दबदबे की रणनीति (जनसत्ता)

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में सैन्य दबदबा बनाए रखने का इरादा जाहिर कर दिया है। उनके इस फैसले में चीन को लेकर बढ़ती चिंताओं की झलक साफ दिख रही है। अगर अमेरिका अपने से काफी दूर समुद्री भूभाग पर सैन्य मजबूती के साथ बने रहने की ठाने हुए है तो इसके पीछे उसकी दूरगामी नीतियां भी हैं।

वह दूर की सोच कर चल रहा होगा। वरना कोई देश क्यों दूसरे महाद्वीपों में अपना सैन्य जमावड़ा बढ़ाएगा? जैसा कि बाइडेन ने अमेरिकी कांग्रेस को बताया है कि वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने इरादों के बारे में बता चुके हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र में स्थिति मजबूत बनाने के पीछे मकसद किसी संघर्ष का नहीं, बल्कि शक्ति संतुलन बनाए रखना है। दरअसल, चीन की विस्तारवादी नीतियों से अमेरिका की नींद उड़ी हुई है। दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर और जापान से लगते प्रशांत महासागर में कहीं चीन अपना बर्चस्व न कायम कर ले, इसीलिए अमेरिका उसे साधने में लगा है।

लंबे समय से अमेरिका और चीन के बीच रिश्तों में जिस तरह का तनाव देखने को मिल रहा है, वह मामूली नहीं है। अगर आज अमेरिका अपने सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में किसी को खड़ा देख रहा है तो वह चीन ही है। दुनिया के बाजारों से लेकर महासागरों तक को अपने कब्जे में लेने के लिए दोनों देशों में प्रतिस्पर्धा का अंतहीन सिलसिला चल रहा है। व्यापार युद्ध अभी थमा नहीं है। दुनिया के बाजार पर आधिपत्य के लिए दोनों देश एक दूसरे को पछाड़ने वाली व्यापार नीतियों पर चल रहे हैं। दुनिया जिस महामारी की मार झेल रही है, अमेरिका को उसके पीछे भी चीन का हाथ लग रहा है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तो बाकयदा इसकी जांच से लेकर जासूसी जैसे कदम तक उठाए थे। गौरतलब है कि अंतरिक्ष में भी चीन दुनिया की बड़ी ताकत बन चुका है। अब तो वह अपना अंतरिक्ष स्टेशन भी अलग से बनाने जा रहा है। इसके अलावा रूस और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ चीन के मजबूत रिश्ते अमेरिका के लिए भारी पड़ रहे हैं। जाहिर है, वैश्विक राजनीति में भी अमेरिका चीन की बढ़ती ताकत को पचा नहीं पा रहा।

यह याद रखा जाना चाहिए कि हिंद प्रशांत क्षेत्र दुनिया का समुद्री कारोबार का सबसे महत्त्वपूर्ण रास्ता भी है। यह सामरिक लिहाज से भी संवेदनशील है। दक्षिण चीन सागर में तो चीन ने अपने सैन्य अड्डे तक बना रखे हैं। वियतनाम, फिलीपीन जैसे देशों की समुद्री सीमा पर अतिक्रमण की घटनाएं किसी से छिपी नहीं हैं। जापान के साथ सेनकाकू प्रायद्वीप को लेकर टकराव बना हुआ है। ताइवान को लेकर भी चीन और अमेरिका के बीच अप्रिय स्थितियां देखने को मिलती रही हैं।

साफ है कि हर तरह से चीन अमेरिका के लिए बड़ी मुश्किल बन रहा है। ऐसे में चीन की घेरेबंदी के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी बनाना अमेरिका की जरूरत भी है। आॅस्ट्रेलिया, भारत और जापान को साथ लेकर अमेरिका ने जो क्वाड संगठन खड़ा किया है, उसके मूल में भी यही रणनीति है। गौरलतब है कि चीन ने वर्ष 2027 तक अपनी सैन्य ताकत को अमेरिका के बराबर लाने का लक्ष्य रखा है। चीन अमेरिकी विदेश नीति का एक संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। अमेरिका में राजनेताओं से लेकर उद्योगपति तक चीन के खिलाफ सख्त नीतियों और कदमों की मांग कर रहे हैं। ऐसे में अमेरिका और चीन किस तरह का संतुलन बना कर आगे बढ़ते हैं, इस पर सारी दुनिया की नजर रहेगी।

सौजन्य - जनसत्ता।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment