसके पूरा होने के संकेत हैं), तो मौतों की संख्या भी घटनी शुरू हो जाएगी। हम साफ देख रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर से लड़ने में ऑक्सीजन की कमी एक प्रमुख अड़चन के रूप में हमारे सामने आई है- और यहां यह याद रखना जरूरी है कि देश को कोरोना की तीसरी लहर के लिए भी तैयार रहना है, जिसका किसी न किसी बिन्दु पर उभरना तय है। कोरोना के टीके भी संक्रमण की दूसरी लहर को तोड़ने और तीसरी लहर की प्रचंडता को कम करने में बहुत मददगार हुए हैं, लेकिन इन टीकों की आपूर्ति और लोगों तक उपलब्धता के बारे में बहुत कम जानकारी है। भारतीय बाजार में उपलब्ध कोरोना के टीकों की खुराक को लेकर स्पष्टता नहीं है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और निजी खरीदारों के स्तर पर भी स्थिति साफ नहीं है। भारत की दो बड़ी घरेलू वैक्सीन उत्पादक कंपनियों, सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक की निर्यात संबंधी संविदाओं के बाद देश में इनकी आपूर्ति किस तरह या कितनी होगी, ठीक से कहा नहीं जा सकता। इस बारे में भी कोई स्पष्टता नहीं है कि रूस निर्मित वैक्सीन स्पुतनिक वी की कितनी खुराक भारत में उपलब्ध होगी (कितनी आयात की जाएगी और कितनी भारत में बनाई जाएगी)।
लोगों के बीच जो भी सीमित जानकारी उपलब्ध है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत को जितने कोरोना टीकों की आवश्यकता है, उतने की आपूर्ति संभव नहीं हो पाएगी। अब जबकि मई की पहली तारीख से भारत में टीकाकरण का तीसरा चरण शुरू होने वाला है, तब भी यह पता नहीं चल पा रहा है कि जिन राज्यों ने वैक्सीन के लिए ऑर्डर दिए हैं, उन्हें वैक्सीन की खुराक कब तक मिल पाएगी। हमें इनकी उपलब्धता और समय के बारे में जानकारी की सख्त आवश्यकता है। और हमें वैक्सीन की व्यवस्था को लेकर ऐसीनिश्चित रणनीति बनानी होगी कि इसकी पूर्ण या दोनों खुराक के बजाय पहली खुराक को प्राथमिकता दी जाए, ताकि इस महामारी से ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाया जा सके। (खासकर कोविशील्ड वैक्सीन, जो 90 प्रतिशत लोगों को दी गई है)। अगर अगले छह हफ्तों तक ऐसा संभव हो पाए, तो भारत इस दूसरी लहर को तोड़ सकता है और तीसरी के लिए खुद को तैयार कर सकता है।
सौजन्य - हिन्दुस्तान।
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