प्रमोद भार्गव (लेखक एवं साहित्यकार, मिथकों को वैज्ञानिक नजरिए से देखने में दक्षता )
जो ऊर्जामयी शक्तियां मनुष्य के अनुकूल हैं, वे दैवीय और जो प्रतिकूल हैं, वे आसुरी शक्तियां मानी जाती हैं। जिस ऊर्जामयी चेतना को ऋषियों ने हजारों साल पहले समझ लिया था, आज इसी चेतना को समझने के अभिनव प्रयास बिहार के योग विश्वविद्यालय में हो रहे हैं। चेतना ऊर्जा की विवेकपूर्ण संपूर्ण अभिव्यक्ति है, किंतु यह विज्ञान के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है। कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विकसति करने के मामले में तो विज्ञान को सफलता मिल गई है, लेकिन चेतना को पढ़ पाना अभी दूर की कौड़ी है।
भारतीय योगी-मनीषी इसका अभ्यास करते रहे हैं। योग वशिष्ठ और पतंजलि योग में इस चेतना को अनुभव करने के अनेक उदाहरण हैं। बिहार के मुंगेर में स्थित दुनिया के पहले योग विश्वविद्यालय में इस ऊर्जा के विविध आयामों का पढऩे की कोशिश कुछ वर्षों से की जा रही है। इसका विषय है, 'टेलीपोर्टेशन ऑफ क्वांटम एनर्जी' अर्थात मानसिक ऊर्जा का परिचालन व संप्रेषण। यानी चेतना के मूल आधार तक पहुंचने का मार्ग खोजा जा रहा है। विवि के परमाचार्य स्वामी निरंजनानंद सरस्वती इस शोध की केंद्रीय भूमिका में हैं।
निरंजनानंद ने महत्त्वपूर्ण मंत्रों के मानसिक व बाह्य उच्चारण से उत्पन्न ऊर्जा को क्वांटम मशीन के जरिए मापने के उपाय भी किए हैं। दरअसल मानसिक संवाद, नाद, संवेदना और दूरानुभूति (टेलीपैथी) विद्याएं भारतीय योग विज्ञान का विषय रही हैं। इसीलिए मानसिक ऊर्जा के परिचालन और संप्रेषण को वैज्ञानिक आधार पर समझने का प्रयास हो रहा है। निरंजनानंद को उम्मीद है कि यदि यह आधार समझ आ जाता है, तो कुछ सालों में एक ऐसा मोबाइल फोन अस्तित्व में आ सकता है, जिसमें नंबर डायल करने, बोलने और कान पर लगाकर सुनने की जरूरत नहीं रह जाएगी। मानसिक ऊर्जा और सोच के जरिए ही तीनों कार्य संपन्न हो जाएंगे।
सौजन्य - पत्रिका।
0 comments:
Post a Comment