बड़े खतरे की घंटी (जनसत्ता)

कोरोना की दूसरी लहर में भारत में संक्रमण जिस तेजी से फैल रहा है, वह और बड़े की खतरे की घंटी है। एक दिन में एक लाख से ज्यादा नए मामलों का सामने आना बता रहा है कि हालात बेकाबू हो चुके हैं। एक लाख से ज्यादा का आंकड़ा वह सरकारी आंकड़ा है जो जांच के बाद आया है। यह भी संभव है कि बड़ी संख्या में लोगों की जांच ही नहीं हुई हो या लोगों ने ही नहीं करवाई और वे संक्रमण से ग्रस्त हों।

इसलिए यह आंकड़ा सवा-डेढ़ लाख रोजाना भी हो तो हैरत नहीं होगी। हकीकत यह है कि हम फिर से महामारी की चपेट में आ गए हैं और हालात अब ज्यादा गंभीर हैं। देश में महामारी दस्तक के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब एक दिन में नए मामलों का आंकड़ा एक लाख से ऊपर निकल गया। दुनिया के लिहाज से भी देखें तो सबसे ज्यादा हालत अब हमारी खराब है। भारत दुनिया में पहला देश हो गया है जहां संक्रमण के नए मामले मिलने की रफ्तार सबसे ज्यादा है। अभी तक पहले नबंर पर अमेरिका और दूसरे पर ब्राजील था।

कुछ दिन पहले तक देश के आठ राज्यों में ही हालात गंभीर होने की बात थी, लेकिन अब यह संख्या बढ़ कर पंद्रह हो गई है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए है कि नए मामले तब बढ़ रहे हैं जब देश में टीकाकरण का अभियान जोरों पर चल रहा है और एक दिन में पैंतीस लाख लोगों को टीका लगाने की उपलब्धि हासिल की जा चुकी है। फिर भी अगर संक्रमण बढ़ रहा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं हमारी लापरवाही बड़ी वजह है और महामारी से जंग में यही सबसे बड़ी बाधा बन गई है


इसका सबसे कारण तो यही है कि महामारी को लेकर लोगों के भीतर डर खत्म हो गया है। इसलिए लोग मास्क पहनने, सुरक्षित दूरी और बार-बार हाथ धोने जैसे बचाव संबंधी उपायों का पालन भी नहीं कर रहे। बाजारों में पहले की तरह भीड़ उमड़ रही है। देशभर में कमोबेश यही स्थिति है। देश की सत्तर फीसद आबादी में एंटीबॉडी विकसित नहीं हुई है, इसलिए भीड़ के जरिए संक्रमण फैलने का खतरा और बढ़ गया है।

चुनावी राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के हालात भी नींद उड़ा देने वाले हैं। चुनावी रैलियों और सभाओं में राजनीतिक दल और आमजन जिस तरह से नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, वह बड़े संकट को न्योता देना है। पश्चिम बंगाल डॉक्टर्स फोरम ने तो चुनाव आयोग और राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर चेताया भी है कि अगर जल्दी ही कोरोना से बचाव के लिए समुचित प्रबंध नहीं किए गए तो हालात विस्फोटक हो सकते हैं। एक मार्च से एक अप्रैल के बीच संक्रमण के नए मामलों में पश्चिम बंगाल में छह सौ पैंतालीस फीसद और तमिलनाडु में चार सौ चौरानवे फीसद का इजाफा हुआ है।

पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में टीकाकरण की दर में सत्ताईस और असम में इकतालीस फीसद की गिरावट आई है। न राजनीतिक दलों को चिंता है न सभाओं-रैलियों में पहुंचने वालों को। प्रधानमंत्री बार-बार बचाव संबंधी नियमों का सख्ती से पालन करने पर जोर दे रहे हैं, संक्रमण रोकने के लिए पांच सूत्रीय रणनीति यानी जांच, संक्रमितों के संपर्कों का पता लगाने, इलाज, बचाव और टीकाकरण पर जोर दे रहे हैं। पर हैरानी होती है यह देख कर कि कहीं भी कोई भी इनका पालन नहीं कर रहा। यह लापरवाही की पराकाष्ठा है। जब हम ही संक्रमण से बचाव की कोशिशों पर पलीता लगाएंगे तो कैसे कोरोना को हराएंगे!

सौजन्य - जनसत्ता।
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About न्यूज डेस्क, नई दिल्ली.

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