आखिरकार निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को फटकार लगाई है कि अगर उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया तो वह रैलियों पर रोक लगाने को बाध्य होगा। पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हैं। उनमें से चार राज्यों के मतदान खत्म हो चुके हैं। पश्चिम बंगाल में भी चार चरण के मतदान हो चुके हैं।
आखिरी चार चरण के मतदान बचे हैं। हैरानी की बात है कि अब निर्वाचन आयोग को कोरोना नियमों की सुध आई है। जब पांचों राज्यों में चुनाव प्रक्रिया शुरू हुई थी तभी कोरोना के मामले बढ़ने शुरू हो गए थे और कई राज्यों में यह चिंतजनक स्तर पर पहुंच चुका था। मगर राजनीतिक दल बढ़-चढ़ कर रैलियों में अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे थे।
लाखों की भीड़ जुटाने में जुटे थे। राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता सड़कों पर जुलूस निकालने से लेकर मुहल्लों में घर-घर जाकर संपर्क बना रहे थे। टीवी कैमरों में साफ देखा जा रहा था कि उनमें से ज्यादातर न तो ठीक से नाक-मुंह ढंक रहे थे और न ही उचित दूरी का पालन कर रहे थे। रैलियों में धक्का-मुक्की ऐसे हो रही थी, जैसे कोरोना का कोई भय ही न हो।
ऐसा नहीं माना जा सकता कि उस वक्त निर्वाचन आयोग को चुनाव प्रचार में बरती जा रही मनमानी नजर नहीं आ रही थी। सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया के कुछ मंचों पर भी कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर चुनाव प्रचार में कोरोना नियमों का पालन न किए जाने को लेकर काफी चिंता जाहिर की जा रही थी।
कई लोग बार-बार निर्वाचन आयोग की चुप्पी पर अंगुलियां उठा रहे थे। अब जाकर इन नियमों की तरफ उसका ध्यान गया है तो स्वाभाविक ही उस पर फिर से अंगुलियां और बहुत सारे सवाल उठने शुरू हो गए हैं। इस बार पांच राज्यों, खासकर असम और बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों की मनमानियां को लेकर खूब आपत्तियां दर्ज कराई गर्इं और सबमें निर्वाचन आयोग की भूमिका लगभग निष्क्रिय बनी रही उससे उसकी मंशा पर जितने सवाल उठे, शायद पहले कभी नहीं उठे। कोरोना नियमों को लेकर उसकी चुप्पी सचमुच हैरान करने वाली थी।
इस दौरान जब कई राज्यों में रात का कर्फ्यू और सप्ताहांत की बंदी लागू की गई, अनेक जगहों पर कोरोना नियमों का पालन न करने वालों के खिलाफ पुलिस की सख्ती के कई उदाहरण सामने आए, जिसमें ठीक से मास्क न पहनने पर कुछ लोगों को बेरहमी से पीटने तक की तस्वीरें खूब प्रसारित हुर्इं। पर निर्वाचन आयोग चुनाव प्रचार में कोरोना नियमों के उल्लंघन को लेकर चुप्पी साधे रहा।
अब उसके रैलियों पर रोक लगाने संबंधी धमकी को लेकर स्वाभाविक ही सवाल उठ रहे हैं कि इससे कितनी राहत मिल सकती है। अब तक तो काफी लोगों में संक्रमण फैल चुका होगा। अब कुछ ही जगहों पर मतदान होने बाकी हैं, उनमें कितने लोगों को संक्रमण से रोका जा सकेगा।
यों भी चुनाव वाले राज्यों में कोरोना संक्रमण के सही-सही आंकड़े नहीं आ पा रहे हैं, इसलिए किसी ने कहा भी था कि वहां महामारी विस्फोटक रूप ले सकती है। निर्वाचन आयोग ने चुप्पी साध कर एक तरह से राजनीतिक दलों को मनमानी करने की छूट दी। अब भी वह इस मामले को लेकर बहुत गंभीर हो, ऐसा नहीं लगता। अगर सचमुच गंभीर है, तो उसे मनमानी करने वाले नेताओं और दलों के खिलाफ सख्ती से पेश आने का उदाहरण पेश करना चाहिए।
सौजन्य - जनसत्ता।
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