मरिआना बाबर
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार इस हफ्ते तब नाकाम हो गई, जब दंगाइयों ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया और सरकार के सुरक्षा बल कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफल रहे। सरकार दंगे पर सही तरीके से अंकुश नहीं लगा पाई, नतीजतन कई पुलिस वाले मारे गए और घायल हुए, जबकि दंगाइयों में से भी कई लोग मारे गए। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कानूनी है और अनियंत्रित भीड़ द्वारा मुल्क के कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती। किसी भी सभ्य समाज में लोकतांत्रिक सरकार की मौजूदगी में एक विवादास्पद इस्लामी पार्टी द्वारा इकट्ठा की गई अनियंत्रित भीड़ सरकार की विदेश नीति तय नहीं करती। लेकिन पाकिस्तान में यही हुआ। मुल्क की संस्थाओं और संसद के बजाय देश की विदेश नीति गुंडे तय कर रहे थे। वे सरकार को हुक्म दे रहे थे कि फ्रांस के साथ दोतरफा रिश्ते खत्म किए जाएं, फ्रांस के सामान का पूरी तरह बहिष्कार किया जाए और इस्लामाबाद स्थित फ्रांस के राजदूत को वापस पेरिस भेज दिया जाए। इसके पीछे कट्टरपंथी तहरीक-ए लबैक पाकिस्तान (टीएलपी) पार्टी है। इसकी स्थापना 2015 में खादिम हुसैन रिजवी ने की थी, जो एक कट्टरपंथी मौलवी थे।
टीएलपी की स्थापना पैगंबर मुहम्मद की अंतिम विचारधारा और ईशनिंदा कानूनों की हिफाजत के लिए की गई थी। पूरे पाकिस्तान में इसके लाखों अनुयायी हैं और यह पार्टी दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है। यह चुनाव आयोग में खुद को पंजीकृत करने में भी कामयाब रही और पिछले चुनाव में सिंध की कुछ सीटों पर इसने जीत भी हासिल की थी। वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी को 22 लाख वोट मिले, जो कि ज्यादातर पंजाब प्रांत में थे। इसने सिंध एसेंबली में भी दो सीटें जीती थी। पंजाब में टीएलपी इमरान खान की पीटीआई और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल-एन के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पाकिस्तान में हालिया दंगा फ्रांस की एक पत्रिका में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून के प्रकाशन के चलते हुआ।
कुछ समय पहले फ्रांस में आतंकवादियों ने एक स्कूल शिक्षक सैमुअल पैटी की जान ले ली थी, क्योंकि उसने अपने क्लास रूम में बच्चों को वह कार्टून दिखाया था। टीएलपी की ताजा नाराजगी की वजह यह है कि फ्रांस की सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उस कार्टून का बचाव किया, और अब भी न केवल उस कार्टून का, बल्कि पैगंबर मोहम्मद की आलोचना और उपहास को भी मंजूरी दे रही है। गौरतलब है कि दूसरे मुस्लिम बहुल देशों या मुस्लिमों की भारी संख्या वाले गैर मुस्लिम देशों में कार्टून पर इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं हुई, जैसी पाकिस्तान में हुई। चूंकि पूरे पाकिस्तान में दंगे हुए और टीएलपी ने इस्लामाबाद में फ्रांसीसी दूतावास पर हमला करने की धमकी दी, इसलिए फ्रांस की सरकार ने पाकिस्तान में अपने नागरिकों को अस्थायी रूप से देश छोड़ने की सलाह दी है।
हालांकि इसके वास्तविक कारणों पर गौर करना होगा कि लाखों पाकिस्तानी टीएलपी का समर्थन क्यों करते हैं? दरअसल पाकिस्तान में भारी बेरोजगारी है और महंगाई व निरक्षरता हर दिन बढ़ती जा रही है। कट्टरवाद को समर्थन देने का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी है। उसके समर्थकों में से अनेक युवा मदरसों से नहीं निकले हैं, बल्कि ये सामान्य असंतुष्ट पाकिस्तानी युवा हैं। राजनीतिक विश्लेषक मुशर्रफ जैदी कहते हैं कि टीएलपी अतीत में किए गए कई बुरे कर्मों का फल है। जब देश के युवाओं को कट्टरवाद से विरत करने का कोई कार्यक्रम नहीं है, विरोध जताने का कोई मंच नहीं है, तो यही मुमकिन है। जबकि दूसरे कुछ लोगों की राय है कि पाकिस्तान के कानून के खिलाफ टीएलपी का हालिया उभार एक कट्टरपंथी बरेलवी संप्रदाय आंदोलन से जुड़ा है, जो सार्वजनिक रूप से धर्म के संकीर्ण दृष्टिकोण के नाम पर हिंसा करता है।
सरकार ने अब टीएलपी के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है और इस चरमपंथी पार्टी पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है, लेकिन सवाल पूछा जा रहा है कि क्या यह पर्याप्त या सही फैसला है। अतीत में कई इस्लामी और जिहादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है, लेकिन वे नए नामों के साथ उभरे हैं। एक अंग्रेजी अखबार का कहना है कि टीएलपी पर प्रतिबंध लगाने का कोई लाभ नहीं होगा। यह अखबार अपने संपादकीय में लिखता है, 'यह एक खुला रहस्य है कि टीएलपी को देश ने अपने निहित स्वार्थों के लिए पोषित किया था। अगर आज यह नियंत्रण से बाहर हो गया है, तो दोष उन लोगों का है, जिन्होंने इसे आगे बढ़ने में मदद की। ऐसे में, पार्टी पर प्रतिबंध एक जटिल मसले को हल करने का एक व्यर्थ प्रयास है, और इस बात का स्वीकार है कि सरकार टीएलपी द्वारा दी गई चुनौती को दूर करने के लिए जरूरी कठिन फैसला नहीं लेना चाहती। प्रतिबंध से पार्टी को नुकसान होने के बजाय प्रशंसा ही मिल सकती है। सरकार को उन कामों से दूर रहना चाहिए, जिनका अपेक्षित परिणाम मिलने की संभावना नहीं है।'
विरोधाभास देखिए कि टीएलपी ने विरोध प्रदर्शन खत्म करने की एक शर्त यह रखी कि सरकार संसद के अंदर एक प्रस्ताव लाए, जिसमें फ्रांसीसी राजदूत के देश छोड़ने की मांग होगी। जब प्रस्ताव संसद में पेश हुआ, तो बहस शुरू हुई, लेकिन दो मुख्य विपक्षी दलों में से मात्र पीएमएल-एन ही सत्र में उपस्थित हुई। पीपीपी ने सत्र का बहिष्कार किया, पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो ने एक सख्त संदेश भेजा। उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि 'टीएलपी के साथ जो समझौता हुआ, उस बारे में नेशनल एसेंबली में नहीं बताया गया। सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर कार्रवाई की और टीएलपी पर प्रतिबंध लगा दिया। इस दौरान बहुत से लोग मारे गए और 500 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। सरकार ने इंटरनेट बंद कर दिया। प्रधानमंत्री ने नेशनल एसेंबली में कोई बयान नहीं दिया और संसद को भरोसे में नहीं लिया। अब पीटीआई सरकार संसद के पीछे छिपना चाहती है। यह बदहाली आपके द्वारा पैदा की गई है प्रधानमंत्री जी, इसे दुरुस्त करें या घर जाएं।' बिलावल ने अनेक पाकिस्तानियों की भावना को स्वर दिया है।
सौजन्य - अमर उजाला।
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