आर्ट एंड कल्चर : क्यों रे सिनेमा, कब तक वही-वही-वही? (पत्रिका)

सुशील गोस्वामी (सदस्य, सीबीएफसी)

'थलाइवी' की किणकी देख कर उसकी बोरी का अंदाजा लग गया है। और यह पुराना प्रश्न फिर से उठ गया है कि दिनों-दिनों बाद अब सिनेमा आता है, पर वही-वही, वही-वही क्यों आता है? कब तक फिल्म फिल्मी ही बनी रहेगी? कब तक आपसी बातचीत संवाद अदायगी-भर रहेगी? कब तक जिंदगी पर्दे पर उतरते-उतरते कृत्रिम होती चली जाएगी? महा नकली। कब तक? विश्व-सिनेमा सुधरे बैठा है। बरसों से। इससे भारत के सिनेमा ने कोई सबक नहीं सीखा है। कैनवस, तकनीक, प्रस्तुतियां तो आला होती जा रही हैं, लेकिन अभिनय गायब होता जा रहा है। अदाकार किरदार की खाल में घुस कर सांस ले रहे हैं, चरित्र दुपट्टे की तरह ओढ़े जाने बंद हो चुके हैं और ऐसा किए जाने पर दर्शक को हंसी आनी शुरू हो चुकी है। दूर न जाएं यहीं अपने इर्द-गिर्द तलाश लें। यही स्थिति नजर आएगी।

देसी-विदेशी वेब सीरीजों ने छोटे पर्दे पर बड़ा कमाल उड़ेल कर रख दिया है। लॉकडाउन के दौर में इनके प्रति गजब का आकर्षण पैदा हुआ। सिनेमाघर बंद होने से वेब सीरीज की तरफ लोग मुड़े। 'मिर्जापुर' या 'क्रिमिनल जस्टिस' के वाहियात तत्वों को छोड़ कर देख लें तो, शेष इतना बढिय़ा और जमीनी है कि घुल-घुल जाता है मन-मस्तिष्क में। या 'क्वींस गैम्बिट' देख लें। दर्जा क्या होता है, सीख लें। इस माहौल में निरी साउथ या निरी मुंबईया फिल्मी फिल्मों को धिक्कारे जाने की सम्भावना अब बहुत बढ़ चुकी है।

इन चीजों पर ध्यान दें। पहली, असुरक्षा की भावना, जिसके चलते बड़े सिनेमा को पैसे का खेला मान लिया गया है, जहां कदम रखने से पहले रकम इतनी फूंक दी जाती है कि जरूरी माटी ही हवा हो जाती है। इस रीति से अधकचरी प्रतिभा ने अगर फिल्म हिट करा दी, तो उसे और फिल्में मिलती जाती हैं। अंतत: खमियाजा दर्शक भुगतता है। हमारा सिनेमा कला को व्यवसाय समझने वालों को व फिर व्यवसाय से डर जाने वालों को क्यों नहीं दरकिनार करता? यह जरूरी है। इसलिए कि जिस कदर आला सिनेमा इंटरनेट ने मुहैया करवाया है, आम दर्शक की सिनेमाई समझ बेहद विकसित हो चुकी है। जिस सतही अभिनय-अंदाज से वह डरता है अब, जिन घिस चुकी दृश्यावलियों से कै आती है उसे, वही-वही-वही उसे परोसने से बाज क्यों नहीं आता है यह सिनेमा?

सौजन्य - पत्रिका।
Share on Google Plus

About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment