अब कोरोना के टीकों की कमी बता कर बेवजह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। विचित्र है कि यह विवाद वे लोग भी खड़ा कर रहे हैं, जो पहले इस टीकाकरण अभियान का विरोध कर रहे थे। दिल्ली, राजस्थान और महाराष्ट्र की सरकारों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से मांग की कि वह अठारह वर्ष तक की आयुवर्ग के लोगों को टीकाकरण अभियान में शामिल करे, ताकि अधिकतम लोग इसका लाभ उठा सकें।
इस पर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि फिलहाल टीकों का उत्पादन सीमित है, इसलिए आयुवर्ग तय किया गया है। इसके तहत उस वर्ग के लोगों का पहले टीकाकरण कराया जा रहा है, जो अधिक जोखिम में हैं। जब तक प्रचुर मात्रा में टीके उपलब्ध नहीं हो जाते तब तक यही व्यवस्था लागू रहेगी। मगर कुछ विपक्षी दलों ने इसे टीके की कमी का मुद्दा बना कर सियासी लाभ उठाने का प्रयास तेज कर दिया। यह समझ से परे है कि इन विषम परिस्थितियों में ऐसे मसले उठा कर विपक्षी दल क्या हासिल करना चाहते हैं, जबकि उनसे अपेक्षा की जाती है कि इस कोरोना महामारी से लड़ने में सहयोग करें, न कि नाहक लोगों में भय का माहौल पैदा करें।
जब टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था, तो इसमें स्वास्थ्य विभाग के सामने कई चुनौतियां थीं। मसलन, सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर टीका उपलब्ध कराना और सभी जरूरतमंद लोगों को इस अभियान में शामिल करना। इसलिए सबसे पहले इस संक्रमण से पार पाने के लिए अगली कतार में खड़े लोगों को लगाने का नियम बनाया गया था। मगर कुछ लोगों ने अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि चूंकि अभी इन टीकों का अंतिम परीक्षण नहीं हुआ है, इसलिए इनके खतरों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। देश की पूरी आबादी को इसे परीक्षण के तौर पर लगाया जाना खतरनाक हो सकता है।
इसका नतीजा यह हुआ कि जिन स्वास्थ्य कर्मियों और अन्य अगली कतार में खड़े महकमों के लोगों ने इसकी पहली खुराक लेने के लिए पंजीकरण कराया था, उनमें से भी बहुतों ने अपने कदम पीछे खींच लिए। इससे लोगों में भ्रम फैला और लक्ष्य से कहीं कम लोग टीकाकरण के लिए आगे आए। इसके चलते रोज टीके की बहुत सारी खुराक बर्बाद गई। जबकि हकीकत यह है कि तय आयुवर्ग के लोगों के लिए हर टीकाकरण केंद्र पर पर्याप्त मात्रा में टीके उपलब्ध हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इस बात को लेकर कई बार चिंता जता चुका है कि टीकाकरण अभियान में कुछ राज्यों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है।
अब दुनिया भर की संस्थाएं मान चुकी हैं कि भारत में कोरोना टीकाकरण अभियान सबसे तेज गति से चल रहा है। इसके बावजूद महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि उसे हर हफ्ते चालीस लाख टीकों की जरूरत है, पर उसके पास सिर्फ चौदह लाख टीके बचे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि जो राज्य सरकारें टीकों की कमी का आरोप लगा रही हैं, वे खुद अपने स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगवाने में सफल नहीं रही हैं। महाराष्ट्र में अब तक सिर्फ छियासी फीसद स्वास्थ्य कर्मियों को टीके लगाए जा सके हैं। इसी तरह दिल्ली में बहत्तर और पंजाब में चौंसठ फीसद स्वास्थ्य कर्मियों ने टीका लगवाया है। यानी लक्षित वर्गों को ही जब इस अभियान का लाभ नहीं पहुंचाया जा सका है और इसके चलते काफी दवा बर्बाद हुई है, तो फिर अठारह साल तक के लोगों के लिए टीके की मांग करना सियासी हथकंडा ही कहा जा सकता है।
सौजन्य - जनसत्ता।
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