कोरोना संक्रमण के बनते जा रहे भयावह हालात के बीच यह राहत की खबर है कि केन्द्रीय औषधि मानक नियामक संगठन (डीसीजीआइ) ने रूसी वैक्सीन स्पूतनिक-वी के भी भारत में आपात इस्तेमाल की अनुमति दी है। संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया में तेजी होनी ही चाहिए। ऐसे में देश में दो की जगह पांच-सात तरह की वैक्सीन भी उपलब्ध हो सकें, तो इसमें हर्ज ही क्या है। इसलिए स्पूतनिक-वी के भारत में आपात इस्तेमाल को मंजूरी मिलने का स्वागत किया जाना चाहिए। अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से मंजूर दूसरी वैक्सीन का भारत में आपात इस्तेमाल का मार्ग भी प्रशस्त हो गया है। संकट के इस दौर में इंसान की जान बचाना ही सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
बेहतर वैक्सीन चाहे देश में बनी हो या फिर विदेश में, उनकी व्यापक उपलब्धता ज्यादा जरूरी है, क्योंकि टीकों की उपलब्धता यदि आबादी के हिसाब से नहीं हुई, तो प्रक्रिया में समय लगने के साथ-साथ संक्रमण का खतरा लगातार बना रहेगा। हमारे यहां कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगना जब से शुरू हुईं, तब से टीकाकरण की गति दुनिया के दूसरे कई देशों की अपेक्षा कहीं बेहतर है। लेकिन, संक्रमण से ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल और पंजाब में जिस गति से टीकाकरण होना चाहिए था, वह दिख नहीं रहा।
पिछले दिनों टीकों की कमी को लेकर आई खबरों के बीच विपक्ष ने भी कई सवाल खड़े किए। खास तौर से यह कि सरकार अपने देश के लोगों को खतरे में डालकर दुनिया के दूसरे देशों को वैक्सीन क्यों भेज रही है? इस बीच रूस तक ने संकेत दिया है कि वह भारतीय टीके का रूस में भी उत्पादन कर सकता है। सही मायने में चुनौती के इस दौर में फार्मा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे के सहयोग की ज्यादा जरूरत है। ऐसे में दुनिया के तमाम सक्षम देशों को आगे आना चाहिए। देश में अभी टीकों की मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर है। सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि पात्र श्रेणी के सभी लोगों तक टीके की पहुंच हो ही नहीं पाई है। टीकों को लेकर जनजागरूकता का अभाव भी समस्या है। टीकाकरण को लेकर लोगों में बैठे डर व भ्रांतियों को दूर किए बगैर कोविड से सुरक्षा का घेरा मजबूत करना आसान नहीं होगा।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जिन लोगों को टीका लगा है, उनमें अधिकतर वे हैं जिन्हें फिलहाल टीके की एक ही डोज लगी है। ऐसे में जब दूसरी डोज लेने की बारी आए, तो संबंधित वैक्सीन की आसान उपलब्धता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सौजन्य - पत्रिका।
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