सुरेश यादव, (अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार)
नतांज परमाणु केन्द्र पर हमले के बाद ईरान ने इस संयंत्र में यूरेनियम का साठ फीसदी तक संवर्धन शुरू कर दिया है। ईरान के इस फैसले ने यह प्रमाणित कर दिया कि दुनिया में शक्ति संतुलन तेजी से बदल रहा है। वियना में विश्व शक्तियां अमरीका की ईरान न्यूक्लियर डील में वापसी के लिए प्रयासरत हैं, पर अमरीकी प्रतिबंधों की मार झेल रहे ईरान के साठ फीसदी संवर्धन के फैसले ने साझा प्रयासों के अर्थ को कम किया है।
विगत एक दशक से रेडियोधर्मी पदार्थ यूरेनियम के दुरुपयोग के लिए चर्चा में रहे ईरान ने 10 अप्रैल को अपने राष्ट्रीय परमाणु तकनीक दिवस के अवसर पर नतांज स्थित भूमिगत परमाणु संयंत्र में स्थापित अत्याधुनिक 164 आइआर-6 व 30 आइआर-5 सेंट्रीफ्यूज मशीनों के उद्घाटन समारोह की नुमाइश कर अपने इरादे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष स्पष्ट कर दिए थे। इसके अगले ही दिन पावर ग्रिड में आई खामी के कारण संयंत्र को ब्लैकआउट का सामना करना पड़ा और आइआर-1 सेंट्रीफ्यूज मशीनें क्षतिग्रस्त हो गईं। ईरान ने इस घटना को नाभिकीय आतंकवाद करार दिया और अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी इजरायल को घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया।
बेशक इजरायल ने अब तक इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली, पर अमरीकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने स्पष्ट कर दिया कि परमाणु समझौते को रोकने के लिए उनके बस में जो भी होगा वह करेंगे। बीते वर्ष जुलाई में इसी संयंत्र में विस्फोट से आगजनी, स्टक्सनेट साइबर हमला और शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याओं में इजरायल की कथित संलिप्तता के चलते इस ताजा साइबर हमले को लेकर भी इजरायली इंटेलीजेंस एजेंसी मोसाद पर उंगली उठना कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
परमाणु शक्ति बनने का ख्वाब देख रहा ईरान अपने महत्त्वपूर्ण परमाणु संवर्धन केन्द्र नतांज की सुरक्षा करने में विफल रहा है। घटना के बाद आइएईए के निरीक्षक दल ने नतांज का दौरा किया और बताया कि ईरान ने यूरेनियम के संवर्धन को साठ फीसदी तक करने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि परमाणु कार्यक्रम की तैयारी के मुताबिक ईरान एक वर्ष मे ही 'वेपन ग्रेड' का शुद्ध यूरेनियम एकत्रित कर सकता है। ईरान की इस तरह की तैयारी ने षड्यंत्र की उन संभावनाओं को जन्म दे दिया है जिसमें हमले की आड़ में अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते की सभी शर्तों-मर्यादाओं को बेझिझक तोड़ा जा सके। ईरानी राष्ट्रपति ने भी घटना के महज तीन दिन बाद ही तेजी से संवर्धन शुरू करने के फैसले को इजरायल की 'दुष्टता' का जवाब करार दिया।
भले ही पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप के परमाणु समझौते से मई 2018 में बाहर होने और ईरान पर प्रतिबंध लगाए जाने से ईरानी अर्थव्यवस्था मुश्किल में आ गई है, पर ईरान को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर चीन के रूप में एक बेहतरीन विकल्प मिल गया है। ईरान ने चीन के साथ पिछले माह तेहरान में 400 बिलियन डॉलर की 25 वर्षीय 'कॉम्प्रिहेन्सिव स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप' कर मध्य-पूर्व में पश्चिमी गुट को चिंता में डाल दिया है।
बहरहाल, जो बाइडन को ईरानी विदेश मंत्री जावेद जरीफ की 'नो आल्टरनेटिव, नो मच टाइम' की थ्योरी पर समय रहते विचार करना चाहिए। ईरान के इरादे बताते हैं कि वह जल्द नई परमाणु शक्ति बनकर उभरेगा, तो उसे इजरायल की चुनौती का भी सामना करना होगा। इस बीच जिस तरह रूस ने खुलकर ईरान का समर्थन किया है, जाहिर है कि चीन-ईरान-रूस का त्रिकोण क्षेत्र में संतुलन का नया अध्याय लिखेगा।
सौजन्य - पत्रिका।
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