हाल के महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा था लेकिन कोविड-19 संक्रमण के मामलों में अचानक वृद्धि ने जोखिम में इजाफा कर दिया है। कई राज्य वायरस की रोकथाम के लिए विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लागू कर रहे हैं। देश के कई हिस्सों में शायद ऐसा करना अनिवार्य होगा लेकिन यह अर्थव्यवस्था को कई तरह से प्रभावित करेगा। वृद्धि के अलावा आपूर्ति शृंखला में बाधा मुद्रास्फीति को भी प्रभावित करेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आंकड़े बताते हैं कि यदि संक्रमण में वृद्धि को समय पर रोका नहीं गया तो तमाम प्रतिबंध और आपूर्ति क्षेत्र की बाधाएं मुद्रास्फीति के जोखिम को बहुत बढ़ा देंगे। खुदरा मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति की दर मार्च में बढ़कर 5.5 फीसदी हो गई। आपूर्ति क्षेत्र की बाधा आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है। अप्रैल और मई 2020 में खुदरा मूल्य सूचकांक के वास्तविक कीमतों पर आधारित न होने के कारण केंद्रीय बैंक के लिए हालात और जटिल होंगे।
यदि मुद्रास्फीति में इजाफा होता है तो आरबीआई के लिए अत्यधिक समायोजन वाली मौद्रिक नीति और वित्तीय हालात के साथ आर्थिक सुधार का समर्थन करना कठिन हो जाएगा। बैंकिंग तंत्र में 6 लाख करोड़ रुपये मूल्य की नकदी है। इसके अलावा आरबीआई ने बॉन्ड खरीद का एक कार्यक्रम भी शुरू किया है। बुलेटिन में कहा गया है कि ऐसे कार्यक्रम के साथ परिसंपत्ति क्षेत्र के बुलबुले और पूंजी के बहिर्गमन जैसे जोखिम जुड़े रहते हैं। यकीनन वित्तीय बाजार भी कुछ समय से ऐसे जोखिम का अनुमान लगा रहे होंगे। बॉन्ड प्रतिफल में यह बात साफ तौर पर देखी जा सकती है। आरबीआई हालात से प्रसन्न नहीं है और उसका कहना है कि मौद्रिक नीति में कड़ाई का अनुमान लगाकर बाजार जरूरत से पहले हालात कठिन कर सकते हैं। ऐसे में केंद्रीय बैंक को उन कारणों पर विचार करना चाहिए जिनके चलते वित्तीय बाजार आश्वस्त नहीं हैं। ऐसे में ज्यादा असहमति नीतिगत विश्वसनीयता को क्षति पहुंचा सकती है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।
आरबीआई को वित्तीय बाजार को आश्वस्त करना होगा कि वह मुद्रास्फीतिक दबाव को नियंत्रित करेगा। साथ ही उसे बैंकिंग क्षेत्र पर भी निगरानी रखनी होगी। गत वित्त वर्ष के दौरान बैंक ऋण में 5.6 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली। वित्त वर्ष के दौरान कुल बैंक ऋण केवल 5.8 लाख करोड़ रुपये ही बढ़ा। लेकिन बैंकों ने सरकारी बॉन्ड में 7.2 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया। चूंकि ऋण की औद्योगिक मांग कमजोर है इसलिए बैंकों ने आम लोगों को अधिक ऋण दिया। फरवरी में गैर खाद्य ऋण में व्यक्तिगत ऋण की हिस्सेदारी 41.7 फीसदी रही। बैंक कुछ समय से खुदरा ऋण पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। परंतु आर्थिक गतिविधियों में व्यापक विसंगति और आय की कमी परिसंपत्ति गुणवत्ता पर असर डाल सकती है।
कुछ गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को व्यक्तिगत ऋण की वसूली में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र की दिक्कतें बैंकों को भी परेशान करेंगी क्योंकि वह इस क्षेत्र को ऋण देता है। ऐसे में बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों दोनों को खुदरा ऋण देने में सावधानी बरतनी चाहिए। मोटे तौर पर आरबीआई को यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंकिंग और गैर बैंकिंग क्षेत्रों के पास पर्याप्त पूंजी रहे ताकि वे कोविड की दूसरी लहर का झटका सह सकें। अब जबकि खातों को गैर निष्पादित घोषित करने का गतिरोध समाप्त हो चुका है तो परिसंपत्ति गुणवत्ता पर गत वर्ष की विसंगति का वास्तविक असर मार्च तिमाही के नतीजों के साथ सामने आ जाएगा। अनुमान है कि इस बार आर्थिक असर पिछले वर्ष जैसा गंभीर नहीं होगा लेकिन फिर भी कर्जदाताओं का जोखिम बढ़ेगा। इन हालात में आरबीआई को मौद्रिक नीति और बैंकिंग तंत्र की निगरानी में अधिक सतर्कता बरतनी होगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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