समुद्री सीमाओं में घुसपैठ कर विवाद खड़े करने की रणनीति पर चलने वाले देशों में अभी तक तो चीन का नाम ही सबसे आगे बना हुआ था। लेकिन अब अमेरिका भी इसी रास्ते पर चल निकला है। सात अप्रैल को अमेरिकी नौसेना के एक युद्धपोत यूएसएस जॉन पॉल जोंस ने भारत के समुद्री क्षेत्र में जिस तरह से अतिक्रमण करते हुए विचरण करने की हिमाकत की, उससे भारत सकते में आ गया।
अमेरिका नौसेना का यह जहाज नौपरिवहन अधिकार और स्वतंत्रता अभियान की कवायद के तहत लक्षद्वीप के पश्चिम में एक सौ तीस समुद्री मील की दूरी पर भारत के समुद्री क्षेत्र में घुस आया था। यह इलाका भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र है। विवाद इसलिए उठा है कि अमेरिका की नौसेना और रक्षा मंत्रालय पेंटागन गलती मानने के बजाय पूरी हठधर्मिता के साथ अपने कदम को सही ठहराने पर तुल गई है।
भारत के लिए यह मामला गंभीर चिंता का विषय है। भारत ने इस मामले पर तत्काल कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और अमेरिकी नौसेना के इस कदम को कदम अनुचित बताया। अगर भारत आपत्ति दर्ज नहीं कराता तो निश्चित ही अमेरिका के हौसले और बुलंद होते नजर आते। ज्यादा चिंता की बात यह है कि अमेरिकी नौसेना ताल ठोक कह रही है कि उसका युद्धपोत भारतीय समुद्री क्षेत्र में घुसा और इसके लिए उसने भारत से कोई पूर्वानुमति नहीं ली। साथ ही यह भी कि अमेरिकी नौसेना ने जो किया है, वह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों के अनुरूप ही है।
जबकि भारत ने अपनी आपत्ति में साफ तौर पर कहा है कि अमेरिकी नौसेना को भारतीय क्षेत्र में घुसने से पहले अनुमति लेनी चाहिए थी। बिना अनुमति के किसी भी देश की तटीय सीमा में प्रवेश करना समुद्री कानूनों का उल्लंघन माना जाता है, साथ ही उस देश की सीमा पर भी अतिक्रमण का मामला बनता है। तो ऐसे में क्या यह माना जाए कि भारत जो कह रहा है वह गलत है और अमेरिका ने जो कुछ किया वह अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों के अनुरूप है?
अगर अमेरिका ने यह सब अनजाने में किया होता और वह अपनी गलती मान लेता तो कोई बात ही नहीं थी। लेकिन यह मामला सीधे-सीधे दादागीरी जैसा है। जहां तक समुद्री सीमाओं से संबंधित नियम-कानूनों का संबंध है, अमेरिका और भारत दोनों अंतरराष्ट्रीय कानूनों को बखूबी समझते हैं। अगर अमेरिका का यह कदम गलत नहीं होता तो भारत क्यों एतराज जताता!
भारत और अमेरिका के बीच नौसेना के साझा अभ्यास चलते रहते हैं। ऐसे में यह कैसे मान लिया जाए कि अमेरिकी नौसेना को भारत की समुद्री सीमाओं और उसके नियम-कानूनों की जानकारी नहीं रही होगी? अंतरराष्ट्रीय समुदी कानूनों और इससे संबंधित संयुक्त राष्ट्र की संधि में साफ कहा गया है कि दूसरे देशों को किसी तटीय देश की अनुमति के बिना उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र में और महाद्वीपीय हिस्से में सैन्य अभ्यास करने का और हथियारों व विस्फोटकों का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि भारत क्वाड समूह का अहम सदस्य है जो अमेरिका ने अपने हितों के लिए बनाया है।
भारत और अमेरिका के बीच सैन्य सहयोग भी मामूली स्तर के नहीं हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इस कदम के पीछे अमेरिका की क्या मंशा रही होगी? क्या वह भारत को दबाव में लाकर अपने हित साधना चाहता है? अगर अमेरिका ने इस विवाद पर अपनी गलती नहीं मानी तो यह दोनों देशों के बीच गंभीर विवाद का कारण बन सकता है और इससे रिश्तों में खटास आते देर नहीं लगेगी।
सौजन्य - जनसत्ता।
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