ऐसे वक्त में जब देश में रोज कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा डेढ़ लाख से अधिक पहुंच रहा है, टीकाकरण ही इससे मुकाबले का अंतिम हथियार नजर आता है। जब तक हम अपनी बड़ी आबादी के लिये टीकाकरण का लक्ष्य पूरा नहीं कर लेते, हम निश्चित नहीं हो सकते कि हमने लड़ाई जीत ली है। ऐसे में देश में कोवैक्सीन व कोविशील्ड के बूते लड़ी जा रही लड़ाई को और मजबूती मिलने की उम्मीद तब बढ़ गई जब केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रक संगठन ने रूसी वैक्सीन स्पूतनिक को आपातकालीन उपयोग के लिये मंजूरी दे दी। दुनिया की बहुचर्चित चिकित्सा विज्ञान पत्रिका ‘द लैंसेंट’ के अनुसार अंतिम चरण के ट्रायल के नतीजों में स्पूतनिक को कोरोना के विरुद्ध 92 प्रतिशत मामलों में सुरक्षा प्रदान करने वाला पाया गया है। देश में कोरोना वायरस की घातक होती लहर के बीच केंद्र सरकार ने इस तीसरी वैक्सीन को इमरजेन्सी उपयोग की अनुमति दी है। हाल के दिनों में कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी की शिकायत की थी। इसके चलते कई केंद्रों में टीकाकरण का कार्य बाधित हुआ था। निश्चय ही यह हमारे टीकाकरण अभियान के लिये चिंता की बात है। इतना तो तय है कि सवा अरब वाले देश की जरूरतों के मुताबिक न तो टीके का उत्पादन हो पाया है और न ही उस गति से टीकाकरण हो सका है। विपक्षी दल कोरोना टीके के निर्यात और सद्भाव के लिये टीके दिये जाने की नीति को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने मार्च से कोविशील्ड के निर्यात पर अस्थायी तौर पर रोक लगा रखी है। अब तक देश में दस करोड़ से अधिक लोगों को फिलहाल वैक्सीन दी जा चुकी है। दरअसल, यह जरूरी भी था क्योंकि अब भारत 1.35 करोड़ से अधिक लोगों के संक्रमित होने से दुनिया में संक्रमण की दृष्टि से दूसरे नंबर पर पहुंच गया है।
दरअसल, कोरोना संक्रमण से लड़ाई के क्रम में भारत सरकार ने प्राथमिकताओं के आधार पर जुलाई माह तक 25 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये टीकाकरण अभियान को तेज करने की जरूरत है। जरूरत टीका उत्पादन में तेजी लाने और अन्य वैक्सीनों को उपयोग में लाने की भी है। ऐसे में रूस के गैमालेया इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित वैक्सीन इस अभियान में मददगार हो सकती है। इस वैक्सीन की विशेषता यह भी है कि इसे दो डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान में संगृहीत किया जा सकता है। अत: भारत जैसे जलवायु वाले देश में इसका भंडारण और आपूर्ति सुविधाजनक रहेगी। इसके लिये रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड ने वैक्सीन की पिचहत्तर करोड़ से अधिक खुराक के उत्पादन के लिये भारतीय दवा उत्पादक कंपनियों से समझौता किया है। यह समझौता मुख्यत: डॉ. रेड्डीज लैब के साथ किया है। दो खुराकों में लगने वाली इस वैक्सीन की दूसरी खुराक 21 दिन बाद दी जाती है। निश्चित रूप से ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के जरिये भारत में प्रतिमाह बनायी जा रही छह करोड़ से ज्यादा वैक्सीन के साथ स्पूतनिक की आमद कोरोना के खिलाफ हमारी लड़ाई को मजबूती देगी। इस वैक्सीन के कारगर होने के कारण रूस समेत दुनिया के साठ देशों में इस वैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है। यद्यपि भारत में इस वैक्सीन के उपयोग होने में कुछ हफ्तों का समय लग सकता है। भारत बायोटेक ने भी देश में इसके चार संयंत्रों के जरिये इस साल के अंत तक सत्तर करोड़ खुराक बनाने का लक्ष्य रखा है। वहीं दूसरी ओर भारत में कई अन्य वैक्सीनों पर काम चल रहा है, जो अभी विभिन्न चरणों में हैं। इनमें अहमदाबाद की जाइडस-कैडिला कंपनी की जाइकोव-डी, हैदराबाद की बायोलॉजिकल-ई की अमेरिकी वि.वि. के सहयोग से बनने वाली वैक्सीन, एचजीसीओ-19 तथा भारत बायोटेक भी नाक से दी जाने वाली एक वैक्सीन पर काम कर रही है। साथ ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी अमेरिकी कंपनी नोवावैक्स के साथ मिलकर एक और वैक्सीन पर काम कर रही है।
सौजन्य - दैनिक ट्रिब्यून।
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