अतनु विश्वास
मेरी एक परिचित फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। वह उस समय काफी उत्साहित नजर आईं जब विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें अपेक्षाकृत जल्दी कोविड टीके की एक खुराक मुहैया करा दी गई। हर देश को अपने सामाजिक-आर्थिक और जनांकीय ढांचे को देखते हुए टीकों की खरीद, वितरण और टीकाकरण संबंधी प्राथमिकता तय करनी होगी। भारत में यकीनन असाधारण पैमाने पर टीकाकरण हो रहा है। यह पोलियो टीकाकरण की तुलना में कई गुना बड़े पैमाने पर हो रहा है और विशेषज्ञों का मानना है कि देश में हर व्यक्ति को टीका सन 2024 तक ही लग पाएगा। अगर इस प्रक्रिया को तेज कर दिया जाए और कई कंपनियों के टीके उपलब्ध हों, तो भी टीकाकरण पूरा होने में वक्त लगेगा।
भारत में सरकार ने पहले ही टीकाकरण के शुरुआती दौर की रूपरेखा पेश कर दी है। सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों को उसके बाद फ्रंटलाइन वर्कर्स तथा 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और उसके बाद 45 वर्ष से अधिक उम्र के अन्य बीमारी वाले लोगों को टीका लगाने की बात कही गई। एक अप्रैल से टीकाकरण 45 वर्ष से अधिक उम्र के हर व्यक्ति के लिए खोल दिया गया। जाहिर है टीकों के वितरण में समानता की नहीं बल्कि निष्पक्षता की आवश्यकता है और उसे कायम रखते हुए ही यह निर्धारित किया गया है कि किन लोगों को पहले टीका लगाने की आवश्यकता है। हालांकि इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है कि 45 वर्ष से कम उम्र के स्वस्थ लोगों को टीका कैसे लगेगा। क्या उन्हें यादृच्छिक ढंग से टीका लगेगा या फिर पंजीयन के क्रम में टीकाकरण किया जाएगा। या फिर उन्हें भी उनकी संवेदनशीलता के मुताबिक श्रेणीबद्ध किया जाएगा? जाहिर है टीकों के आवंटन के लिए समुचित वस्तुनिष्ठ तरीका अपनाया जाना उचित होगा।
पश्चिमी देशों में टीकाकरण की शुरुआत ब्रिटेन से हुई और 91 वर्ष की एक महिला को सबसे पहले टीका लगाया गया। दिलचस्प बात है कि जहां अधिकांश देशों ने अपने बुजुर्गों को सबसे पहले टीका लगाने का निर्णय लिया है, वहीं इंडोनेशिया ने सबसे पहले युवा और कामगार आबादी का टीकाकरण करने का निर्णय लिया। इसके लिए उसके पास अपनी दलील है। एक अहम बात यह है कि फिलहाल इंडोनेशिया के पास चीन की कंपनी सिनोवैक बायोटेक द्वारा निर्मित टीका ही है और बुजुर्गों पर उसके असर के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। चिकित्सकीय परीक्षण अभी जारी हैं और इंडोनेशिया की योजना 8-59 आयु वर्ग के 67 फीसदी लोगों को टीका लगाने की है। यह वह वर्ग है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्रिय है। इस बारे में कुछ भी कहना उपयुक्त नहीं है कि ऐसा टीकाकरण सही है या नहीं। किसी को नहीं पता कि आने वाले दिनों में हालात क्या रूप लेंगे। भारत जैसे देश में यह कतई आवश्यक नहीं है कि बुजुर्गों में संक्रमण का खतरा कम हो।
