ड़ॉ. जयंतीलाल भंड़ारी
निस्संदेह कोरोना की दूसरी घातक लहर ने देश के औद्योगिक और आÌथक राज्यों में रोजगार और प्रवासी मजदूरों के पलायन की गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। कोरोना संक्रमण बढ़ने का जो चिंताजनक परिoश्य दिखाई दे रहा है‚ उससे देश में आÌथक और रोजगार चुनौती और बढ़ेगी। यही कारण है कि हाल ही में गोल्डमैन सैश ने अपनी रिपोर्ट–२०२१ में भारत की आÌथक वृद्धि दर पहले के अनुमान से घटाकर १०.५ फीसदी कर दी है।
ऐसे में देश भर में कोविड–१९ की नई चुनौतियों के कारण उद्योग–कारोबार और श्रमिकों की बढ़ती चिंताओं के मद्देनजर कुछ विशेष रणनीतिक कदम उठाए जाने जरूरी हैं। सरकार के द्वारा गत वर्ष २०२० में कोविड–१९ की पहली लहर के बीच घोषित की गई वित्तीय मदद एवं ऋण में सहायता जैसे विभिन्न उपाय अब फिर दोहराए जाने होंगे। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों ने जिस तरह गरीबों के लिए तीन महीने तक मुफ्त राशन देने का ऐलान किया है‚ उसी तरह की व्यवस्था विभिन्न तरह के लॉकडाउन जैसे सख्त कदम उठाने वाले अन्य राज्यों में भी की जानी होगी। इस समय कोरोना से प्रभावित हो रहे उद्योग–कारोबार को राहत देने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेचिदगियां भी कम की जानी होंगी। सूIम‚ लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए नई राहत शीघ्र घोषित की जानी होगी।
हाल ही में २० अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में राज्यों से अपील की है कि वे श्रमिकों का विश्वास बनाए रखें और श्रमिकों को पलायन करने से रोकें। श्रमिकों के लिए काम और कोरोना वैक्सीन‚ दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित करें। ऐसे में लॉकडाउन जैसी कठोर पाबंदी लगाने वाली राज्य सरकारों और नियोक्ताओं के द्वारा श्रमिकों और कर्मचारियों को भरोसेमंद तरीके से उनके कार्यस्थल या आवास पर रु कने की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन जो श्रमिक अपने घर लौटना चाहते हैं‚ उन प्रवासी श्रमिकों के लिए उपयुक्त परिवहन व्यवस्था भी सुनिश्चित की जानी होगी।
ऐसे में मनरेगा एक बार फिर उन प्रवासी श्रमिकों के लिए जीवन रक्षक बन सकता है‚ जो दूसरी बार गांव लौटेंगे। गांवों में लौटते प्रवासी कामगारों के रोजगार के लिए मनरेगा को प्रभावी बनाया जाना होगा। चालू वित्त वर्ष २०२१–२२ के बजट में मनरेगा की मद पर रखे गए ७३‚००० करोड़ रु पये के आवंटन को बढ़ाया जाना होगा। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष २०२०–२१ में ११ करोड़ लोगों को काम मिला‚ जो २००६ में योजना लागू होने के बाद सबसे बड़ी संख्या है। इस दौरान करीब ३९० करोड़ कार्यदिवस का सृजन हुआ‚ यह भी मनरेगा लागू होने के बाद सर्वाधिक है। करीब ८३ लाख कामों का सृजन भी मनरेगा के तहत वित्त वर्ष २०२०–२१ में किया गया‚ जो वित्त वर्ष २० की तुलना में ११.२६ प्रतिशत ज्यादा है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि करीब ७८ लाख परिवारों ने इस योजना के तहत १०० दिन काम पूरा किया‚ जबकि औसत रोजगार ५२ दिन का रहा है।
यह भी जरूरी है कि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए देश में कोरोना वैक्सीन निर्माण पूरी क्षमता से किया जाए और टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया जाए। कोई एक साल पहले जब देश में कोरोना संक्रमण की पहली लहर शुरू हुई थी‚ तब देश में कोरोना की रोकथाम के लिए कोरोना वैक्सीन से संबंधित शोध और उत्पादन के विचार आने से शुरू हुए थे। लेकिन यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले एक वर्ष में भारत ने कोविड–१९ टीका विकसित कर लिया। देश में टीके के सबसे कम दाम हैं। १६ जनवरी‚ २०२१ से देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। टीकाकरण में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की ‘कोविशील्ड' तथा स्वदेश में विकसित भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन' का उपयोग किया जा रहा है। कोविड–१९ टीकाकरण के लिए भारत का डिजिटल बुनियादी ढांचा वरदान बन गया है। देश की अर्थव्यवस्था और उद्योग–कारोबार के लिए २० अप्रैल को केंद्र सरकार ने टीका वितरण के जो नये दिशा–निर्देश जारी किए हैं‚ वे भी उपयुक्त रूप से क्रियान्वयन किए जाने होंगे।
नये निर्देशों के तहत १ मई से १८ वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीयों को टीका लगाया जा सकेगा। यह वह वर्ग है‚ जो आÌथक गतिविधियों में सबसे सक्रिय भूमिका निभाता है। इसके साथ–साथ पहले की तरह केंद्र सरकार ४५ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के अलावा स्वास्थ्यकÌमयों और अग्रिम पंक्ति पर काम करने वालों के निःशुल्क टीकाकरण का दायित्व बनाए रखेगी। साथ ही‚ अब देश में बनने वाले कोरोना टीकों में से आधे टीकों पर केंद्र सरकार का अधिकार रहेगा। राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपनी उपयुक्तता के अनुरूप कोरोना टीका उत्पादक देशी या विदेशी कंपनियों से टीके की खरीदी तथा अपने प्रदेश में टीका लगाने संबंधी उपयुक्त निर्णय ले सकती हैं। इससे भी सफल हुआ टीकाकरण अभियान उद्योग–कारोबार के लिए लाभप्रद होगा।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के साथ देश के जिन राज्यों में लॉकडाउन जैसी स्थिति है‚ वहां एमएसएमई के लिए एक बार फिर से लोन मोरेटोरियम योजना लागू की जानी लाभप्रद होगी। इन राज्यों में एमएसएमई को उन राज्यों के बिके हुए माल का भुगतान नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में उन्हें बैंकों के कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता होगी। ऐसा नहीं करने पर अधिकतर एमएसएमई के सामने एनपीए श्रेणी में आ जाने का खतरा है। ज्ञातव्य है कि सरकार ने रिटेल लोन लेने वालों समेत एमएसएमई को पिछले वर्ष कोरोना काल में मार्च से अगस्त २०२० के लिए लोन मोरेटोरियम दिया था। करीब ३० फीसद एमएसएमई ने इस लोन मोरेटोरियम का फायदा उठाया था। आरबीआई द्वारा फिर लोन मोरेटोरियम सुनिश्चित किया जाना होगा।
हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर की आÌथक और औद्योगिक चुनौतियों के बीच सभी राज्य सरकारें इस बात को स्वीकार करेंगी कि लॉकडाउन अंतिम विकल्प है। ऐसे में लॉकडाउन की जगह उपयुक्त कठोर पाबंदियां और स्वास्थ्य तथा सुरक्षा मानकों के सख्त प्रतिबंधों से देश के जनजीवन के साथ उद्योग–कारोबार को भी मुश्किलों से बचाया जा सकता है।
सौजन्य - राष्ट्रीय सहारा।
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