एजेदीन सी. फिशर, (द पोस्ट के दूसरे जमाल खशोगी फेलो और 'द इजिप्टियन असैसिन' के लेखक)
नील नदी पर ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम बनाए जाने और उसके संचालन को लेकर चल रही वार्ता विफल हो गई है, क्योंकि मिस्र को डर है कि कहीं इससे देश में सूखा न पड़ जाए। बीते सप्ताह मिस्र के राष्ट्रपति ने चेतावनी दी थी कि 'कोई भी मिस्र से पानी की एक बूंद भी नहीं ले सकता और अगर कोई ऐसा करना चाहता है तो कोशिश करके देख ले।' इसके अगले दिन ही मिस्र और सूडान ने 'नील ईगल्स' नाम से संयुक्त वायु सेना अभ्यास का ऐलान किया। सूडान भी काफी हद तक इथियोपिया से आने वाले नील नदी के पानी पर निर्भर है।
इस बीच इथियोपियाई सरकार बांध के जलाशय को भरने की योजना बना रही है। वह 2023 तक यह कार्य पूरा कर लेना चाहती है। 2015 में दोनों देशों ने इस बांध को लेकर एक समझौता किया थे, जो अब अर्थहीन हो गया है। मिस्र व सूडान ने हाल ही मध्यस्थता प्रस्ताव भी रखा, जिसे इथियोपिया ने नकार दिया। मिस्र की नील नदी का 85 फीसदी पानी ब्लू नील से आता है। मिस्र, जहां न के बराबर बारिश होती है, सदियों से पानी से जुड़ी तमाम जरूरतों के लिए इसी पानी पर निर्भर हैं। इसलिए इस पानी में कटौती मिस्र को अस्तित्व पर संकट की तरह लगती है। इथियोपिया (संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में 173वें पायदान पर) को लगता है कि इस जल स्रोत के बल पर वह देश के लोगों का जीवन स्तर सुधार सकता है।
सौजन्य - पत्रिका।
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