हाल में कोविड-19 संक्रमण तेजी से बढ़ा है। महाराष्ट्र में स्थिति इतनी चिंताजनक है कि मुख्यमंत्री को लॉकडाउन की वापसी की चेतावनी देनी पड़ी है। हालांकि कई लोग कह रहे हैं कि लॉकडाउन लगाना इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। कोरोनावायरस पर लगाम लगाने वाले टीके सामने आ चुके हैं। कारगर टीकाकरण के साथ शारीरिक दूरी बनाए रखने का अनुशासन रखना कठोर लॉकडाउन की तुलना में कहीं बेहतर रणनीति है। असल में लॉकडाउन लगाने के बजाय हम मुख्यमंत्री की चेतावनी को यह अनुशासन बनाए रखने के एक प्रेरक के तौर पर ही देखते हैं। क्योंकि फिर से लॉकडाउन लगाने की 'आजीविका लागत' बहुत अधिक है। मार्च 2020 में जब लॉकडाउन की शुरुआत हुई थी तो एक परिवार की औसत आय 9.2 फीसदी तक कम हो गई थी। अप्रैल 2020 में यह गिरावट 27.9 फीसदी तक हो गई।
उस बेरहम लॉकडाउन के प्रभाव देर तक दिखते रहे। अक्टूबर 2020 में भी एक परिवार की आय लॉकडाउन-पूर्व के स्तर पर नहीं पहुंच पाई थी। आय के बारे में नवीनतम आंकड़ा अक्टूबर 2020 का ही उपलब्ध है। उस महीने में एक परिवार की औसत आय अक्टूबर 2019 की तुलना में 12 फीसदी तक कम हो चुकी थी। अक्टूबर 2020 में रोजगार आंकड़ा भी साल भर पहले की तुलना में कम था। इस तरह कुल पारिवारिक आय औसत पारिवारिक आय से भी कम थी।
परिवार की आय का तिरछा वितरण होने से रुकी हुई मांग सामने लाने में मदद मिली जिसने दूसरी एवं तीसरी तिमाहियों में अर्थव्यवस्था की हालत सुधारी। हालांकि पारिवारिक आय में 12 फीसदी की कमी बताती है कि यह रिकवरी एक औसत परिवार की हालत को सही ढंग से नहीं दर्शाती है। श्रम बाजार के आंकड़े फरवरी 2021 तक उपलब्ध हैं। उस महीने तक लॉकडाउन का करीब एक साल हो चुका था। देश भर में लॉकडाउन की शुरुआत होने के पहले ही कई राज्यों ने आंशिक लॉकडाउन किया हुआ था। मसलन, महाराष्ट्र ने 21 मार्च से ही राज्य में लॉकडाउन कर दिया था। इस तरह फरवरी 2022 लॉकडाउन-पूर्व का आखिरी सामान्य महीना था।
लॉकडाउन लगने के करीब साल भर बाद फरवरी 2021 में रोजगार का आंकड़ा फरवरी 2020 की तुलना में 70 लाख कम था। फरवरी 2020 में 40.6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था लेकिन फरवरी 2021 में यह संख्या घटकर 39.9 करोड़ थी। फरवरी 2021 में रोजगार की गुणवत्ता फरवरी 2020 जैसी नहीं है।
रोजगार अपने आप में कोई साध्य नहीं है। यह बेहतर जिंदगी का एक साधन भर है। रोजगार दो तरीकों से जिंदगी को बेहतर बनाता है- यह लाभप्रद काम देने के साथ आय भी मुहैया कराता है। रोजगार में लाभदायक काम महत्त्वपूर्ण है। कोई काम न करते हुए घर पर रहने के लिए भुगतान पाना अपमान की बात है (सार्वभौम बुनियादी आय के प्रस्तावकों से माफी सहित)। वहीं समान कार्य के लिए कम भुगतान पाने को भी कमतर करता है (बाजार ताकतों के प्रस्तावकों से माफी के साथ)। छोटा बनाने या कम अहमियत देने वाला रोजगार कोई चहेता विकल्प नहीं है, लिहाजा भारत का किसी बेहतर चलन का अनुसरण करना कहीं अधिक अहम है।
