अंधेरे में उजास की आस (दैनिक ट्रिब्यून)

जब बृहस्पतिवार को पूरे देश में पौने चार लाख नये संक्रमितों के मामले सामने आए और साढ़े तीन हजार से अधिक लोगों की मौत हुई, देश में कोरोना संकट की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। तंत्र की संवेदनहीनता देखिये कि इस भयानक होते संकट के बीच पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जारी था । डरे-सहमे चुनाव कर्मियों के हुजूम के चुनाव सामग्री एकत्र करने के चित्र अखबारों में प्रकाशित हुए। इसी बीच टीकाकरण के तीसरे चरण के लिये ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में भारी उत्साह बताता है कि देश का जनमानस इस संकट में वैक्सीन को ही अंतिम सुरक्षा उपाय के रूप में देख रहा है। पहले ही दिन सवा करोड़ से अधिक नामांकन होना इसी बात का संकेत है। हालांकि देश में पहले दो चरणों में पंद्रह करोड़ लोगों द्वारा वैक्सीन करवाया जा चुका है लेकिन देश की आबादी के अनुपात में यह काफी नहीं है। यहां सवाल यह भी है कि 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को टीका लगाने के लिये क्या वैक्सीन उपलब्ध है? क्या देश की दो वैक्सीन कंपनियां समय से पहले इतने टीके उपलब्ध करा पायेंगी? धीरे-धीरे देश में यह धारणा बलवती होने लगी है कि फिलहाल टीकाकरण ही कोरोना का अंतिम सुरक्षा कवच है। लेकिन तेजी से फैलते संक्रमण के बीच टीकाकरण केंद्रों का सुरक्षित होना भी एक चुनौती है। इस दौरान टीका लगाने की गति में कमी आई है। वहीं महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ने कह दिया है कि टीकों की उपलब्धता न होने से वे एक मई से 18 साल से अधिक की उम्र के लोगों को टीका देने में समर्थ नहीं हैं। राजस्थान ने इस वर्ग के लिये सवा तीन करोड़ खुराक की बुकिंग कराई है, लेकिन सीरम इंस्टीट्यूट का कहना है कि वह मई मध्य तक ही ये टीके उपलब्ध करा पायेगा। लॉकडाउन से गुजर रहे महाराष्ट्र ने भी बारह करोड़ खुराक की मांग की है।


सरकार ने पिछले दिनों विदेशी टीकों के लिये भी दरवाजे खोले हैं, लेकिन इससे भी मौजूदा जरूरतें पूरी नहीं होती। जाहिर है ऐसे में देश की दोनों वैक्सीन निर्माता कंपनियों को युद्धस्तर पर टीकों का उत्पादन करना होगा। यह अच्छी बात है कि सीरम इंस्टीट्यूट के टीके के लिये जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति पर अमेरिका ने रोक हटा दी है। ऐसे में जरूरी है कि संकट की स्थिति को देखते हुए देश में उपलब्ध टीका निर्माण क्षमता का उपयोग करके अन्य कंपनियों से भी सहयोग किया जाना चाहिए। साथ ही जो अन्य टीके अंतिम चरण में हैं, उन्हें स्वीकृति की जटिल प्रक्रिया से राहत देने का प्रयास करना चाहिए। यह इसीलिये भी जरूरी है कि कुछ राज्यों ने तीसरे चरण के टीकाकरण को टीकों की आपूर्ति में कमी और अनुपलब्धता के चलते टालने का मन बनाया है। इस बीच एक अच्छी खबर यह है कि अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. फाउची ने कहा है कि भारत में बनी कोवैक्सीन भारत में कहर बरपा रहे नये वेरिएंट बी.1.617 के खिलाफ असरदार है। उन्होंने कहा कि भारत में जिन लोगों ने यह वैक्सीन ली है, उनके विश्लेषण में पाया गया है कि कोवैक्सीन ज्यादा असरदार है। इस मुहिम के बावजूद एक दुखद पहलू यह है कि देश में राजनीतिक नेतृत्व इस संकट की घड़ी में एकजुट नहीं है और क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिये निर्लज्ज राजनीति का प्रदर्शन कर रहा है जो राजनेताओं की संवेदनहीनता को ही उजागर करता है। यह एक हकीकत है कि देश का स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा चरमरा चुका है। जो बताता है कि संकट की भयावहता को राजनीतिक नेतृत्व ने गंभीरता से नहीं लिया और उनकी प्राथमिकता चुनावों तक ही सीमित रही है। ऐसे वक्त में जब दुनिया के तमाम मुल्क भारत में कोविड संक्रमितों की मदद के लिये आगे आ रहे हैं, भारतीय राजनीति के क्षत्रप राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में लगे हैं। पंजाब में आसन्न चुनाव के लिये सत्तारूढ़ दल के दिग्गजों के बीच टकराव की खबरें हाल ही मीडिया में सुर्खियां बनती रहीं जबकि संकट की घड़ी में उनकी प्राथमिकता महामारी के पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की होनी चाहिए।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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