कोविड की दूसरी लहर : अमरीका का अनुभव बन सकता है मददगार (पत्रिका)

आशीष के. झा

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत अब कोरोना का एपिसेंटर (केंद्रबिन्दु) बनने के साथ ही बड़ा संकट झेल रहा है। अस्पताल कोविड मरीजों से पूरी तरह भरे हुए हैं। राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में भी ऑक्सीजन की भारी कमी है। आधिकारिक रूप से, हर दिन लगभग दो हजार लोगों की मौत हो रही है। ज्यादातर विशेषज्ञों का अनुमान है कि वास्तविक रूप से मृतकों की संख्या पांच से दस गुना ज्यादा हो सकती है। निकट भविष्य में यदि ऐसे ही हालात रहे, तो दक्षिण एशिया और विश्वपर इसका ज्यादा असर पड़ेगा। दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमरीका, इस महामारी से बचाव में वैश्विक सहयोगी बना है। यहां तीन चीजें महत्त्वपूर्ण हैं, जो अमरीका कर सकता है और उसे करनी भी चाहिए। पहला, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा मामले में अमरीका भारत का सहयोग करे।

मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए टेस्टिंग के लिए भारत का बुनियादी ढांचा पर्याप्त नहीं है। कोविड काल में अमरीका ने अपनी परीक्षण क्षमता को अच्छी तरह से बढ़ाया है। अब उसके पास ज्यादा टेस्टिंग किट हैं, ऐसे में वह इन किट को आसानी से भारत भेज सकता है। अमरीका, भारत के साथ मिलकर रणनीति बना सकता है कि कैसे और कहां इन किट का इस्तेमाल करना है। कोरोना से संक्रमित लोगों की वायरस के तेज गति से फैलाव में बड़ी भूमिका होती है। टेस्टिंग के दौरान कोरोना के लक्षणों का पता लगने पर महामारी को नियंत्रित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। भारत के पास टेस्टिंग की सीमित क्षमता है। भारत प्रारम्भिक स्तर पर, उन लोगों का सैंपल टेस्ट कर रहा है, जो काफी पहले से वायरस को दूसरों में फैला चुके हैं। ऐसे में महामारी को नियंत्रित करने में सैंपल टेस्ट कम ही असरकारी साबित हुआ है।

टेस्टिंग के अलावा, भारत के लिए अपने अगली पंक्ति के डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को उच्च गुणवत्ता वाले पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स) और आम आबादी को उच्च गुणवत्ता वाले मास्क उपलब्ध कराना लाभकारी होगा। अमरीका ने कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी पूरी क्षमता का प्रदर्शन किया है। अपने अनुभवों से लाभ लेते हुए वह भारत को उच्च गुणवत्ता वाले मास्क भेजने के लिए अमरीकी निर्माताओं के साथ मिलकर काम कर सकता है।

दूसरी बात, कोविड-19 के मरीजों के इलाज में भारत की क्षमताओं को सहारा देना होगा। भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है। कई अस्पतालों में पहले से ही बेड एवं जीवनरक्षक प्रणालियां नहीं हैं और हालात के बेहतर होने से पहले ही ज्यादा बदतर होने की आशंका है। फील्ड अस्पताल तैयार करने, मरीजों की शिफ्टिंग आदि के लिए अमरीका को भारत के साथ मिलकर गंभीरता से काम करना चाहिए। बेड के अलावा भारत को तत्काल ऑक्सीजन की आपूर्ति किए जाने की भी जरूरत है। भारत सरकार ने हाल में पचास हजार मीट्रिक टन लिक्विड ऑक्सीजन खरीदने की घोषणा की है। आबादी और मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है। अमरीका के पास उत्पादन क्षमता है। वह ज्यादा ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में भारत की मदद कर सकता है।

भारत जरूरी दवाओं की कमी से तो जूझ ही रहा है, साथ ही उन मरीजों के लिए भी दवाओं की कमी हैं, जो वेंटिलेटर पर हैं। कोविड इलाज में काम आने वाली रेमडेसिविर दवा की कम आपूर्ति है और कमी भी है। सौभाग्य से, कई गंभीर बीमारियों में काम आने वाली दवा डेक्सामेथासोन भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध है, लेकिन भारत में नकली और घटिया दवाओं के जाल को देखते हुए, अमरीका उच्च गुणवत्ता वाली डेक्सामेथासोन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है। अमरीका के पास मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज का पर्याप्त भंडार है, जिसका इस्तेमाल किया जाना है। ये उपचार बीमारी की प्रारम्भिक अवस्था में काफी कारगर हैं। ऐसे में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को भारतीय ड्रग नियामकों के साथ मिलकर काम करना चाहिए कि कैसे भारत में उसका सबसे अच्छा उपयोग किया सके।

अंतिम रूप से, भारत की वैक्सीन आपूर्ति बढ़ानी होगी। बाइडन प्रशासन को भारत और अन्य देशों को वैक्सीन की आपूर्ति में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। भारत हर रोज बीस से तीस लाख टीकाकरण कर रहा है। वैसे तो यह अमरीका के लगभग बराबर है, पर भारत की चार गुना ज्यादा आबादी को देखते हुए अपर्याप्त है। भारत अभी तक अपनी आबादी का केवल दस फीसदी ही वैक्सीनेशन कर सका है। कुछ अनुमानों के अनुसार, एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की कम से कम 30 मिलियन खुराक को अमरीका में अभी तक काम में नहीं लिया गया है। इसके पीछे कारण है- एफडीए ने इसका अभी तक अनुमोदन नहीं किया है। अमरीका में इसके घरेलू उपयोग की सम्भावना भी नहीं है। अब हमें इसे भारत को भेज देना चाहिए। हमें योजना बनानी चाहिए, ताकि फाइजर, मॉडर्ना और जॉनसन एंड जॉनसन विदेशों में अपनी वैक्सीन की ज्यादा आपूर्ति कर सकें।

भारत संकट में है। महामारी में भारत की मदद करने में अमरीका के रणनीतिक हित भी हैं। ऐसा करने का यह सही समय भी है। यह अमरीका ही है, जिसके पास भारत में फैली विनाशकारी दूसरी लहर को हराने की क्षमता, संसाधन और तकनीकी जानकारी है। जितनी तेजी से अमरीका सहयोग का हाथ बढ़ाएगा, ज्यादा से ज्यादा जिंदगियों को बचाने में कामयाबी मिलेगी। संकट के समय अमरीकी लोकतंत्र को आगे आना चाहिए, जिसकी अब दुनिया को जरूरत है। अमरीका के लिए यह बेहतर होगा और वह पृथ्वी को सुरक्षित स्थान बनाने में भी अपनी भूमिका निभाए।

(लेखक स्वास्थ्य नीति शोधकर्ता और ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन हैं)

सौजन्य - पत्रिका।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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