महावीर जयंती विशेष: हमारा कोई नियंता नहीं, हम स्वयं अपने नियंता (पत्रिका)

गणाचार्य पुष्पदंत महाराज प्रख्यात जैन संत


तीर्थंकर महावीर जीवन के बसंत हैं। उनकी मधुरिमा कण-कण में हर जगह महसूस होती है। इसलिए आज भी अङ्क्षहसा, अपरिग्रह, अचौर्य, अकाम, सत्य की आवश्यकता महसूस होती है। महावीर कहते हैं कि यह जगत हमारा घर नहीं है। यहां हम सब अजनबी हैं। यहां हम सब परदेशी हैं और निरंतर प्यास है लौट जाने की, जैसे महावीर अपने निज घर निर्वाण शिवालय को लौट गए, पहुंच गए। जब तक अपने परमात्म को पा न लें, तब तक परमात्मा की भक्ति, पूजा, आराधना, साधना, जन्म जयंती का उत्सव मनाना कायम रहेगा। महावीर कहते हैं कि पृथ्वी तुम्हारा घर नहीं है। तुम यहां अजनबी हो, तुम्हारा घर कहीं ओर है। समय के पार, स्थान के पार। बाहर हमारा घर नहीं है। भीतर हमारा घर है और भीतर है शांति और भीतर है परमानंद शाश्वत सुख।


महावीर कौन थे, क्या थे? महावीर दार्शनिक दृष्टा थे। महावीर पारंपरिक नहीं थे, मौलिक थे। इसलिए उन्होंने किसी परंपरा की दुहाई नहीं दी, किसी परंपरा का अनुसरण नहीं किया। महावीर पंडित नहीं थे, वैज्ञानिक थे। महावीर ने धर्म को वीतराग विज्ञान कहकर पुकारा। महावीर निश्चयवादी नहीं अत्यंत व्यावहारिक थे। धर्म को आत्मसात किया, गहन साधना की। परमज्ञान को पाने के बाद देशना दी। महावीर शास्त्रवेत्ता नहीं, आत्मवेत्ता थे। परम् वैज्ञानिक थे, उन्होंने पदार्थ पर नहीं आत्मा पर रिसर्च की। महावीर अंधविश्वास से नहीं, अंतर खोज से तीर्थंकर बने। पंथाग्रह से नहीं, पंथों के त्याग से आत्मध्यान से तीर्थंकर बने। इसलिए तीर्थंकर आत्मज्ञ हैं, सर्वज्ञ हैं, आत्मवेत्ता हैं। महावीर सैद्धांतिक नहीं, व्यावहारिक हैं, उनकी साधना की जडं़े धरती की गहराई में नहीं आत्मा की गहराई में उतरीं, साधना के वृक्ष की ऊंचाई आकाश की अंतिम ऊंचाई सिद्धशिला निर्वाण तक गर्इं और जगत को परम अहिंसा का अमृत बांटा, जीना सिखाया। जीओ और जीने दो का मार्ग बताया ही नहीं, बल्कि चलकर भी दिखाया। प्राणी मात्र से प्रेम की कला सिखाई।


व्यावहारिक जीवन में नदी की तरह बहकर सबकी प्यास बुझाई। देह और पंथों के कारागृह से ऊपर उडऩे का मार्ग दिखाया। महावीर स्वप्नवादी नहीं, यथार्थवादी थे। महावीर ने कल्पना की पतंग नहीं उड़ाई, यथार्थ का अनुभव किया। आचरण में परम अहिंसा है, भाषा में विश्व मैत्री है, आंखों में करुणा है, काया में सुखद आनंद का अमृत झलकता है। महावीर ने पृथ्वी पर पद विहार करके प्राणी मात्र को अभयदान दिया। व्यक्तिवादी नहीं, बल्कि प्राणीवादी बनो का संदेश दिया। हर प्राणी परमात्मा बन सकता है, तुम्हें परमात्मा बनने से किसने रोका है। तुम स्वयं अपने उत्तरदायी हो। हमारा कोई नियंता नहीं। हम स्वयं अपने नियंता हैं।

सौजन्य - पत्रिका।

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