विजय रूपाणी, मुख्यमंत्री, गुजरात
Babasaheb BR Ambedkar Jayanti : बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर (1891-1956) आधुनिक भारत के अग्रणी राष्ट्र निर्माताओं में से एक थे। वे कई पहलुओं में अपने समकालीन नेताओं से अलग थे। वे महान विद्वान, सामाजिक क्रांतिकारी और राजनेता थे, जिनमें ऐसी विशेषताओं का संयोजन था जो उन्हें उस समय के दूसरे बौद्धिक व्यक्तियों से अलग बनाता था। एक बौद्धिक और रचनात्मक लेखक के रूप में उन्होंने ज्ञान को पूर्ण रूप से आत्मसात किया था। राजनीति में अपनी विद्वत्ता का अनुसरण करते हुए उन्होंने अपने समय के महत्त्वपूर्ण विषयों को समझा और भारतीय समाज की समस्याओं का समाधान खोजा। भारत में 1920 से 1950 के दशक के मध्य तक शायद ही ऐसा कोई विषय रहा होगा जिसके समाधान के लिए उन्होंने संघर्ष न किया हो, फिर चाहे वह राज्यों के पुनर्गठन की बात हो या फिर विभाजन की। संविधान निर्माण की प्रक्रिया हो या फिर स्वतंत्र भारत के लिए राजनीतिक और आर्थिक ढांचे का सवाल हो।
एक विचारक और बुद्धिजीवी का मूल्यांकन इस बात पर नहीं होता कि वे प्रश्न का क्या उत्तर देते हैं, बल्कि इस बात से होता है कि वे क्या सवाल उठाते हैं? बाबासाहेब ने अपने समय में कुछ ऐसे महत्त्वपूर्ण विषयों को उठाया जिनके बारे में बात करने में उस समय के बड़े व्यक्तित्व वाले व्यक्ति भी छोटे पड़ जाते थे। अपने तीन दशक से अधिक के सार्वजनिक जीवन के दौरान वह दृढ़ता से यह मानते रहे कि राजनीति न्याय के लिए लडऩे का साधन होना चाहिए, ताकि स्वतंत्र भारत के सभी नागरिक सही मायनों में स्वतंत्रता का अनुभव कर सकें।
स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता बाबासाहेब ने भारत में वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था की भी नींव रखी थी। उनका मानना था कि लोकतंत्र की जड़ें सरकार के स्वरूप में नहीं, बल्कि सामाजिक संबंधों में निहित होती हैं। वे जानते थे कि भारत में जाति व्यवस्था, लोकतंत्र के मार्ग में एक गंभीर समस्या है। इसी संदर्भ में उन्होंने एक बार कहा था, 'लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए सबसे पहली शर्त यही है कि समाज में किसी भी प्रकार की कोई विषमता नहीं होनी चाहिए। दूसरा यह कि शोषितों और पीडि़तों के हितों की रक्षा के लिए और उनके दु:खों को कम करने के लिए वैधानिक प्रावधान होना चाहिए। सामाजिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए समाज स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।' इसी विचार के संबंध में वे अक्सर अपने वक्तव्यों में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति और महान वक्ता अब्राहम लिंकन को संदर्भित भी किया करते थे, जिन्होंने एक बार कहा था कि 'ऐसा घर जिसके लोग स्वयं का ही नुकसान करने में लगे हुए हों, वह घर कभी समृद्ध नहीं बन सकता है।'
यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि महान मानवतावादी भीमराव आंबेडकर केवल शोषित समुदाय के सबसे बड़े उद्धारक के रूप में ही जाने जाते हैं, जबकि उनकी महानता इससे भी बहुत आगे थी। वह केवल भारतीय समाज में छुआछूत की समस्याओं से ही चिंतित नहीं थे। उन्होंने मानव जीवन के हर पहलू को छुआ था, जिनमें सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, मानवशास्त्रीय, धार्मिक, ऐतिहासिक, जाति वगैरह शामिल हैं। वह चाहते थे कि भारत में सामाजिक लोकतंत्र को संजोना चाहिए। संविधान को लागू करते हुए उन्होंने इस दिशा में राष्ट्र को बताया था कि, '26 जनवरी 1950 को, हम अपने अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं।' उस समय उन्होंने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि कई दशकों बाद देश एक संविधान की सीमा में बंधने जा रहा था और ऐसे में यह बहुत ही स्वाभाविक था कि हमें कई सामाजिक अंतर्विरोधोंं का सामना करना पड़े। लेकिन यह तब की बात थी। और आज आजादी के इतने वर्षों बाद, यह चर्चा करना जरूरी है कि बाबासाहेब ने जिस दिशा में भारत को आगे बढ़ाया था, क्या भारत आज उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है? क्या जिन अंतर्विरोधों के बीच भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की शुरुआत हुई थी, आज भी हमारा देश उन्हीं अंतर्विरोधोंं से गुजर रहा है? क्या भारत देश, भारतीय समाज, भारतीय राजनीति और भारतीय अर्थनीति बाबासाहेब के सिद्धांतों के तहत आगे बढ़ रही है जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया? वर्तमान परिदृश्य का यदि गहरा विश्लेषण किया जाए तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बाबासाहेब ने संघर्ष के जो बीज बोए थे वो अब फलदार हो रहे हैं। आज का भारत पहले से कहीं अधिक संयुक्त और विविधिता में एकता से परिपूर्ण है। आज एक ओर देश के हर कोने में सामाजिक समरसता है तो वहीं हर वर्ग को समानता का अधिकार भी है। आज भारत न केवल आर्थिक तौर पर यानी व्यापार, उद्योग और रोजगार के दृष्टिकोण से सशक्त है, बल्कि सामाजिक तौर पर भी यानी शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी मजबूत हो रहा है। जहां पहले भारत अपनी गरीबी और छुआछूत के लिए कुख्यात था, वहीं आज भारत देश अपने संघीय ढांचे, मजबूत लोकतंत्र और नागरिकों की सामनता के लिए पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखता है।
देश की इस उपलब्धि के पीछे नि:संदेह देश की समस्त राज्य और केंद्र सरकारों का योगदान रहा है लेकिन मैं यह पूरे विश्वास और गर्व से कह सकता हूं कि पिछले दो दशक से भी अधिक समय से जिस तरह से गुजरात सरकार ने राज्य में बाबासाहेब के विचारों को अपनी योजनाओं और नीतियों में समाहित किया है वह सही मायने में उनके प्रति हमारी एक सच्ची श्रद्धांजलि है। आज देश बाबासाहेब की 130वीं जन्मजयंती मना रहा है। इस अवसर पर यदि भारत उनको सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहता है, तो ऐसा करने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि नई पीढ़ी की परवरिश में बाबासाहेब के विचारों को पिरोया जाए और उनके सपनों को फलीभूत बनाया जाए।
इस तथ्य में भी कोई संशय नहीं है कि बाबासाहेब ने अपने संघर्षों और अपने दूरदर्शी विचारों का ऐसा दर्पण प्रस्तुत किया है जो हमें चिरकाल तक विषम परिस्थितियों से लडऩे और आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता रहेगा और मार्गदर्शन भी देता रहेगा। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के विचार के साथ हमें आगे बढ़ते रहना होगा ताकि हम भविष्य में बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर के सपनों के भारत को निर्मित कर सकें।
सौजन्य - पत्रिका।
0 comments:
Post a Comment