नेचर मेडिसन पत्रिका के दिसंबर अंक में एक आलेख प्रकाशित हुआ है जिसे जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय, मैरीलैंड विश्वविद्यालय और फिलाडेल्फिया के पॉलिसी मैप इंक के वैज्ञानिकों ने लिखा है। यह अमेरिका के संदर्भ में प्रभावी समुदाय स्तरीय जोखिम आधारित आकलन है। इसके लिए कुछ विशिष्ट सांख्यिकीय मॉडल इस्तेमाल किए गए जिनमें आबादी के ऐसे छोटे हिस्से का इस्तेमाल किया गया था जहां मौत के आंकड़े काफी अधिक रहे हों।
इन लेखकों ने वेब आधारित एक ऐसा कैलकुलेटर पेश किया जो अमेरिकी वयस्कों में कोविड-19 से मृत्यु के जोखिम का आकलन करता है। उन्होंने महामारी का पूर्वानुमान जताने वाले मॉडलों से सूचना ली ताकि किसी व्यक्ति के लिए जोखिम का आकलन किया जा सके। बल्कि उन्होंने सामुदायिक स्तर पर जोखिम का आकलन भी किया। यह कैलकुलेटर ऐसा है कि कोईभी व्यक्ति इसमें अपने जोखिम की जानकारी डालकर यह अनुमान प्राप्त कर सकता है कि उसके कोविड-19 से मृत्यु की क्या आशंका बनती है।
इस मॉडल से दिलचस्प परिणाम प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए 45 वर्ष का 5 फुट 8 इंच ऊंचा, काला या अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति जिसने कभी धूम्रपान न किया हो और जो फ्लोरिडा के ग्लेन सेंट मैरी टाउन में रहता हो उसके कोविड-19 से मरने की आशंका आम अमेरिकी आबादी की तुलना में 0.26 गुना होगी। यदि अन्य परिस्थितियों को स्थिर माना जाए तो 60 की उम्र में यही आशंका 1.4 गुना और 75 की उम्र में 7.1 गुना हो जाएगी। यदि 45 वर्ष का व्यक्ति धूम्रपान करता है और दिल की बीमारी से ग्रस्त है तथा उसे मधुमेह (नियंत्रित) हो तो जोखिम 0.69 गुना होगा। जबकि उसकी उम्र 75 वर्ष होने पर जोखिम 9.8 गुना हो जाएगा।
ऐसे में इस कैलकुलेटर के मुताबिक पहले जिन 10 फीसदी लोगों का टीकाकरण होना चाहिए वे बचे हुए लोगों में 10 फीसदी सर्वाधिक जोखिम वाले लोग हो सकते हैं। अगले 10 प्रतिशत लोगों में वे 10 प्रतिशत शामिल हो सकते हैं जो मृत्यु की आशंका में इसके बाद आते हैं। ऐसा मॉडल मृत्यु के जोखिम पर जोर देता है। जैसा कि हमने इंडोनेशिया के मामले में देखा, आर्थिक गतिविधियां भी टीकाकरण की प्रक्रिया में काफी महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं। खासतौर पर जब हालात सामान्य बनाने की जद्दोजहद चल रही हो। ऐसे में निष्पक्ष तरीका तो यही होगा कि मृत्यु की आशंका और अर्थव्यवस्था दोनों का ध्यान रखते हुए आकलन किया जाए। जोखिम आकलक में किसी व्यक्ति के पेशे के आधार पर आर्थिक महत्ता का आकलन किया जाना चाहिए। आर्थिक गतिविधियों और मृत्यु की आशंका को तवज्जो देने का मसला गंभीर है। इस विषय में निर्णय नीति निर्माताओं को ही करना चाहिए और मॉडल को अलग-अलग देश के हिसाब से दोबारा तैयार करना चाहिए। हकीकत यह है कि हर देश के लिए अलग मॉडल तैयार किया जाना चाहिए। इसके लिए कोविड-18 से संबंधित आंकड़ों, जनगणना के आंकड़ों और स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। कोविड-19 महामारी में आंकड़ों की बड़ी भूमिका यहां सामने आ सकती है।
(लेखक भारतीय सांख्यिकीय संस्थान कोलकाता में सांख्यिकी के प्रोफेसर हैं)
सौजन्य - बिजनेस स्टैंडर्ड।
0 comments:
Post a Comment