महामारी संक्रमण की दूसरी लहर के बीच सरकारी अस्पतालों की हालत किसी से छिपी नहीं है। बेड और ऑक्सीजन की किल्लत के बीच दम तोड़ते लोगों की खबरें हमें विचलित करती हैं। निस्संदेह तंत्र की चूक और समय रहते संकट का आकलन न कर पाना इस महामारी को भयावह बना गया। जो अस्पताल सामान्य दिनों में ही मरीजों को पर्याप्त इलाज नहीं दे पा रहे थे, उनसे महामारी में उपचार की उम्मीद करना ही बेमानी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों के स्तर पर भी यह बताने की चूक हुई है कि इस नयी और अनजान बीमारी से संक्रमित होने पर उपलब्ध संसाधनों के आधार पर जीवन कैसेे बचे। गाहे-बगाहे रोग को लेकर तमाम बेसिर-पैर की खबरें आती हैं। लोग उन्हें सच मानकर जरूरी दवाओं को जमा करना शुरू कर देते हैं। दूसरे गंभीर रोगों की दवाइयां और इंजेक्शन कोरोना उपचार में वैकल्पिक रूप से इस्तेमाल करने मात्र से उनकी कीमतें आसमान छूने लगती हैं। रेमडेसिविर की कालाबाजारी की भी यही वजह थी। आखिर भय-असुरक्षा के माहौल में जनता किस दिशा में चले, यह प्रामाणिक जानकारी देने वाला कोई नहीं था। कायदे से तो रोज चिकित्सा मामलों के विशेषज्ञों द्वारा देश की जनता को भ्रम-भय से बाहर निकालने की प्रामाणिक जानकारी दी जानी चाहिए थी। अब जब देश में रोज संक्रमितों का आंकड़ा सवा तीन लाख पार कर रहा है, कोरोना के उपचार को लेकर एम्स, आईसीएमआर, कोविड-19 टास्क फोर्स, ज्वाइंट मॉनिटरिंग ग्रुप की नयी गाइड लाइन्स सामने आई हैं, जिसमें कोरोना के वयस्क मरीजों के लिये दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं। जिसमें रोगियों को माइल्ड, मॉडरेट और गंभीर श्रेणी में बांटा गया है। माइल्ड श्रेणी में वे रोगी आएंगे जो हल्के संक्रमण में तो हैं, मगर उन्हें सांस लेने में दिक्कत नहीं होती। मॉडरेट श्रेणी में वे आएंगे, जिनके कमरे की हवा में ऑक्सीजन का स्तर 93 से 90 के बीच है। वहीं गंभीर श्रेणी में वे आएंगे, जिनका ऑक्सीजन स्तर नब्बे प्रतिशत से कम है।
दरअसल, हल्के संक्रमण वाले रोगियों को घर पर एकांतवास में रहने, बचाव के उपाय अपनाने तथा चिकित्सीय परामर्श लेने की सलाह दी गई। मध्यम श्रेणी को ऑक्सीजन सपोर्ट के लिये वार्ड में भर्ती होने की सलाह दी गई है। मरीज के गंभीर होने पर चेस्ट सीटी स्केन और एक्सरे की सलाह भी दी गई है। वहीं गंभीर श्रेणी के मरीजों को आईसीयू में भर्ती करने तथा रेस्पिरेटरी सपोर्ट देने का परामर्श है। दरअसल, हाल के दिनों में साठ साल से अधिक उम्र के जीवनशैली के रोगों से पीडि़त रोगी संक्रमण से गंभीर रूप से पीड़ित हुए। कमोबेश इसी वर्ग में मृत्यु दर अधिक पायी गई है। तभी गंभीर और मध्यम श्रेणी के उन रोगियों को रेमडेसिविर के इस्तेमाल की सलाह दी गई, जिन्हें ऑक्सीजन पर रखने की जरूरत नहीं है। वहीं स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऑक्सीजन की कमी महसूस कर रहे रोगियों को प्रोनिंग विधि के इस्तेमाल की सलाह दी है, जिससे वे घर अथवा अस्पताल में भर्ती होते हुए भी चिकित्सीय दृष्टि से सम्मत विधि से ऑक्सीजन लेवल दुरुस्त कर सकते हैं जो ऑक्सीजन किल्लत के बीच राहतकारी हो सकता है। जिन मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है, उन्हें प्रोनिंग के जरिये ऑक्सीजन लेवल सुधारने की सलाह दी गई है। गाइडलाइन में बताया गया है कि पेट के बल लेटकर गहरी सांस लेने की प्रोनिंग प्रक्रिया उन लोगों के लिये उपयोगी है जो घर पर ही एकांतवास में सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहे हैं और ऑक्सीजन का स्तर 94 से नीचे चला गया हो। यह विधि 80 फीसदी तक कारगर है। इससे सांस लेने और ऑक्सीजन का स्तर सुधरता है। इतना ही नहीं, आईसीयू में भर्ती मरीजों में भी इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं जो वेंटिलेटर न मिलने की स्थिति में भी कारगर हैै। इस विधि में पेट के बल लेटकर तकिया इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। जिन्हें गर्दन, सीने के नीचे से लेकर जांघ तक तथा पैर के नीचे रखने की सलाह दी जाती है। बीच-बीच में स्थिति बदलते रहना चाहिए और किसी भी अवस्था में तीस मिनट से अधिक नहीं रहना चाहिए। साथ ही दिल के रोगों तथा गर्भावस्था में इससे बचना चाहिए। यह प्रक्रिया 24 घंटे में से 16 घंटे तक करके सांसों की गति को सुधारा जा सकता है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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