टीका आपूर्ति अहम (बिजनेस स्टैंडर्ड)

देश में कोविड-19 संक्रमण के नए मामले रोजाना दो लाख का स्तर पार कर चुके हैं। संक्रमण गत वर्ष सितंबर के अपने उच्चतम स्तर को पीछे छोड़ चुका है। अब सरकार को टीकाकरण की प्रक्रिया तेज करने की आवश्यकता है। परंतु टीकों की उपलब्धता और आपूर्ति के क्षेत्र में पारदर्शिता और स्पष्टता बरतने के बजाय सरकार अस्पष्टता और भ्रम की स्थिति में दिख रही है। सरकार ने दावा किया है कि टीकों की कोई कमी नहीं है जबकि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और अब दिल्ली से टीकों की कमी की शिकायत आ रही है। सामान्य गणित के आधार पर कहा जा सकता है कि टीकों की कमी है।

स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि उसने 14 अप्रैल तक राज्यों को कोविशील्ड और कोवैक्सीन की 13.1 करोड़ खुराक मुहैया कराईं। इनमें से 11.4 करोड़ खुराक लग चुकी हैं (इसमें बरबाद होने वाली खुराक भी शामिल हैं)। राज्यों के पास अभी 1.6 करोड़ खुराक शेष हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि टीकों की आपूर्ति के मामले में आपात स्थिति बन चुकी है। यदि रोज 40 लाख टीके लगते हैं तो भी चार दिन में राज्यों में टीके समाप्त हो जाएंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अप्रैल के अंत तक दो करोड़ और खुराक राज्यों को मिल जाएंगी। परंतु यह आपूर्ति भी बस पांच दिन चलेगी। स्पष्ट है कि सरकार को आपूर्ति क्षेत्र की दिक्कतों से जल्द से जल्द निपटने की आवश्यकता है। जैसा कि केंद्र ने दावा किया है यदि राज्य टीके बरबाद कर रहे हैं तो उसे आरोप-प्रत्यारोप करने के बजाय इस समस्या से निपटना चाहिए। बरबादी कई कारणों से हो सकती है। टीका लगाने की तय मियाद समाप्त हो जाना, भंडारण की उचित व्यवस्था का न होना और बची खुराकों को नष्ट करने तक इसकी कई वजह हैं। इन कारणों की समुचित जांच करके तथा इन्हें हल करके हालात को बेहतर बनाया जा सकता है।


ऐसा करना बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र सरकार ने भले ही यह घोषणा कर दी है कि उसने अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जापान और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मंजूर टीकों के आपात इस्तेमाल को मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज कर दी है लेकिन इससे देश में टीकों का परिदृश्य जल्दी बदलता नहीं दिखता। कारण यह है कि इन देशों की टीका निर्माता कंपनियों को पहले वहां की सरकारों  के साथ टीका आपूर्ति की प्रतिबद्धता निभानी है जिन्होंने उन्हें अग्रिम भुगतान कर रखा है। उदाहरण के लिए फाइजर को जुलाई तक अमेरिका को 60 करोड़ खुराक और 2021 के अंत तक यूरोपीय संघ को 50 करोड़ खुराक की आपूर्ति करनी है। रूसी स्पूतनिक-वी पर आशाएं टिकी हैं जिसे शुरुआत में आयात किया जाएगा और डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के माध्यम से बेचा जाएगा। यह टीका मई तक उपलब्ध होगा लेकिन अभी यह नहीं पता है कि इसकी कितनी खुराक आयात की जाएंगी। रूस ने छह भारतीय कंपनियों के साथ देश में उत्पादन का करार किया है लेकिन वह इस वर्ष के अंत तक ही शुरू हो पाएगा।


भारत सरकार ने दावा किया है कि रोजाना टीकों की खुराक लगाने के मामले में वह दुनिया में शीर्ष पर है लेकिन तथ्य यह है कि 24 जनवरी से अब तक देश में केवल 11.1 करोड़ लोगों को टीके लगे हैं और इनमें भी मात्र 1.4 करोड़ लोगों को टीके की दोनों खुराक लगी हैं जो आबादी का एक फीसदी है। यह स्पष्ट है कि दो टीका निर्माताओं के भरोसे रहने का निर्णय सही नहीं था।  इनमें से एक सरकार के साथ साझेदारी में टीका बना रहा और उसका उत्पादन काफी धीमा रहा है। सरकार को इस संकट से सार्थक ढंग से निपटना होगा। 'टीका उत्सव' जैसे नारे और जरूरतमंदों को टीका देने जैसी बातों की अब विश्वसनीयता नहीं बची क्योंकि यह स्पष्ट है कि न केवल हमारा देश बल्कि अर्थव्यवस्था भी एक गहरे संकट की ओर बढ़ रही है।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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