दूसरी लहर में (जनसत्ता)

देश में कोरोना संक्रमण के मामले जिस तेजी बढ़ रहे हैं, उससे तो लग रहा है कि महामारी बेकाबू होती जा रही है। एक दिन में बयासी हजार से ज्यादा मामलों का सामने आना गंभीर खतरे की ओर इशारा है, क्योंकि पिछले दो हफ्तों में ही यह आंकड़ा तेजी से बढ़ता गया है। जबकि पिछले साल यह आंकड़ा कई महीने में बढ़ा था।

महाराष्ट्र, पंजाब, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हालात ज्यादा विकट हैं। इसलिए इन राज्यों में सरकारें अब जिस तरह के सख्त कदम उठा रही हैं, वे पिछले साल की गई देशव्यापी पूर्णबंदी की यादें ताजा कराने के लिए काफी हैं। कोरोना संक्रमण के तेजी से बढ़ते मामलों को देख महाराष्ट्र सरकार ने पुणे शहर में एक हफ्ते के लिए सभी शिक्षण संस्थानों, होटलों, शराब घरों, रेस्टोरेंट और मॉल जैसे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को बंद कर दिया है। इसके पहले कुछ जिलों में सख्त पूर्णबंदी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में चौदह अप्रैल तक पूर्णबंदी कर दी गई है। मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, केरल और पंजाब जैसे राज्यों में रात के कर्फ्यू, शिक्षण संस्थानों को हफ्ते-दो हफ्ते बंद रखने और जरूरत के मुताबिक जिलों में पूर्णबंदी लगाने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इस सख्ती के पीछे मकसद यही है कि लोग घरों से कम से कम निकलें, ताकि संक्रमण फैलने का खतरा और न बढ़े।

यह संक्रमण की दूसरी लहर है जो और विकराल रूप ले सकती है। चिंता की बात यह है कि संक्रमण फैलने की दर पिछले साल के मुकाबले कहीं ज्यादा है। ऐसे में संक्रमण का फैलाव रोकना सबसे जरूरी है। पिछले साल तो लाचारी यह थी कि तब इस बीमारी टीका या कोई दवा नहीं थी और सिर्फ बचाव संबंधी उपायों का पालन करके ही संक्रमण से बचा जा सकता था। लेकिन अब तो व्यापक स्तर पर टीकाकरण चल रहा है। लेकिन बावजूद इसके संक्रमण के मामलों में तेज वृद्धि गंभीर बात है। हैरानी की बात तो यह है कि पिछले कुछ महीनों में संक्रमण के मामले कम पड़ने के बाद लोग जिस तरह से लापरवाह हुए हैं और बचाव के उपायों का जरा पालन नहीं कर रहे हैं, उससे भी संक्रमण फैलने का खतरा कई गुना बढ़ गया है।


संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए बचाव के उपायों पर सख्ती से अमल और सावधानियां बरतना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना टीकाकरण। इस संकट से मुकाबला तभी किया जा सकता है जब सभी लोग इस बात को समझें कि उन्हें ऐसा क्या नहीं करना है जिससे संक्रमण फैलता हो। पर सबसे ज्यादा पीड़ा और हैरानी तब होती है जब हम जानते-समझते वह सब कर रहे हैं जो हमें नहीं करना है। मिसाल के तौर पर चुनावी राज्यों को लें। पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में इन दिनों चुनावी सभाओं में भारी भीड़ पहुंच रही है। लेकिन लोग न मास्क लगा रहे है, न ही सुरक्षित दूरी के नियम का पालन कर रहे हैं।


क्या यह कोरोना संक्रमण को न्योता देना नहीं है? क्या राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग को ऐसे उपायों और इंतजामों पर विचार नहीं करना चाहिए था जिससे भीड़ जमा न हो। अगर इन राज्यों में आने वाले दिनों में कोरोना का बम फूटा तो कौन जिम्मेदार होगा? कुंभ जैसे आयोजन में भी यह खतरा लगातार बना हुआ है। वैज्ञानिक और चिकित्सक बार-बार यही चेता रहे हैं कि भीड़ से बचें, जहां भीड़ होगी वहां संक्रमण का चक्र कई गुना तेजी से बढ़ेगा। लेकिन कोई नहीं सुन रहा। अगर हमें कोरोना से मुक्ति पानी है तो एक जिम्मेदार नागरिक के फर्ज भी निभाने होंगे। वरना हम नए संकट में घिर जाएंगे।

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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