तमाल बंद्योपाध्याय
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति कच्चे तेल की कीमतों में नरमी, अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में गिरावट और भारत में कोविड महामारी की दूसरी लहर के कहर बरपाने की पृष्ठभूमि में पेश की गई है। मगर मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने वित्त वर्ष 2022 की पहली मौद्रिक नीति में बेहतर संतुलन साधा है।
आरबीआई का नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं करना और अपने रुख को उदार (जरूरत पडऩे पर दरों में कटौती) बनाए रखना आश्चर्यजनक नहीं है। एमपीसी के सभी छह सदस्यों का सर्वसम्मति से फैसला लेना भी विस्मयकारी नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे कदम उठाए गए हैं, जो मुश्किल दौर में अर्थव्यवस्था की नैया पार लगाने और सरकार की उधारी लागत को नियंत्रित रखने के मामले में नए प्रयोग करने की शक्तिकांत दास की योग्यता को दर्शाते हैं। आरबीआई फरवरी तक लंबी अवधि के अनुमान जता रहा था ताकि वह जरूरत रहने तक अपना उदार रुख जारी रख सके। असल में उसने पिछले कुछ नीतिगत बयानों में समय-आधारित अग्रिम अनुमान दोहराए थे। उसने कहा था कि उदार रुख कम से कम चालू वित्त वर्ष (यानी 2020-21) और अगले वित्त वर्ष (यानी 2021-22) में जारी रहेगा।
हालांकि उस रुख को बरकरार रखा गया है, लेकिन उसमें सूक्ष्म लेकिन अहम बदलाव किया गया है। इस बार नीतिगत दस्तावेज में कहा गया है, 'जब तक निरंतर सुधार की संभावनाएं पुख्ता नहीं हो जातीं, तब तक मौद्रिक नीति का रुख उदार बना रहेगा। लेकिन साथ ही महंगाई के उभरते परिदृश्य पर कड़ी नजर रखी जाएगी।'
आरबीआई किसी समयावधि पर प्रतिबद्धता नहीं जता रहा है। लेकिन दास आर्थिक सुधार के संकेत पुख्ता होने पर मौद्रिक नीति को सख्त बनाना शुरू करेंगे।
आरबीआई ने बॉन्ड डीलरों के लिए मौजूदा नियमों को नए रूप में पेश किया है। उसने पिछले वित्त वर्ष में द्वितीयक बाजार से तथाकथित ओपन मार्केट ऑपरेशन (ओएमओ) के जरिये 3.13 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे थे। यह खरीद नकदी की स्थितियों को मद्देनजर रखतेे हुए कई चरणों में की गई, जो नकदी आपूर्ति बढ़ाने का भारतीय संस्करण था। इस बार आरबीआई ने अग्रिम तरलता समर्थन की प्रतिबद्धता जताई है। केंद्रीय बैंक इसकी शुरुआत 2021-22 की पहली तिमाही में द्वितीयक बाजार से एक लाख करोड़ रुपये के बॉन्डों की खरीदारी के साथ करेगा। महंगाई लक्ष्य की ऊपरी सीमा पर है, लेकिन आरबीआई इस बिंदु पर अपने अनुमान को लेकर रूढि़वादी है। हालांकि वृद्धि में महामारी की नई लहर को नियंत्रित करने की भारत की क्षमता की अहम भूमिका रहेगी। इस सप्ताह 25,000 करोड़ रुपये की बॉन्ड खरीदारी से शुरुआत हो रही है। इस पहल का नाम 'द्वितीयक बाजार सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम' या जी-सैप 1.0 रखा गया है।
बैंकों के पुराने नकद आरक्षित अनुपात को 27 मार्च और 22 मई से दो चरणों में बहाल करने से बैंकों के खजाने से 1.5 लाख करोड़ रुपये निकल जाएंगे। जी-सैप इसे बेअसर कर देगा। इसका क्या असर पड़ा है? पिछले शुक्रवार को 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल कारोबारी सत्र में गिरकर छह फीसदी से नीचे 5.97 फीसदी पर आ गया, लेकिन 6.02 फीसदी पर बंद हुआ। यह अप्रैल में नया वित्त वर्ष शुरू होने के बाद करीब 18 आधार अंक फिसल चुका है।
आरबीआई ने अपनी संतुलन की नीति के तहत फैसला किया है कि वह लंबे समय तक परिवर्तनशील दर पर रिवर्स रीपो दर नीलामियां आयोजित करेगा, ताकि अतिरिक्त तरलता को सोखा जा सके, लेकिन दास ने मौद्रिक सख्ती की चिंताओं को दूर करते हुए प्रणाली में पर्याप्त नकदी का वादा किया है। ऐसी नीलामियों की राशि और अवधि का फैसला तरलता और वित्तीय स्थितियों के आधार पर लिया जाएगा, लेकिन यह आरबीआई के तरलता प्रबंधन कार्यों का हिस्सा है और इसे तरलता कम करने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। हालांकि नीति को लेकर बॉन्ड बाजार में उत्साह था, लेकिन मुद्रा नीति वाले दिन 1.5 फीसदी से अधिक फिसल गई। घरेलू और विदेशी बाजारों में बिकवाली हुई, जिससे तथाकथित कैरी पोजिशन की बिकवाली का संकेत मिलता है। कैरी कारोबारी बाजारों में निवेश के लिए सस्ती दरों पर उधार लेते हैं, जिनमें उन्हें शानदार कमाई हो सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो वे अमेरिका में उधारी लेकर भारत में निवेश कर रहे थे और कमाई कर रहे थे। वे ब्याज दरों में अंतर का फायदा उठा रहे थे। लेकिन उनके लिए मुद्रा का जोखिम रहता है क्योंकि वे आम तौर पर अपनी पोजिशनों की हेजिंग नहीं करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक कैरी पोजिशन का आकार फरवरी में 40 अरब डॉलर पर पहुंच गया। बिकवाली करने की वजह महंगाई बढऩे का डर हो सकता है। आरबीआई के पास 577 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है (यह जनवरी में 590 अरब डॉलर था) और भुगतान संतुलन के मोर्चे पर कोई चिंता नहीं है, इसलिए भारतीय केंद्रीय बैंक इस समय उत्साहित हो सकता है। पिछले साल स्थानीय मुद्रा में मजबूती से आरबीआई को बाजार से डॉलर खरीदने के लिए बाध्य होना पड़ा था, जिससे रुपये की तरलता बढ़ी थी। यह प्रत्येक डॉलर की खरीदारी के लिए उतनी ही राशि के रुपये प्रणाली में झोंकता है। आरबीआई के सहनशीलता के स्तर तक रुपये में गिरावट से वह तरलता का रास्ता बंद होगा।
आरबीआई ने 2020-21 की चौथी तिमाही में अपना महंगाई का अनुमान घटाकर पांच फीसदी कर दिया है। चालू वित्त वर्ष में पहली और दूसरी तिमाहियों के लिए अनुमान 5.2 फीसदी, तीसरी तिमाही में 4.4 फीसदी, चौथी तिमाही में 5.1 फीसदी है और जोखिम मुख्य रूप से संतुलित हैं। 2021-22 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि का अनुमान 10.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रखा गया है। ढांचागत स्तर पर यह अच्छी नीति है। लेकिन महंगाई का अनुमान वास्तविकता से थोड़ा कम नजर आता है। वहीं वृद्धि महामारी की नई लहर को नियंत्रित करने में भारत की क्षमता पर निर्भर करेगी।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
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