आर्थिकी की चिंता (जनसत्ता)

महामारी के बीच डगमगाती अर्थव्यवस्था फिर से चिंता की बात है। पिछले साल तबाह हुई अर्थव्यवस्था से देश अभी एक चौथाई भी उबर नहीं पाया है। संक्रमण की दूसरी लहर में और भयावह स्थिति बन गई है। इसका फिर से अर्थव्यवस्था के सभी मोर्चों पर असर पड़ने लगा है। शेयर बाजार से लेकर छोटे-बड़े सभी उद्योग इसकी जद में हैं। पिछले हफ्ते शेयर बाजार की गिरावट इस बात का एक बड़ा सबूत है। यानी अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का दौर लौटने लगा है।

हर वर्ग के निवेशकों से लेकर कामगारों तक में भय साफ दिख रहा है। महाराष्ट्र सहित देश के कुछ राज्यों में सख्त प्रतिबंधों की वजह से कामगार फिर से अपने घरों जाने लगे हैं। इससे आने वाले दिनों में उत्पादन और मांग का चक्र थम सकता है। इन हालात को निकट भविष्य के विकट संकट का संकेत माना जाए। हालांकि इसी बीच दो ऐसी खबरें भी आर्इं जो राहत के संकेत देती हैं। नीति आयोग ने कहा है कि जरूरत पड़ी तो सरकार और राहत पैकेज दे सकती है। दूसरा भरोसा वित्त मंत्री ने दिया है कि देशव्यापी पूर्णबंदी नहीं होगी। संकट भले कितना गंभीर हो, लेकिन ऐसे वक्त में ये भरोसे सकारात्मक माहौल बनाने वाले हैं।


कुछ भी हो, इतना तो तय है कि भविष्य के खतरों को लेकर सरकार इस बार पहले से चेत रही है। पिछले साल अचानक की गई पूर्णबंदी ने अर्थव्यवस्था को गर्त में धकेल दिया था। सकल घरेलू उत्पाद शून्य से चौबीस फीसद नीचे गिर गया था। हालांकि बाद की दो तिमाहियों में थोड़ी हलचल बनी और त्योहारी मांग ने बाजार में जान फूंकने की कोशिश की। लेकिन वाहन उद्योग में जो मामूली वृद्धि दिखनी शुरू हुई थी, वह अब फिर से रुकती दिखने लगी है।

अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करने वाला सेवा क्षेत्र भी दूसरी लहर की मार से अछूता नहीं है। अल्पकालिक पूर्णबंदी और प्रतिबंधों के कारण होटल, खानपान जैसे कारोबारों की जान पर बन आई है। छोटे उद्योगों में उत्पादन जोर नहीं पकड़ पा रहा। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं, जिसमें आर्थिक पैकेज जैसी राहत की जरूरत से कोई इंकार नहीं कर सकता। एक अच्छी बात है कि पिछले साल के कटु अनुभव इस बार काम आ सकते हैं। गौरतलब है कि यह तिमाही वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही ही है। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि दूसरी लहर का प्रकोप मई के मध्य तक बना रहेगा। लिहाजा, आर्थिक क्रियाकलापों पर आकलन अभी से शुरू हो जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पैकेज जैसी राहत अगर समय से मिल जाएगी तो हालात को बिगड़ने से बचाया जा सकता है।


भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर विदेशी रेटिंग एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के जो अनुमान आ रहे हैं, वे ज्यादा ही उत्साह पैदा करने वाले हैं। रिजर्व बैंक ने साढ़े दस फीसद की वृद्धि का अनुमान लगाया है। लेकिन हकीकत यह है कि दो अंकों में वृद्धि दर हासिल कर पाना आसान नहीं है, खासतौर से मौजूदा हालात में तो मुश्किल ही लगता है। अब तक जो उम्मीद बांधी जा रही थी, महामारी की दूसरी लहर उस पर पानी फेर रही है।

हाल में उद्योग संगठनों ने सरकार से किसी भी सूरत में पूर्णबंदी नहीं लगाने की अपील की। इसका पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है। अर्थव्यवस्था का पहिया ठहर जाता है। बाजार में मांग पैदा करने वाले उपायों पर जोर होना चाहिए। छोटे और मझौले उद्योगों को फिर से खड़ा करके ही उत्पादन को पटरी पर लाया जा सकेगा। महामारी से निपटने के लिए कड़े कदम बेशक उठाए जाएं, पर उससे भी ज्यादा जरूरी अर्थव्यवस्था को संभालना है। इसके लिए निवेशकों और उद्योगों का भरोसा बढ़ाना होगा।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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