एक पड़ोसी देश होने के नाते भारत के साथ संबंध सामान्य रखने को लेकर पाकिस्तान का रवैया कैसा रहा है, यह छिपा नहीं है। हर कुछ समय बाद पाकिस्तान की ओर से कोई ऐसी हरकत सामने आ जाती है जिसके बाद भारत को अपनी उदारता पर फिर से सोचना पड़ता है। इसके बावजूद भारत की कोशिश यही होती रही है कि पाकिस्तान कम से कम एक सहज पड़ोसी की तरह रहे। मगर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आमतौर पर ऐसी रहती है कि कई बार पटरी पर आती हुई स्थितियां फिर से नकारात्मक दिशा अख्तियार कर लेती हैं। हालांकि कई बार देश के भीतर आम लोगों की जरूरत या फिर आर्थिक उतार-चढ़ाव का सामना करने के मद्देनजर ऐसे हालात पैदा होते हैं, जिसकी वजह से संबंधों में सुधार की पहलकदमी होती है। लेकिन इस तरह कवायदें अगर भरोसे की ठोस जमीन पर नहीं होती हैं तो उनका नतीजा निराश करता है। सवाल है कि क्या पाकिस्तान की सरकार और वहां की संबंधित संस्थाएं ऐसे आधे-अधूरे और अपरिपक्व फैसलों के असर का अंदाजा लगा पाती हैं?
पाकिस्तान की ओर से पिछले दो-तीन दिनों के भीतर भारत के साथ व्यापार के मोर्चे पर जो जड़ता टूटने के संकेत दिख रहे थे और अब उसका जो नया रुख सामने आया है, उससे यही लगता है कि वहां सांस्थानिक और सरकार के स्तर पर शायद अपने ही भीतर भरोसे की कमी है। वहां व्यापक महत्त्व के फैसलों की सार्वजनिक घोषणा से पहले संबंधित पक्षों को या तो महत्त्व नहीं दिया जाता है या फिर उन्हें विश्वास में नहीं लिया जाता है। गौरतलब है कि पाकिस्तान की आर्थिक समन्वय समिति ने देश में जरूरत के मुकाबले चीनी और कपास की कमी के मद्देनजर आयात पर पाबंदी को हटाने के साथ-साथ भारत से इन दोनों चीजों का आयात करने की घोषणा की थी।
इसके बाद माना यही जा रहा था कि व्यापार को लेकर पाकिस्तान के बदले रुख का फायदा दोनों देशों के संबंधों में सुधार की ओर भी बढ़ेगा। लेकिन अपने अब तक के इतिहास की तरह ही पाकिस्तान का असली रवैया सामने आने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। महज एक दिन बाद ही जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने को मुद्दा बना कर पाकिस्तान के मंत्रिमंडल ने चीनी और कपास के आयात के बारे में की गई घोषणा को खारिज कर दिया।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद- 370 पर भारत सरकार के फैसले के बाद 2019 के अगस्त में ही पाकिस्तान ने भारत से आयात पर पाबंदी लगा दी थी। सवाल है कि क्या किसी देश के अपने आंतरिक मामलों में जरूरत के मुताबिक कोई नीतिगत फैसला लेने की वजह से दूसरे देशों को दबाव की राजनीति करनी चाहिए? लेकिन पाकिस्तान में सरकारों के लिए खुद को बनाए रखने के लिए शायद कश्मीर मुद्दे पर नाहक विवाह खड़ा करना जरूरी लगता रहा है। पाकिस्तान का यह रवैया कोई नया नहीं है। सन् 2012 में भी पाकिस्तान की सरकार ने भारत को कारोबार के लिहाज से ‘सबसे तरजीही देश’ यानी मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने का फैसला कर लिया था, लेकिन आखिरी वक्त में इसे टाल दिया गया था।
अन्य कई मामलों में पाकिस्तान ऐसा कर चुका है। बहरहाल, पाकिस्तान के रुख में ताजा बदलाव से यही लगता है कि वहां की सरकार की नजर में अपने आम नागरिकों की जरूरतों का सवाल प्राथमिकता सूची में काफी नीचे है और एक गलत जिद और अहं का मसला ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वरना ऐसी कोई वजह नहीं थी कि कारोबार के क्षेत्र में आयात पर पाबंदी लगाने का आधार यह बने कि भारत ने अपने किसी राज्य या क्षेत्र के प्रशासन को लेकर क्या फैसला किया!
सौजन्य - जनसत्ता।
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