हम बिना काम वाले रोजगार में बढ़ोतरी और काम के घंटों में कटौती को हावी होते हुए देख रहे हैं। उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे में दर्ज आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के अर्पित गुप्ता और शिकागो यूनिवर्सिटी के अनूप मलानी एवं बार्तोज वोडा ने अपने एक शोध-पत्र में कहा है कि लॉकडाउन के दौरान पुरुषों के आठ घंटे के काम में 1.5 घंटे तक कमी हो गई। पहले हमने देखा था कि रोजगार में होते हुए भी कोई काम नहीं करने वाले लोगों का अनुपात लॉकडाउन के दौरान बढ़कर 8 फीसदी हो गया था। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के रोजा अब्राहम, अमित बसोले एवं सुरभि केसर की टीम ने उपभोक्ता पिरामिड सर्वे के उन्हीं आंकड़ों से यह नतीजा निकाला था कि लॉकडाउन की अवधि में रोजगार के इंतजाम इस कदर बदल गए कि लोग वेतनभोगी रोजगार के बजाय स्व-रोजगार करने लगे। सिर्फ रोजगार की स्थिति लॉकडाउन के दौरान परिवारों पर पड़े तनाव की समूची कहानी नहीं बयां कर पाती है।
रोजगार में होते हुए भी कम काम और रोजगार के बावजूद कम आय जैसे बदलाव श्रम बाजारों में नजर आए। श्रम बाजारों के भीतर इस बदलाव की दूसरी समस्याएं भी हैं। जहां फरवरी 2020 और फरवरी 2021 के बीच करीब 70 लाख रोजगार जाने का अनुमान है, वहीं गैर-कृषि रोजगार में कमी का आंकड़ा कहीं ज्यादा है। खेती से जुड़े कामों को अक्सर प्रच्छन्न बेरोजगारी मान लिया जाता है। ये काम उत्पादकता में कम होते हैं और गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरियां कम होने से अतिरिक्त श्रम की आवक बढऩे से यह उत्पादकता और भी कम हो जाती है।
गैर-कृषि रोजगार में रिकवरी दिखना जरूरी है। लेकिन फरवरी 2020 एवं फरवरी 2021 के बीच गैर-कृषि क्षेत्रों में 1.16 करोड़ रोजगार कम हो गए। दरअसल बिंदुवार तुलना से कई बार हमें गलत जानकारियां भी मिलती हैं, लिहाजा हम फरवरी 2021 में गैर-कृषि रोजगार की तुलना वर्ष 2019-20 के दौरान औसत गैर-कृषि रोजगार से करने पर पाते हैं कि यह नुकसान 1.1 करोड़ से अधिक है। इस तरह लॉकडाउन की सबसे बड़ी लागत 1.1 करोड़ रोजगार की है। इनमें कारोबार से जुड़े लोगों, वेतनभोगी कर्मचारियों एवं दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग शामिल रहे हैं। वर्ष 2019-20 की तुलना में फरवरी 2021 की स्थिति दर्शाती है कि कारोबार जगत में 30 लाख, वेतनभोगी कर्मचारियों में 38 लाख और 42 लाख दिहाड़ी कामगारों को रोजगार गंवाना पड़ा है। यह सब लॉकडाउन का ही नतीजा है।
ऐसा लगता है कि रोजगार की बहाली पिछले स्तर से 2 फीसदी कम रह गई है। और गैर-कृषि रोजगार की रिकवरी तो पुराने स्तर से 4 फीसदी कम है। इसलिए यह जरूरी है कि लॉकडाउन का नया दौर हालात को और बिगाड़ न पाए। सबको टीका लगाना और मास्क का इस्तेमाल कहीं बेहतर तरीका है।
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment