एन.के. सोमानी,
पृथ्वी दिवस के मौके पर आयोजित जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में दुनिया के शीर्ष नेताओं ने जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों पर गहनता से विचार-विर्मश किया। सम्मेलन में अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने साल 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 30 फीसदी तक घटाने की घोषणा की है। बाइडन ने दुनिया के अन्य नेताओं से भी आग्रह किया कि वे अपने-अपने देशों में गैसों के उत्सर्जन को रोकने का प्रयास करें, ताकि जलवायु परिर्वतन की त्रासदी से बचाया जा सके। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पहल पर बुलाए गए शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश के विकास की चुनौतियों के बावजूद हमने स्वच्छ ऊर्जा, प्रभाविता और जैव विविधता को लेकर कई साहसिक कदम उठाए हैं। भारत का कार्बन उत्सर्जन आज भी वैश्विक औसत से 60 फीसदी कम है। वर्चुअल प्लेटफार्म पर आयोजित शिखर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री के अलावा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा, ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसनारो, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, इजरायल के प्रधानमंत्री बैंजामिन नेतन्याहू, तथा सऊदी अरब के किंग शाह सलमान सहित दुनिया के 40 से अधिक देशों के शीर्ष नेता उपस्थित हुए।
शिखर बैठक में जो बाइडन ने 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन 30 फीसदी तक घटाने का एलान कर यह साबित कर दिया है कि वे पेरिस समझौते में अमरीका की वापसी के लिए प्रतिबद्ध हैं। दरअसल, बाइडन ने अपने कार्यकाल के पहले दिन पेरिस समझौते में अमरीका की वापसी की घोषणा की थी।
पृथ्वी को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को निश्चित सीमा तक बनाए रखने के उद्देश्य को लेकर सन् 1992 में रियो-डी-जेनेरियो में पृथ्वी सम्मेलन के अवसर पर पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में दी यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज नामक एक अंतरराष्ट्रीय संधि की गई। इस संधि का उद्देश्य तेज गति से बढ़ रहे वैश्विक तापमान में कमी लाने के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना था। अक्टूबर 2016 तक 191 देश इस समझौते पर हस्ताक्षर कर चुके थे। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सिंतबर 2016 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर कर इसके प्रावधानों को स्वीकार किया था। गौरतलब है कि 4 नवंबर 2016 को पेरिस जलवायु समझौता औपचारिक रूप से अस्तित्व में आ गया था। साल 2017 में ट्रंप ने समझौते से हटने की घोषणा कर दी थी।
कोई संदेह नहीं कि अगर अमरीका फिर समझौते में शामिल हो जाता है, तो कार्बन-डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आएगी, क्योंकि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में करीब 15 फीसदी हिस्सेदारी अकेले अमरीका की है। ऐसे में अगर अमरीका समझौते में वापस लौटता है, तो इससे जलवायु संकट कम करने में मदद मिलेगी।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं)
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