यथास्थिति का अलग असर ( बिजनेस स्टैंडर्ड)

केंद्र सरकार ने मुद्रास्फीति के लक्ष्य को लचीले मुद्रास्फीति संबंधी ढांचे के अधीन रखकर बेहतर किया है। अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर मुद्रास्फीति के लिए 4 फीसदी की दर रखनी होगी और वर्ष 2025-26 तक के लिए इसके दो फीसदी ऊपर या नीचे का दायरा तय करना होगा। कई टिप्पणीकारों ने सुझाया था कि इसकी ऊपरी सीमा बढ़ाई जानी चाहिए ताकि केंद्रीय बैंक को आर्थिक झटकों से निपटने के लिए और गुंजाइश हासिल हो सके। मिसाल के तौर पर कोविड-19 जैसे झटके। हालांकि ऐसे कदम से मौद्रिक नीति समिति को अल्पावधि में और अधिक गुंजाइश हासिल होती लेकिन यह बाजार के भरोसे को प्रभावित करके मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों को और अधिक बढ़ा सकता था। इससे लंबी अवधि की लागत के साथ वास्तविक मुद्रास्फीति में और अधिक इजाफा होता। आरबीआई के अर्थशास्त्रियों द्वारा किया गया एक हालिया अध्ययन बताता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इस प्रकार का लक्ष्य हितकर रहा है। मुद्रास्फीति को लेकर नया लचीला रुख अपनाए जाने के बाद न केवल कीमतों में इजाफे की गति धीमी हुई है बल्कि मुद्रास्फीति की अस्थिरता में भी कमी आई है। ऐसे में इस लक्ष्य को बरकरार रखना ही उचित था। खासतौर पर अनिश्चित वैश्विक माहौल को देखते हुए ।


इस ढांचे को लेकर यथास्थिति बरकरार रखने के बाद मौद्रिक नीति समिति से यह आशा भी की जा रही है कि वह अगले सप्ताह वित्त वर्ष की पहली नीतिगत समीक्षा में भी नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखेगी। कोविड-19 के नए मामलों में तेजी से इजाफा होने और देश के विभिन्न भागों में आवागमन पर प्रतिबंध ने भी आर्थिक सुधार के जोखिम को बढ़ाया है। फरवरी में बुनियादी क्षेत्र का उत्पादन 4.6 फीसदी कम रहा। हालांकि इस गिरावट की वजह ऊंचा आधार और यह तथ्य भी हो सकता है कि इस वर्ष फरवरी में पिछले वर्ष की तुलना में एक दिन कम था। इसके बावजूद आंकड़े निराश करने वाले थे। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर जहां मूल दर हाल के महीनों में कम हुई है, वहीं 6 फीसदी के साथ मूल मुद्रास्फीति की दर काफी चिंताजनक ढंग से ऊंची है। दरों का निर्धारण करने वाली समिति अगर यह स्पष्ट करे कि वह इससे कैसे निपटने वाली है तो बेहतर होगा क्योंकि मूल मुद्रास्फीति शीर्ष दरों में इजाफे की वजह बन सकती है। केंद्रीय बैंक को भी राहत मिली होगी क्योंकि ताजा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार का वास्तविक राजकोषीय घाटा संशोधित अनुमान से कम रह सकता है। यद्यपि इसका बॉन्ड प्रतिफल पर अधिक असर पडऩे का अनुमान नहीं है क्योंकि समग्र उधारी उच्च स्तर पर बनी रहेगी। सरकार ने 2021-22 के लिए सकल उधारी के लिए 12.05 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य तय किया है।


सरकार ने मुद्रास्फीति के लक्ष्य के मामले में यथास्थिति बरकरार रखकर अच्छा किया है लेकिन अल्प बचत योजनाओं की प्रशासित ब्याज दरों के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। सरकार ने बुधवार को अल्प बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती की लेकिन गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे 'भूलवश' लिया गया निर्णय करार देकर वापस लेने की घोषणा की। यह कई वजहों से खेदजनक है। मसलन यह सरकार की निर्णय प्रक्रिया की खामी बताता है। इसके अलावा अल्प बचत योजनाओं की ब्याज दरें, बाजार की दरों के अनुरूप होनी चाहिए। अल्प बचत योजनाओं पर उच्च प्रशासित ब्याज दरों को अक्सर मौद्रिक नीति पारेषण के लिए बाधा माना जाता है। बैंक जमा दरों पर एक सीमा से ज्यादा कटौती नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डर होता है कि उनकी जमा अल्प बचत योजनाओं में चली जाएगी। बाजार से ऊंची ब्याज दर होने से सरकार की वित्तीय स्थिति पर भी असर पड़ता है क्योंकि वह राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिए ऐसी योजनाओं पर निर्भर होती है। ऐसे में निर्णय पलटने से बचा जाना चाहिए था।

सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।

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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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