मंदी का दौर: अर्थव्यवस्था पर काली छाया (अमर उजाला)

मधुरेन्द्र सिन्हा 

पिछले साल जब भारतीय अर्थव्यवस्था लॉकडाउन के कारण मंदी के दौर में चली गई, तो एक समय ऐसा लगा कि इसकी वापसी का रास्ता आसान नहीं होगा। लेकिन अक्तूबर से ही इसमें सक्रियता देखने को मिलने लगी और यह तेजी से बढ़ने लगी। जनवरी आते-आते यह बात डंके की चोट पर कही जाने लगी। अप्रैल में आईएमएफ की खुशगवार रिपोर्ट आई कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2021 में 12.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी और 2022 में जीडीपी विकास की दर 6.9 प्रतिशत होगी। आईएमएफ का कहना था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति चीन से ज्यादा होगी, जिसकी अर्थव्यस्था दुनिया में ऐसी अकेली थी, जो 2020 में भी सकारात्मक रूप से बढ़ती रही। हालांकि आईएमएफ ने यह भी कहा कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की गति तेज होगी और उनमें रिकवरी आएगी। मार्च के अंत में एक और बड़ी खबर आई कि उस महीने हमारे निर्यात में 60.29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। यह पिछले साल मार्च की तुलना में काफी ज्यादा थी। गेहूं के उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी का भी दावा किया गया। इन सभी आधार पर रिजर्व बैंक ने कहा कि जीडीपी में अब बढ़ोतरी होगी।


अप्रैल में यह रिपोर्ट आने के बाद ही देश में कोविड महामारी का प्रकोप तेजी से बढ़ने लगा। तीसरा हफ्ता आते-आते देश के लगभग सभी हिस्से से लॉकडाउन या नाइट कर्फ्यू की खबरें आने लगी हैं। कारखानों के उत्पादन पर असर पड़ने लगा, बड़े-बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों में बंदी होने लगी, थोक बाजार भी बंद किए जाने लगे और रेस्तरां-होटल व्यवसाय फिर से पैरों पर खड़ा होने के बजाय लड़खड़ाने लगे हैं। आर्थिक विषयों पर अपनी राय रखने वाले प्रतिष्ठित जापानी बैंक नोमुरा ने पहले कहा था कि भारत की अर्थव्यवस्था 13.5 प्रतिशत की गति से बढ़ेगी, पर अब उसने अपने अनुमान में एक प्रतिशत की कटौती कर दी है। उसने कहा है कि यह कटौती कोविड की दूसरी लहर के कारण होगी और अगर इसमें कमी नहीं आएगी, तो अर्थव्यवस्था में और भी गिरावट आएगी। देश में महामारी की जो गति है, उसे देखकर तो यही लगता है कि अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ने जा रहा है। इस बार कोरोना वायरस ज्यादा तेजी से हमले कर रहा है और बहुत ज्यादा लोग बीमार हो रहे हैं। हालांकि सिर्फ 92 दिनों में रिकॉर्ड 12 करोड़ लोगों को इसका टीका लगा दिया गया है, लेकिन हमारी आबादी को देखते हुए यह काफी कम है। अगर साल के अंत तक 50 करोड़ लोगों को टीके लगा दिए जाते हैं, तो फिर स्थिति काबू में आ सकती है।



अभी सबसे बड़ी समस्या है कि व्यापार, कारोबार, उत्पादन की गति को कैसे बनाए रखा जाए? झारखंड, तेलंगाना, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब वगैरह में लॉकडाउन की घोषणा हो चुकी है, जबकि कई राज्य रात्रि कर्फ्यू या ऐसे ही प्रतिबंधों से काम चला रहे हैं। जाहिर है, ये सभी प्रतिबंध कारोबार में बाधा पहुंचा रहे हैं। माल की ढुलाई प्रभावित हो रही है। प्रतिबंधों के कारण खपत घट रही है, जो हमारी अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। इसी कारण प्रधानमंत्री को राज्यों से कहना पड़ा कि वे लॉकडाउन जैसे कदमों से बचें। कोविड ने जिस वर्ग को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है, वह है मध्य वर्ग, जिसकी तादाद 25 करोड़ आंकी जाती है। लोगों की आय में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। देश में लगातार खपत घटती जा रही है। अगर ऐसी प्रवृति रही, तो अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा, क्योंकि यह खपत पर आधारित है।


ऐसे में सरकार क्या कर सकती है? सरकारों को लोगों में विश्वास जगाना होगा। कोविड पर नियंत्रण उसकी सर्वोच्च वरीयता होनी चाहिए, पर अर्थव्यवस्था में धन भी डालना चाहिए। राज्य सरकारें इन दिनों हर मामले में केंद्र की ओर देखती रहती हैं और अपने कर्तव्य की उपेक्षा करती हैं। केंद्र सरकार को भी पिछली बार की तरह राहत पैकेज जारी करने चाहिए। मध्य वर्ग को आर्थिक सहारा देकर सरकार उसका आत्मविश्वास बढ़ा सकती है, जिससे उनकी खपत करने की क्षमता और इच्छा बढ़ेगी। कोविड से हम बच तो जाएंगे, लेकिन अगर अर्थव्यवस्था डूब गई, तो 133 करोड़ की आबादी वाले देश को बचाना मुश्किल ही होगा। यह

अर्थव्यवस्था के लिए सबसे कठिन काल है। 

सौजन्य - अमर उजाला।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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