किसानों को उनकी उपज का सीधा लाभ पहुंचाने की केंद्र सरकार की डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी डीबीटी योजना कृषि क्षेत्र में एक अभिनव पहल है; जिसके दूरगामी सार्थक परिणाम हो सकते हैं, जिसको लेकर पंजाब सरकार दुविधा में है और इस कदम का विरोध कर रही है। उसे आशंका है कि इससे दशकों पूर्व से स्थापित विपणन व्यवस्था में व्यवधान आ सकता है। निस्संदेह इस कदम को किसानों के दूरगामी हितों के नजरिये से देखना चाहिए। इसे राजनीतिक व चुनावी समीकरणों के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। डीबीटी प्रणाली ने विभिन्न लोककल्याण योजनाओं में सार्थक परिणाम दिये हैं और बिचौलियों की लूट पर लगाम लगाया है। पंजाब सरकार की दलील रही है कि इस बदलाव से कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा। दलील है कि दशकों से आढ़ती या कमीशन एजेंट किसानों को सरकारी या निजी एजेंसियों द्वारा इसकी खरीद के लिये मंडी में फसल आवक से लेकर विक्रय के कई चरणों में मदद करते हैं। ये बिचौलिए कृषि से जुड़े सामान की खरीद के लिये उन्हें धन भी उपलब्ध कराते हैं। निस्संदेह किसानों को यह आर्थिक मदद बेहद ऊंची ब्याज दरों में मिलती है। दरअसल, फसल की खरीद करते समय आढ़ती पहले अपना हिसाब चुकता कर लेते हैं। किसान अपनी सालभर की खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा ही घर ले जा पाते हैं। इन विसंगतियों से किसानों को सुरक्षा देने के मकसद से राजग सरकार ने डीबीटी योजना को क्रियान्वित करने का मन बनाया है। पंजाब की कृषि उत्पाद खरीद में आढ़तियों-कमीशन एजेंटों की कितनी बड़ी भूमिका है, यह इनकी संख्या और सक्रियता से पता चलता है। पूरे पंजाब में करीब 47000 पंजीकृत आढ़ती हैं जो किसान की उपज के विक्रय पर अपनी सेवाओं के बदले कमीशन के रूप में 1,500 करोड़ रुपये सालाना कमाते हैं।
विडंबना यह है कि देश में किसानों के नाम पर राजनीति तो खूब होती रही है लेकिन किसान हितों के लिये दूरगामी योजनाओं पर काम नहीं हुआ। उसे तात्कालिक व अस्थायी लाभों के नाम पर स्थायी लाभों से वंचित रखने का प्रयास किया गया। उसे महज वोट के रूप में उपयोग तो किया गया लेकिन उसे जागरूक और विवेकशील करने का प्रयास नहीं किया गया। यही वजह है कि इस अभिनव पहल के बाद लाभार्थी किसान तो जागरूक नहीं हुआ, लेकिन आढ़ती लॉबी इसके खिलाफ सक्रिय हो गई। राजनीतिक-आर्थिक लाभ के लिये राजनेता भी उनकी भाषा बोलने लगे। दरअसल, डीबीटी प्रणाली की शुरुआत कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ने वर्ष 2013 में की थी। इसके जरिये विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों को पहुंचाना था ताकि बिचौलियों-दलालों की भूमिका खत्म की जा सके। मकसद यह है कि योजनाओं के लाभार्थियों के खाते में बिना रिश्वत दिये पूरी रकम पहुंच सके। इस योजना का मकसद धोखाधड़ी रोकना भी था। राजग सरकार ने इसे विस्तार ही दिया है और किसानों को एमएसपी का सीधा भुगतान किसानों के खाते में करने की पहल की है। अंतिम उद्देश्य व्यवस्था में सुधार करना ही है ताकि खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। केंद्र सरकार के इस कदम की सराहना की जानी चाहिए। निस्संदेह, पंजाब-हरियाणा, जो हरित क्रांति का नेतृत्व करते हैं, में खरीद की एक मजबूत व विश्वसनीय प्रणाली वर्षों के प्रयासों से स्थापित हुई है जो किसानों तथा देश के लोगों को लाभान्वित करती है। मगर ऐसा मजबूत ढांचा उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे अन्न उत्पादक राज्यों में स्थापित नहीं हो पाया है। यही वजह है कि इन राज्यों के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ता है। किसानों को दूसरे राज्यों में अपनी फसल ऊंचे दामों पर बेचने के लिये अनुचित तरीकों व बिचौलियों का सहारा लेना पड़ता है, फिर भी उन्हें न्यायसंगत दाम नहीं मिल पाता। निस्संदेह डीबीटी प्रणाली लागू होने से ऐसे तमाम किसानों को इसका लाभ मिल सकेगा। इससे जहां उत्पादकों को सीधा भुगतान होगा, वहीं बाजार व्यवस्था नियंत्रित रहने से देश के उपभोक्ताओं को उचित लाभ मिल सकेगा।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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