प्राणवायु का संकट (दैनिक ट्रिब्यून)

कोरोना संकट की दूसरी मारक लहर के बीच मरीजों की लाचारगी, अस्पतालों में बेड व ऑक्सीजन तथा चिकित्साकर्मियों की कमी बताती है कि हम आपदा की आहट को महसूस नहीं कर पाये। यह  भी कि पिछले सात दशकों में राजनीतिक नेतृत्व देश की जनसंख्या के अनुपात में कारगर चिकित्सा तंत्र विकसित नहीं कर पाया है। निस्संदेह पहली लहर के बाद हमने पर्याप्त तैयारी कर ली होती तो मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने के लिये दर-दर न भटकना पड़ता। हालांकि, केंद्र सरकार ने देशव्यापी ऑक्सीजन संकट के बाद कुछ कदम उठाये हैं लेकिन कहना कठिन है कि इनका लाभ मरीजों को कब तक मिल पायेगा। पूरे देश में 162 ऑक्सीजन प्लांट लगाने की मंजूरी दी गयी है। लेकिन बेहद जटिल प्रक्रिया से बनायी जाने वाली मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन, उसकी ज्वलनशीलता के चलते उसका भंडारण और परिवहन  अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण है, जिसके लिये कुशल तकनीशियनों और ज्वलनशीलता के चलते विशेष प्रकार के टैंकरों की देश में उपलब्धता सीमित मात्रा में है। ऐसे में युद्धस्तर पर नये प्लांटों को स्थापित करने और उत्पादन में तेजी लाने के लिये केंद्र व राज्य सरकारों को विशेष भूमिका निभानी होगी। शनिवार व रविवार की रात्रि में मध्य प्रदेश के शहडोल स्थित मेडिकल कालेज के अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से आईसीयू में भर्ती बारह लोगों की मौत की खबरें आई हैं। हालांकि, प्रशासन इस बात से इनकार कर रहा है और उसकी दलील है कि मरीज पहले से ही गंभीर अवस्था में थे। इससे पहले देश में कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र ने सबसे पहले ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाया था और प्रधानमंत्री से वायुसेना के जरिये ऑक्सीजन की आपूर्ति की मांग की थी। ऐसी ही मांग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी की थी। कुछ भाजपा शासित राज्यों में भी ऑक्सीजन संकट की बात कही जा रही थी। निश्चित रूप से देश के कई भागों में ऑक्सीजन की कमी महसूस की जा रही है।


यही वजह है कि केंद्र सरकार ने ऑक्सीजन की आपूर्ति में तेजी लाने के लिये 162 संयंत्रों को लगाने की मंजूरी दी है। इतना ही नहीं, मौजूदा संकट से निपटने के लिये देश में उद्योगों के लिये  इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन के उपयोग पर रोक लगायी है। हालांकि दवा, फार्मास्यूटिकल्स, परमाणु ऊर्जा, ऑक्सीजन सिलेंडर निर्माताओं, खाद्य व जल शुद्धिकरण उद्योग को इससे छूट दी गई है। इस कार्य में टाटा स्टील समेत कई उद्योगों ने मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की घोषणा की है। देश में ऑक्सीजन संकट को देखते हुए रेलवे ने भी ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलाने का निर्णय लिया है। जिसके जरिये तरल ऑक्सीजन व ऑक्सीजन सिलेंडरों का परिवहन किया जा सकेगा। इसकी गति में कोई अवरोध पैदा ना हो, इसलिये ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया जा रहा है। निस्संदेह उखड़ती सांसों को थामने के लिये मेडिकल ऑक्सीजन का रुख अस्पतालों की ओर करना वक्त की जरूरत है। लेकिन यह तैयारी दूरगामी चुनौतियों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए। आने वाले समय में भी हमें एेसे नये संक्रमणों का सामना करने के लिये तैयार रहना पड़ सकता है। जाहिरा तौर पर आग लगने पर कुआं खोदने की तदर्थवादी नीतियों से बचने की जरूरत है। ऐसे ही सरकार द्वारा कोरोना मरीजों के लिये उपयोगी इंजेक्शन रेमडेसिविर की कालाबाजारी रोकने तथा इसकी कीमत घटाकर उत्पादन दुगना करने का प्रयास सराहनीय कदम हैं। इसके अलावा कोरोना संक्रमण में काम आने वाली अन्य दवाओं व साधनों के दुरुपयोग पर भी रोक लगाने की जरूरत है।  इसके लिये देश के स्वास्थ्य ढांचे में भी आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है। देश की जनता को भी चाहिए कि वह स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार को अपनी प्राथमिकता बनाये और राजनेताओं पर इसके क्रियान्वयन के लिये दबाव बनाए। ऐसे वक्त में जब देश एक अभूतपूर्व संकट गुजर रहा है, इस मुद्दे पर अप्रिय राजनीति से भी बचा जाना चाहिए। यदि हम समय पर न चेते तो प्रतिदिन तीन लाख के करीब पहुंच रहे संक्रमण के आंकड़े हमें दुनिया में संक्रमितों के मामले में नंबर वन बना देंगे, जिससे निपटना हमारे तंत्र के बूते की बात नहीं होगी।

सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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