असम विधानसभा चुनावों के लिए 27 मार्च तथा 1 अप्रैल को दो चरणों में मतदान के बाद सभी की नजरें 6 अप्रैल को होने जा रहे अंतिम चरण के मतदान पर हैं। हालांकि, नतीजे के लिए 2 मई तक का इंतजार करना होगा। असम में अब तक का चुनाव काफी विवादास्पद रहा है।
कई जगह हिंसक घटनाओं की बात सामने आई है लेकिन सबसे ज्यादा विवाद असम के करीमगंज जिले में निवर्तमान भाजपा विधायक और उम्मीदवार कृष्णेंदु पाल के निजी वाहन से ‘इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ अर्थात ई.वी.एम. बरामद होने के परिणामस्वरूप पैदा हुआ है। ई.वी.एम. बरामद होने के मामले को लेकर राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आने के बाद चुनाव आयोग ने 4 मतदान अधिकारियों को निलम्बित कर दिया और राताबाड़ी सीट के एक मतदान केन्द्र में नए सिरे से मतदान कराने का आदेश दिया।
दरअसल 1 अप्रैल को 39 सीटों के लिए वोटिंग समाप्त होने के केवल कुछ घंटे बाद ही सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया था जिसमें एक प्राइवेट कार में ई.वी.एम. ले जाते हुए दिखाया गया था। जहां तक मतदाताओं को लुभाने के लिए प्रलोभनों का सम्बन्ध है, देश भर में होने वाले चुनावों में मुफ्त में चीजें देने के वायदे सुनाई देना आम बात है जिनमें साइकिल, टी.वी. से लेकर लैपटॉप तक शामिल हैं। वोट खरीदने के लिए पैसे तक दिए जाने या व्हिस्की पिलाने तक का चलन भी देखने को मिलता रहा है।
हालांकि, इस बार असम के चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए इससे भी कहीं अधिक तथा बेहद चिंताजनक रुझान भी देखने को मिल रहा है। दरअसल, असम में होने वाले चुनावों के लिए अक्सर ‘बी.एम.डब्ल्यू’ ‘कोड वर्ड’ का उपयोग किया जाता रहा है। इसका मतलब ‘ब्लैंकेट’ (कम्बल), ‘मनी’ (धन) तथा ‘वाइन’ (शराब) से है। हालांकि, विभिन्न एन्फोर्समैंट एजैंसियों द्वारा की जा रही नशों की बड़ी मात्रा में बरामदगी को देखते हुए लगता है कि इस बार के चुनावों में ‘बी.एम.डब्ल्यू’ का स्थान ड्रग्स ने ले लिया है।
26 फरवरी को ‘आदर्श चुनाव आचार संहिता’ लागू होने से 31 मार्च के मध्य एन्फोर्समैंट और रैगुलेटरी एजैंसियों ने असम से रिकॉर्ड 110.83 करोड़ रुपए मूल्य की नकदी, अवैध शराब तथा अन्य चीजें जब्त की हैं। अधिकारियों का कहना है कि चुनाव प्रचार के दौरान नकदी, शराब तथा अन्य कीमती चीजों का पकड़ा जाना एक आम बात है परंतु सबको हैरानी 34.29 करोड़ रुपए का नशा पकड़े जाने से है। वोटों के लिए लुभाने के मकसद से बांटने के लिए जमा भारतीय तथा विदेशी ब्रांड की सिगरेट तथा तम्बाकू उत्पादों की बरामदगी ही रिकॉर्ड 14.91 करोड़ तक पहुंच चुकी है। जब्त किए गए ड्रग्स में 6892.82 किलो गांजा, 10.27 किलो ‘क्रिस्टेलाइन मैथामफेटामाइन’, 4.22 किलो ‘हेरोइन’, 1 किलो ‘मोर्फीन’ तथा 252.85 ग्राम ‘ब्राऊन शूगर’ शामिल हैं। निगरानी टीमों ने ‘मैथामफेटामाइन’ के 3,02,188 कैप्सूल तथा नशे वाली अन्य गोलियां भी जब्त की हैं।
उल्लेखनीय है कि असम के अधिकतर चाय बागान पूर्वी असम में ही हैं तथा स्टेट नोडल अफसर राहुल दास के अनुसार, ‘‘सबसे अधिक ड्रग्स पूर्वी असम में ही पकड़े गए हैं।’’ ‘एक्साइज एंड रैवेन्यू इंटैलीजैंस’ अधिकारियों के लिए यह एक परेशान करने वाला रुझान है क्योंकि असम के अन्य हिस्से पहले से ही नशा तस्करी के लिए कुख्यात हैं। इनमें बराक घाटी भी है जिसका इस्तेमाल नशा तस्कर म्यांमार-मिजोरम-बंगलादेश के बीच ‘हैरोइन’, ‘मैथामफेटामाइन’ तथा ‘हाई-कोडेइन कफ सिरप’ को अवैध रूप से लाने-ले जाने के लिए करते हैं। पश्चिम असम का धुबड़ी जिला भी इसके लिए बदनाम है। एक एक्साइज अफसर के अनुसार, ‘‘दक्षिण अरुणाचल प्रदेश तथा नागालैंड में गांजा पकड़ा जाना सामान्य है। दरअसल, वे अन्य नशे वाली चीजें हैं जिनकी बरामदगी को लेकर हम चिंतित हैं।’’
स्पष्ट है कि असम में चुनाव जीतने के लिए लोग कुछ भी कर गुजरने के लिए आतुर हैं। यही बात हम देश के दूसरे राज्यों के लिए भी कह सकते हैं। अगर पश्चिम बंगाल में असीमित धन और अत्यधिक हिंसा का चुनाव को जीतने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है तो तमिलनाडु, केरल और पुड्डुचेरी में भी हालात अलग नहीं हैं। इससे पहले कि हमारे लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हो जाएं चुनाव आयोग में संशोधन लाने की आवश्यकता है मगर सवाल यह है कि ऐसा कौन सी सरकार करना चाहेगी।
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असम चुनावों में वोटरों को लुभाने के लिए खतरनाक नशों का चलन (पंजाब केसरी)
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