प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने नियमित रेडियो संबोधन में कहा कि 'कोरोना की पहली लहर का सफलतापूर्वक सामना करने के बाद देश उत्साह और आत्मविश्वास से भरा हुआ था लेकिन दूसरी लहर के तूफान ने देश को हिलाकर रख दिया है।' यह अतीत के अति आत्मविश्वास की स्वीकारोक्ति नहीं है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक माहौल में प्रधानमंत्री ऐसी ही स्वीकारोक्ति कर सकते हैं। सवाल यह है कि क्या इस तूफान ने सरकार को इतना हिलाया है कि वह न केवल वायरस को लेकर बल्कि महामारी के कारण उजागर हुई शासन की बुनियादी कमियों को लेकर कुछ सवाल कर सके। यकीनन हाल के दिनों में नीतियों में कुछ अहम बदलाव हुए हैं। इनमें सबसे अहम है 1 मई से 18 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू करना और विदेशों में नियामकीय मंजूरी हासिल करने वाले टीकों के आपात इस्तेमाल को मंजूरी देना। ऐसे अन्य कौन से बदलाव हैं जिन्हें मंजूरी दी जानी चाहिए?
सबसे पहले सरकार को निजी क्षेत्र के लिए टीके की कीमतों को नियंत्रण मुक्त रखने की इच्छाशक्ति को बरकरार रखना होगा। इसके अतिरिक्त टीका निर्माताओं को समुचित आपूर्ति समर्थन देना होगा। सरकार को आगे चलकर अपने 150 रुपये प्रति खुराक के टीका खरीद मूल्य का भी नए सिरे से परीक्षण करना होगा। यह बात भी ध्यान देने वाली है कि पहले यही अनुमान था कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से खरीदी जाने वाली पहली 10 करोड़ खुराक ही इस मूल्य पर ली जाएंगी। टीका निर्माताओं पर ऐसा दबाव नहीं बनाना चाहिए कि वह इस शुरुआती कीमत पर ही टीका बेचें। टीके की कीमत का ऐसा स्तर तय किया जाना चाहिए जो रियायती भी हो और टीका निर्माता को क्षमता विस्तार के लिए समुचित प्रतिफल भी दे। केंद्र और राज्य सरकारों के लिए टीकों की अलग-अलग कीमतों का मसला भी ऐसे में हल हो जाएगा।
सरकार को दो अन्य मसलों पर भी कदम उठाने की आवश्यकता है जो उसकी शासन की नीति को लेकर व्यापक असर डाल सकते हैं। उसे यह भी स्वीकार करना होगा कि आत्म निर्भरता की नीति टीके के मामले में प्रभावी ढंग से काम करती हुई नहीं नजर आई है। टीकों की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि उनके निर्माण में लगने वाले कच्चे माल की आवक किसी भी तरह प्रभावित न होने पाए। सरकार को अमेरिका जैसे देशों से बात करके यह सुनिश्चित करना चाहिए था। इन हालात में किसी एक देश से होने वाली आपूर्ति के भरोसे पर रहना उचित नहीं था। टीकों को लेकर जो हालात बने हैं उन्हें एक चेतावनी की तरह लेते हुए हमें आत्म निर्भरता के नाम पर लागू शुल्क एवं गतिरोध की नीति में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।
दूसरी बात यह है कि सरकार को आंकड़ों के मामले में पूरी पारदर्शिता बरतनी चाहिए। ऐसे आंकड़ों की अनुपस्थिति में महामारी के असर का आकलन कर पाना काफी मुश्किल है। प्रधानमंत्री ने बार-बार जोर दिया है कि आरटी-पीसीआर पद्धति से अधिक से अधिक जांच की जाए। आगे चलकर स्पष्ट और विश्वसनीय अध्ययन किए जाने चाहिए ताकि पता चल सके कि मौजूदा टीके वायरस के नए स्वरूपों पर किस हद तक कारगर हैं। इससे न केवल जनता का भरोसा मजबूत होगा बल्कि इससे यह अनुमान लगाने में भी आसानी होगी कि देश में कब तक सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता हासिल हो सकती है और हमें टीके की बूस्टर खुराक पर खर्च की तैयारी करनी चाहिए या नहीं। पारदर्शी और उच्च गुणवत्ता वाले आंकड़ों की मदद से सूचित नीतिगत और सार्वजनिक विकल्प प्रस्तुत करना केंद्र का दायित्व है। महामारी से सरकार को यह संदेश मिल जाना चाहिए।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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