देश के कई हिस्सों में, खासकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के अस्पतालों में कोविड-19 के संक्रमित मरीजों की बाढ़ आई हुई है। इसके चलते चिकित्सकीय उपयोग की सामग्री की आपूर्ति बहुत बुरी तरह बाधित हुई है। खासतौर पर ऑक्सीजन की कमी एक बड़ा संकट बनकर उभरी है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि महामारी की इस लहर में ज्यादातर लोगों को शुरुआती दौर में ही सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़़ रहा है। ऐसे में ऑक्सीजन की उपलब्धता बहुत महत्त्वपूर्ण है। घर पर इलाज करा रहे लोगों के साथ अस्पतालों के जनरल वार्ड और गहन चिकित्सा कक्षों में भी निरंतर ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ रही है।
यह स्पष्ट है कि ऑक्सीजन की उपलब्धता के मामले में अस्पतालों को रोज कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया आम लोगों और अस्पतालों की ओर से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की अपील से अटा पड़ा है। कई उच्च न्यायालयों और खासकर दिल्ली उच्च न्यायालय में भी बड़े अस्पतालों और अस्पतालों की शृंखलाओं की ओर से अपील दायर की गई हैं कि उन्हें ऑक्सीजन मुहैया कराई जाए। ऑक्सीजन आपूर्ति की समस्या उस समय बुरे ढंग से सामने आई जब बुधवार को नाशिक में दो दर्जन मरीज इसलिए जान गंवा बैठे क्योंकि अस्पताल को ऑक्सीजन मुहैया कराने वाला टैंक लीक हो गया।
देश में ऐसे हालात नहीं बनने देने चाहिए थे। हालिया रिपोर्ट बता रही हैं कि देश में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की तादाद बढ़ाने संबंधी आदेश को निविदा तक का सफर तय करने में आठ माह लग गए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 162 संयंत्रों की योजना थी लेकिन केवल 33 संयंत्र स्थापित किए गए। इसके चलते आम लोग और अस्पताल ऑक्सीजन खरीदने के लिए आपाधापी में लग गए। कंपनियों ने औद्योगिक इस्तेमाल की ऑक्सीजन दान करना शुरू किया और सरकार ने भी हजारों टन ऑक्सीजन का आयात शुरू किया। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि मई के अंत तक 80 संयंत्र तैयार हो जाएंगे लेकिन पहले ही काफी देर हो चुकी है। यह बात देश में जन स्वास्थ्य के कमजोर ढांचे को उजागर करती है। केंद्र और राज्य सरकारों के पास ऑक्सीजन की इस कमी का कोई उचित बचाव नहीं है। इस अति आत्मविश्वास की इकलौती वजह यही हो सकती है कि सरकार को लगा हो कि देश में महामारी की दूसरी लहर नहीं आएगी।
ऑक्सीजन की भारी कमी के बीच उसके वितरण का संस्थागत ढांचा पूरी तरह ध्वस्त हो रहा है। बड़े ऑक्सीजन संयंत्रों को अन्य राज्यों में अपने अनुबंध पूरे करने से रोका जा रहा है। दिल्ली में इससे खास समस्या आ रही है क्योंकि यहां के अस्पताल उत्तर प्रदेश और हरियाणा के संयंत्रों पर आश्रित हैं। इन राज्यों की सरकारी मशीनरी ने दिल्ली को ऑक्सीजन आपूर्ति रोकी है या उसमें देर की है। एक व्यवस्थित देश में ऐसा नहीं चल सकता। यह खेद की बात है कि उच्च न्यायालयों को दखल देकर राज्यों के बीच ट्रकों की आवाजाही सुनिश्चित करनी पड़ रही है। जबकि यह केंद्र का दायित्व है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस समस्या का स्वत: संज्ञान लिया है और एक राष्ट्रीय नीति लाने को कहा है। आशा की जानी चाहिए कि इससे उच्च न्यायालय जरूरी कदम उठाना बंद नहीं करेंगे। कुल मिलाकर हालात की जवाबदेही केंद्र सरकार की है और उसे तत्काल यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह ऑक्सीजन की कमी कैसे दूर करने वाली है। ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति का अनुमान क्या है तथा वह अस्पतालों की ऑक्सीजन आपूर्ति कैसे सुनिश्चित करेगी? गुरुवार को प्रधानमंत्री ने एक उच्चस्तरीय बैठक में ऑक्सीजन वितरण सुधारने और जमाखोरी रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कही। आशा है कि सरकार अपनी बातों पर अमल करेगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment